भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३०२ :
बन्दियों को हाजिर कराने की अपेक्षा करने की शक्ति :
१) जब कभी इस संहिता के अधीन किसी जाँच, विचारण या अन्य कार्यवाही के दौरान किसी दण्ड न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि-
(a) क) कारागार में परिरुद्ध या निरुद्ध व्यक्ति को किसी अपराध के आरोप का उत्तर देने के लिए या उसके विरुद्ध किन्हीं कार्यवाहियों के प्रयोजन के लिए न्यायालय के समक्ष लाया जाना चाहिए, अथवा
(b) ख) न्याय के उद्देश्यों के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे व्यक्ति की साक्षी के रुप में परीक्षा की जाए, तब वह न्यायालय, कारागार के भारसाधक अधिकारी से यह अपेक्षा करने वाला आदेश दे सकता है कि वह ऐसे व्यक्ति को, आरोप को उत्तर देने के लिए ऐसी कार्यवाहियों की प्रयोजन के लिए या साक्ष्य देने के लिए न्यायालय के समक्ष पेश करे ।
२) जहाँ उपधारा (१) के अधीन कोई आदेश द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा दिया जाता है, वहाँ वह कारागार के भारसाधक अधिकारी को तब तक भेजा नहीं जाएगा या उसके द्वारा उस पर तब तक कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी जब तक वह ऐसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा प्रतिहस्ताक्षरित न हो, जिसके अधीनस्थ वह मजिस्ट्रेट है ।
३) उपधारा (२) के अधीन प्रतिहस्ताक्षर के लिए पेश किए गए प्रत्येक आदेश के साथ ऐसे तथ्यों का, जिनसे मजिस्ट्रेट की राय में आदेश आवश्यक हो गया है, एक विवरण होगा और वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, जिसके समक्ष वह पेश किया गया है उस विवरण पर विचार करने के पश्चात् आदेश पर प्रतिहस्ताक्षर करने से इंकार कर सकता है ।