भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३५९ :
अपराधों का शमन (समझोता करना ) :
१) नीचे दी गई सारणी के प्रथन दो स्तंभो में विनिर्दिष्ट भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धाराओं के अधीन दण्डनीय अपाराधों का शमन उस सारणी के तुतीय स्तम्भ में उल्लिखित व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है :
सारणी :
———-
अपराध (१) :
किसी विवाहित महिला को आपराधिक दूराशय से फुसलाकर ले जाना या ले जाना या निरुद्ध रखना ।
भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा जो लागू होती है (२) :
८४
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
महिला का पति और महिला ।
———-
अपराध (१) :
स्वेच्छया उपहति कारित करना ।
भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा जो लागू होती है (२) :
११५ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिस उपहति कारित की गई है ।
———-
अपराध (१) :
प्रकोपन पर स्वेच्छया उपहति कारित करना ।
भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा जो लागू होती है (२) :
१२२ (१)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिस उपहति कारित की गई है ।
———-
अपराध (१) :
गंभीर तथा अचानक प्रकोपन पर स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना ।
भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा जो लागू होती है (२) :
१२२ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिस उपहति कारित की गई है ।
———-
अपराध (१) :
किसी व्यक्ती का सदोष अवरोध या परिरोध ।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
१२६ (२), १२७ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जो अवरुद्ध या परिरुद्ध किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
किसी व्यक्ति का तीन या अधिक दिनों के लिए सदोष परिरोध ।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
१२७ (३)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
परिरुद्ध व्यक्ति ।
———-
अपराध (१) :
किसी व्यक्ति का दस या अधिक दिनों के लिए सदोष परिरोध ।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
१२७ (४)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
परिरुद्ध व्यक्ति ।
———-
अपराध (१) :
गुप्त स्थान में किसी व्यक्ति का सदोष परिराध ।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
१२७ (६)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
परिरुद्ध व्यक्ति ।
———-
अपराध (१) :
हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
१३१, १३३, १३६
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के विमर्शित आशय से शब्द उच्चारित करना, आदि ।
भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा जो लागू होती है (२) :
३०२
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना आशयित है ।
———-
अपराध (१) : चोरी ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३०३ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
चुराई गई सम्पत्ति का स्वामी ।
———-
अपराध (१) :
सम्पत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३१४
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
दुर्विनियोजित सम्पत्ति का स्वामी ।
———-
अपराध (१) :
वाहक, घाटवाल, आदि द्वारा आपराधिक न्यासभंग ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३१६ (३)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
दुर्विनियोजित सम्पत्ति का स्वामी ।
———-
अपराध (१) :
चुराई हुई संपत्ति को, यह जानते हुए कि वह चुराई गई है बेइमानी से प्राप्त करना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३१७ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
चुराई गई सम्पत्ति का स्वामी ।
———-
अपराध (१) :
चुराई हुई सम्पत्ति को, यह जानते हुए कि वह चुराई गई है, छिपाने में या व्ययनित करने में सहायता करना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३१७ (५)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
चुराई गई सम्पत्ति का स्वामी ।
———-
अपराध (१) :
छल ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३१८ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिससे छल किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
प्रतिरुपण द्वारा छल ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३१९ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिससे छल किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
लेनदारों में वितरण निवारित करने के लिए सम्पत्ति आदि का कपटपूर्वक अपसारण छिपाना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३२०
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
उसके द्वारा प्रभावित लेनदार ।
———-
अपराध (१) :
अपराधी को देय ऋण या माँग को उसके लेनदारों के लिए उपलब्ध होने से कपटपूर्वक निवारित करना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) : ३२१
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
उसके द्वारा प्रभावित लेनदार ।
———-
अपराध (१) :
अन्तरण के ऐसे विलेख का, जिसमें प्रतिफल के सम्बन्ध में मिथ्या कथन अन्तर्विष्ट है, कपटपूर्वक निष्पादन ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३२२
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
उसके द्वारा प्रभावित व्यक्ति ।
———-
अपराध (१) :
