भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २४५ :
जब वह अपराध, जो साबित हुआ है, आरोपित अपराध के अन्तर्गत है :
१) जब किसी व्यक्ति पर ऐसे अपराध का आरोप है जिसमें कई विशिष्टियाँ है, जिनमें से केवल कुछ के संयोग से एक पूरा छोटा अपराध बनता है और ऐसा संयोग साबित हो जाता है, किन्तु शेष विशिष्टियाँ साबित नहीं होती है, तब वह उस छोटे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि उस पर उसका आरोप नहीं था ।
२) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप लगाया गया है और ऐसे तथ्य साबित कर दिए जाते है जो उसे घटाकर छोटा अपराध कर देते है तब वह छोटे अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्दपि उस पर उसका आरोप नहीं था ।
३) जब किसी व्यक्ति पर किसी अपराध का आरोप है तब वह उस अपराध को करने के प्रयत्न के लिए दोषसिद्ध किया जा सकता है यद्यपि प्रयत्न के लिए पृथक् आरोप न लगाया गया हो ।
४) इस धारा की कोई बात किसी छोटे अपराध के लिए उस दशा में दोषसिद्ध प्राधिकृत करेन वाली न समझी जाएगी जिसमें ऐसे छोटे अपराध के बारे में कार्यवाही शुरु करने के लिए अपेक्षित शर्तें पूरी नहीं हुई है ।
दृष्टांत :
(a) क) (क) पर उस संपत्ति के बारे में, जो वाहक के नाते उसके पास न्यस्त है, आपराधिक न्यासभंग के लिए भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३१६ की उपधारा (३) के अधीन आरोप लगाया गया है । यह प्रतीत होता है कि उस संपत्ति के बारे में धारा ३१६ की उपधारा (२) के अधीन उसने आपराधिक न्यासभंग तो किया है किन्तु वह उसे वाहक के रुप में न्यस्त नहीं की गई थी । वह धारा ३१६ की उपधारा (२) के अधीन आपराधिक न्यासभंग के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।
(b) ख) (क) पर घोर उपहति कारित करने के लिए भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ११७ की उपधारा (२) के अधीन आरोप है । वह साबित कर देता है कि उसने घोर और आकस्मिक प्रकोपन पर कार्य किया था । वह उस संहिता की धारा १२२ की उपधारा (२) के अधीन दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।