भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २५१ :
आरोप विरचित करना :
१) यदि पूर्वोक्त रुप से विचार, और सुनवाई के पश्चात् न्यायाधीश की यह राय है कि ऐसी उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने ऐसा अपराध किया है जो –
(a) क) अनन्यत: सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय नहीं है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप विरचित कर सकता है और आदेश द्वारा, मामले को विचारण के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को अन्तरित कर सकता है या कोई अन्य प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट, ऐसी तारीख को जो वह ठिक समझे, अभियुक्त को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होन का निदेश दे सकेगा, और तब ऐसा मजिस्ट्रेट उस मामले का विचारण पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वाराण्ट मामलों के विचारण के लिए प्रक्रिया के अनुसार करेगा;
(b) ख) अनन्यत: उस न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप पर सुनवाई की पहली तारीख से साठ दिवस की अवधि के भीतर अरोप लिखित रुप में विरचित करेगा ।
२) जहाँ न्यायाधिश उपधारा (१) के खण्ड (ख)(b)के अधीन कोई आरोप विरचित करता है वहाँ वह आरोप या तो शारीरिक रुप से या श्रव्य-दृश्य इलैक्ट्रानिक साधनों से उपस्थित अभियुक्त को पढकर सुनाया और समझाया जाएगा और अभियुक्त से यह पुछा जाएगा कि क्या वह उस अपराध का, जिसका आरोप लगाया गया है, दोषी होने का अभिवचन करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है ।