सम्पत्ति का कपटपूर्ण अपसारण या छिपाया जाना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) : ३२३
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
उसके द्वारा प्रभावित व्यक्ति ।
———-
अपराध (१) :
रिष्टि, जब कारित हानि या नुकसान केवल प्राइवेट व्यक्ति को हानि या नुकसान है ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३२४ (२), ३२४ (४)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसको हानि या नुकसान कारित किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
जीव-जन्तु का वध करने या उसे विकलांग करने के द्वारा रिष्टि ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३२५
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
जीवजन्तु का स्वामी ।
———-
अपराध (१) :
सिंचन संकर्म को क्षति करने या जल को दोषपूर्वक मोडने के द्वारा रिष्टि, जब उससे कारित हानि या नुकसान केवल प्राइवेट व्यक्ति को हुई हानि या नुकसान है ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) : ३२६ (क)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ती जिसे हानि या नुकसान हुआ है ।
———-
अपराध (१) :
आपराधिक अतिचार ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३२९ (३)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसके कब्जे में ऐसी सम्पत्ति है, जिस पर अतिचार किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
गृह-अतिचार ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३२९ (४)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसके कब्जे में ऐसी सम्पत्ति है, जिस पर अतिचार किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
कारावास से दण्डनीय अपराध को (जो चोरी से भिन्न है ) करने के लिए गृह- अतिचार ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३३२ (ग)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसका उस गृह पर कब्जा है जिस पर अतिचार किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
मिथ्या व्यापार या सम्पत्ति चिन्ह का उपयोग ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३४५ (३)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति, जिसे ऐसे उपयोग से हानि या क्षति कारित हुई है ।
———-
अपराध (१) :
अन्य व्यक्ति द्वारा उपयोग में लाए गए व्यापार या सम्पत्ति चिन्ह का कूटकरण ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३४७ (१)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति, जिसे ऐसे उपयोग से हानि या क्षति कारित हुई है ।
———-
अपराध (१) : कूटकृत सम्पत्ति चिन्ह से चिन्हीत माल को जानते हुए विक्रय ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) : ३४९
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति, जिसे ऐसे उपयोग से हानि या क्षति कारित हुई है ।
———-
अपराध (१) :
अपराधिक अभित्रास ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३५१(२), ३५१(३)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
अभित्रस्त व्यक्ति ।
———-
अपराध (१) :
किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने के लिए उत्प्रेरित करके कि वह दैवी अप्रसाद का भाजन होगा, कराया गया कार्य ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३५४
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसे उत्प्रेरित किया गया ।
———-
अपराध (१) :
उपधारा (२) के अधीन सारणी के स्तंभ (१) में भारतीय न्याय संहिता, २०२३ की धारा ३५६(२) के सामने यथाविनिर्दिष्ट ऐसे मामलो के सिवाय मानहानि ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३५६ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसकी मानहानि की गई है ।
———-
अपराध (१) :
मानहनिकारक जानी हुई बात को मुद्रित या उत्कीर्ण करना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) : ३५६ (३)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसकी मानहानि की गई है ।
———-
अपराध (१) :
मानहानिकारक विषय रखने वाले मुद्रित या उत्कीर्ण पदार्थ को यह जानते हुए बेचना कि उसमें ऐसा विषय अन्तर्विष्ट है ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३५६ (४)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसकी मानहानि की गई है ।
———-
अपराध (१) :
सेवा संविदा का आपराधिक भंग ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३५७
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसके साथ अपराधी ने संविदा की है ।
———-
२) नीचे दी गई सारणी के प्रथम दो स्तम्भों में विनिर्दिष्ट भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धाराओं के अधीन दण्डनीय अपराधों का शमन उस न्यायालय की अनुज्ञा से, जिनके समक्ष ऐसे अपराध के लिए कोई अभियोजन लंबित है, उस सारणी के तृतीय स्तम्भ में लिखित व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है :-
सारणी :
———
अपराध (१) :
शब्द, अंगविक्षेप या कार्य, जो किसी महिला की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित है ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
७९
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह महिला जिसका अनादर करना आशयित था या जिसकी एकान्तता का अतिक्रमण किया गया था ।
———-
अपराध (१) :
पति या पत्नी के जीवनकाल में पुन: विवाह करना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) : ८२ (१)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
ऐसे विवाह करने वाले व्यक्ति का पति या पत्नी ।
