Bnss धारा ३३७ : एक बार दोषसिद्ध या दोषमुक्त किए गए व्यक्ति का उसी अपराध के लिए विचारण न किया जाना :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
अध्याय २६ :
जाँचों तथा विचारणों के बारे में साधारण उपबंध :
धारा ३३७ :
एक बार दोषसिद्ध या दोषमुक्त किए गए व्यक्ति का उसी अपराध के लिए विचारण न किया जाना :
१) जिस व्यक्ति को किसी अपराध के लिए सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय द्वार एक बार विचारण किया जा चुका है और जो ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध या दोषमुक्त किया जा चुका है, वह , जब तक ऐसी दोषसिद्धि या दोषमुक्ति प्रवृत्त रहती है तब तक न तो उसी अपराध के लिए पुन:विचारण का भागी होगा और न उन्हीं तथ्यों पर किसी ऐसे अन्य अपराध के लिए विचारण का भागी होगा जिसके लिए उसके विरुद्ध लगाए गए आरोप से भिन्न आरोप धारा २४४ की उपधारा (१) के अधीन लगाया जा सकता था या जिसके लिए वह उसकी उपधारा (२) के अधीन दोषसिद्ध किया जा सकता है ।
२) किसी अपराध के लिए दोषमुक्त किए गए किसी व्यक्ति का विचारण, तत्पश्चात् राज्य सरकार की सम्मति से किसी ऐसे भिन्न अपाराध के लिए किया जा सकता है जिसके लिए पूर्वगामी विचारण में उसके विरुद्ध धारा २४३ की उपधारा (१) के अधीन पृथक् आरोप लगाया जा सकता था ।
३) जो व्यक्ति किसी ऐसे कार्य से बनने वाले किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, जो ऐसे परिणाम पैदा करता है जो उस कार्य से मिलकर उस अपराध से, जिसके लिए वह दोषसिद्ध हुआ, भिन्न कोर्स अपराध बनाते है, उसका ऐसे अंतिम वर्णित अपराध के लिए तत्पश्चात् विचारण किया जा सकता है, यदि उस समय जब वह दोषसिद्ध किया गया था वे परिणाम हुए नहीं थे या उनका होना न्यायालय को ज्ञात नहीं था ।
४) जो व्यक्ति किन्ही कायों से बनने वाले किसी अपराध के लिए दोषमुक्त या दोषसिद्ध किया गया है, उस पर ऐसी दोषमुक्ति या दोषसिद्धि के होने पर भी, उन्हीं कार्यो से बनने वाले और उसके द्वारा किए गए किसी अन्य अपराध के लिए तत्पश्चात् आरोप लगाया जा सकता है और उसका विचारण किया जा सकता है, यदि वह न्यायालय , जिसके द्वारा पहले उसका विचारण किया गया था, उस अपराध के विचारण के लिए सक्षम नहीं था जिसके लिए बाद में उस पर आरोप लगाया जाता है ।
५) धारा २८१ के अधीन उन्मोचित किया गए व्यक्ति का उसी अपराध के लिए पुन:विचारण उस न्यायालय की, जिसके द्वारा वह उन्मोचित किया गया था, अन्य किसी ऐसे न्यायालय की, जिसके प्रथम वर्णित न्यायालय अधीनस्थ है, सम्मति के बिना नहीं किया जाएगा ।
६) इस धारा की कोई बात साधारण अधिनियम, १८९७ (१८९७ का १०) की धारा २६ के या इस संहिता की धारा २०८ के उपबंधों पर प्रभाव न डालेगी ।
स्पष्टीकरण :
परिवाद का खारिज किया जाना या अभियुक्त का उन्मोचन इस धारा के प्रयोजन के लिए दोषमुक्ति नहीं है ।
दृष्टांत :
(a) क) (क) का विचारण सेवक की हैसियत में चोरी करने के आरोप पर किया जाता है और वह दोषमुक्त कर दिया जाता है । जब तक दोषमुक्ति प्रवृत्त रहे, उस पर सेवक के रुप में चोरी के लिए या उन्हीं तथ्यों पर केवल चोरी के लिए या आपराधिक न्यासभंग के लिए बाद में आरोप नहीं लगाया जा सकता ।
(b) ख) घोर उपहति कारित करने के लिए (क) का विचारण किया जाता है और वह दोषसिद्ध किया जाता है । क्षत व्यक्ति तत्पश्चात मर जाता है । आपराधिक मानववध के लिए (क) का पुन:विचारण किया जा सकेगा ।
(c) ग) (ख) के आपराधिक मानववध के लिए (क) पर सेशन न्यायालय के समक्ष आरोप लगाया जाता है और वह दोषसिद्ध किया जाता है । (ख) की हत्या के लिए (क) का उन्हीं तथ्यों पर तत्पश्चात् विचारण नहीं किया जा सकेगा।
(d) घ) (ख) को स्वेच्छा से उपहति कारित करने के लिए (क) पर प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप लगाया जाता है और वह दोषसिद्ध किया जाता है । (ख) को स्वेच्छा से घोर उपहति कारित करने के लिए (क) का उन्हीं तथ्यों पर तत्पश्चात् विचारण नहीं किया जा सकेगा जब तक कि मामला इस धारा की उपधारा (३) के अन्दर न आए ।
(e) ङ) (ख) के शरीर से सम्पत्ति की चोरी करने के लिए (क) पर द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप लगाया जाता है और वह दोषसिद्ध किया जाता है । उन्हीं तथ्यों पर तत्पश्चात् (क) पर लूट का आरोप लगाया जा सकेगा और उसका विचारण किया जा सकेगा ।
(f) च) (घ) को लूटने के लिए (क), (ख) और (ग) पर प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप लगाया जाता है और वे दोषसिद्ध किए जाते है । डकैती के लिए उन्हीं तथ्यों पर तत्पश्चात् (क), (ख) और (ग) पर आरोप लगाया जा सकेगा और उनका विचारण किया जा सकेगा ।

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