भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २९३ :
मामले का निपटारा :
जहाँ धारा २९२ के अधीन मामले का कोई संतोषप्रद निपटारा तैयार किया गया है वहाँ न्यायालय मामले का निपटारा निम्नलिखित रीति से करेगा,अर्थात् –
(a) क) न्यायालय, पीडित व्यक्ती को धारा २९२ के अधीन निपटारे के अनुसार प्रतिकर देगा और दंड की मात्रा अभियुक्त को सदाचार की परिवीक्षा (परीक्षा / परीक्षण) पर या धारा ४०१ के अधीन भत्र्सना के प्रश्चात्, छोडने अथवा अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, १९५८ (१९५८ का २०) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधो के अधीन अभियुक्त के संबंध में कार्रवाई करने के विषय में पक्षकारों की सुनवाई करेगा और अभियुक्त पर दंड अधिरोपित करने के लिए पश्चातवर्ती खंडो में विनिर्दिष्ट प्रक्रिया का पालन करेगा;
(b) ख) खंड (a) (क) के अधीन पक्षकारों की सुनवाई के पश्चात् यदि न्यायालय का यह मत हो कि धारा ४०१ या अपराधी परिवीक्षा (परीक्षा / परीक्षण) अधिनियम, १९५८ (१९५८ का २०) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंध अभियुक्त के मामले में आकर्षित होते हैं, तो वह, अभियुक्त को परिवीक्षा (परीक्षा / परीक्षण) पर छोड सकेगा या ऐसी किसी विधि का लाभ दे सकेगा;
(c) ग) खंड (b) (ख) के अधीन पक्षकारों को सुनने के पश्चात्, यदि न्यायालय को पता चलता है कि अभियुक्त द्वार किए गए अपराध के लिए विधि में न्यूनतम दंड उपबंधित किया गया है तो वह अभियुक्त को ऐसे न्यूनतम दंड के आधे का दंड दे सकेगा और पूर्व में किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध नहीं ठहराया गया है, वह अभियुक्त को ऐसे न्यनतम दंड के एक चौथाई का दंड दे सकेगा;
(d) घ) खंड (b) (ख) के अधीन पक्षकारों को सुनने के पश्चात्, यदि न्यायालय को पता चलता है कि अभियुक्त द्वारा किया गया अपराध खंड (b) (ख) या खंड (c) (ग) के अंतर्गत नहीं आता है तो वह अभियुक्त को, ऐसे अपराध के लिए उपबंधित या बढाए जा सकने वाले दंड के एक-चौथाई का दंड दे सकेगा और जहां अभियुक्त प्रथम अपराध ी है और पूर्व में किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध नहीं ठहराया गया है, वहा अभियुक्त को ऐसे अपराध के लिए उपबंधित या विस्तारणीय दंड के १/६ का दंड दे सकेगा ।