———-
अपराध (१) :
गर्भपात कारित करना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
८८
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह स्त्री जिसका गर्भपात कारित किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
११७ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसे उपहति कारित की गई है ।
———-
अपराध (१) :
ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कार्य करने के द्वारा, जिससे मानव जीवन या दूसरों का वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो जाए, उपहति कारित करना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
१२५ (क)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसे उपहति कारित की गई है ।
———-
अपराध (१) :
ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से कोई कार्य करने के द्वारा जिससे मानव जीवन या दूसरों का वैयक्तिक क्षेम का संकटापन्न हो जाए, घोर उपहति कारित करना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
१२५ (ख)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसे उपहति कारित की गई है ।
———-
अपराध (१) :
किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करने के प्रयत्न में हमला या आपराधिक बल का प्रयोग ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
१३५
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसपर हमला किया गया था या जिस पर बल का प्रयोग किया गया था ।
———-
अपराध (१) :
लिपिक या सेवक द्वारा स्वामी के कब्जे की सम्पत्ति की चोरी ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३०६
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
चुराई गई सम्पत्ति का स्वामी ।
———-
अपराध (१) :
आपराधिक न्यासभंग ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३१६ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
उस सम्पत्ति का स्वामी जिसके संबंध में न्यायभंग किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
लिपिक या सेवक द्वारा आपराधिक न्यासभंग ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३१६ (४)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
उस सम्पत्ति का स्वामी जिसके संबंध में न्यायभंग किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
ऐसे व्यक्ति के साथ छल कराना जिसका हित संरक्षित रखने के लिए अपराधी या तो विधि द्वारा या वैध संविदा द्वारा आबद्ध था ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३१८ (३)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिससे छल किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
छल करना और सम्पत्ति परिदत्त करने अथवा मूल्यवान प्रतिभूति की रचना करने, या उसे परिवर्तित या नष्ट करने के लिए बेइमानी से उत्प्रेरित करना ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३१८ (४)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिससे छल किया गया है ।
———-
अपराध (१) :
राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या राज्य के राज्यपाल अथवा संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक या किसी मंत्री के विरुद्ध उसके लोक कृत्यों के संबंध में मानहानि, जब लोक अभियोजक द्वारा किए गए परिवाद पर संस्थित की जाए ।
भारतीय न्याय संहिता की धारा जो लागू होती है (२) :
३५६ (२)
वह यक्ति जिसके द्वारा अपराध का शमन किया जा सकता है (३) :
वह व्यक्ति जिसकी मानहानि की गई है ।
———-
३) जब इस धारा के अधीन कोई अपराध शमनीय है, तो ऐसे अपराध का दुष्प्रेरण या ऐसे अपराध को कारित करने का प्रयास (जब ऐसा प्रयास अपने आप में एक अपराध है) या जहाँ अभियुक्त भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३ की उपधारा (५) या धारा १९० के अधीन दायी है, का उसी प्रकार से शमन किया जा सकेगा ।
४) क) जब वह व्यक्ति, जो इस धारा के अधीन अपराध का शमन करने के लिए अन्यथा सक्षम होता,बालक है या विकृत चित्त है, तब कोई व्यक्ति जो उसकी और से संविदा करने के लिए सक्षम हो, न्यायालय की अनुज्ञा से, ऐसे अपराध का शमन कर सकता है ।
ख) जब वह व्यक्ति, जो इस धारा के अधीन अपराध का शमन करने के लिए अन्यथा सक्षम होता, मर जाता है तब ऐसे व्यक्ति का, सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८ (१९०८ का ५) में यथापरिभाषित, विधिक प्रतिनिधि, न्यायालय की सम्मति से , ऐसे अपराध का शमन कर सकता है ।
५) जब अभियुक्त विचारणार्थ सुपुर्द कर दिया जाता है या जब वह दोषसिद्ध कर दिया जाता है और अपील लंबित है, तब अपराद का शमन, यथास्थिति, उस न्यायालय की इजाजत के बिना अनुज्ञात न किया जाएगा जिसे वह सुपुर्द किया गया है, या जिसके समक्ष अपील सुनी जानी है ।
६) धारा ४४२ के अधीन पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों के प्रयोग में कार्य करते हुए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय किसी व्यक्ति को किसी अपराध का शमन करने की अनुज्ञा दे सकता है जिसका शमन करने के लिए वह व्यक्ति इस धारा के अधीन सक्षम है ।
७) यदि अभियुक्त पूर्व दोषसिद्ध के कारण किसी अपराध के लिए या वर्धित दण्ड से या भिन्न किस्म के दण्ड से दण्डनीय है तो ऐसे अपराध का शमन न किया जाएगा ।
८) अपराध के इस धारा के अधीन शमन का प्रभाव उस अभियुक्त की दोषमुक्ति होगा जिससे अपराध का शमन किया गया है ।
९) अपराध का शमन इस धारा के उपबंधों के अनुसार ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं ।