भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २४३ :
एक से अधिक अपराधों के लिए विचारण :
१) यदि परस्पर संबद्ध ऐसे कार्यो के, जिनसे एक ही संव्यवहार बनता है, एक क्रम में एक से अधिक अपराध एक ही व्यक्ति द्वारा किए गए हैं तो ऐसे प्रत्येक अपराध के लिए एक ही विचारण में उस पर आरोप लगाया जा सकता है और उसका विचारण किया जा सकता है ।
२) जब धारा २३५ की उपधारा (२) में या धारा २४२ की उपधारा (१) में उपबंधित रुप में, आपराधिक न्यायभंग या बेइमानी से संपत्ति के दुर्विनियोग के एक या अधिक अपराधों से आरोपित किसी व्यक्ति पर उस अपराध या अपराधों के किए जाने को सुकर बनाने या छिपाने के प्रयोजन से लेखाओं के मिथ्याकरण के एक या अधिक अपराधों का अभियोग है, तब उस पर ऐसे प्रत्येक अपराध के लिए एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है ।
३) यदि अभिकथित कार्यों से तत्समय प्रवृत्त किसी विधि की, जिससे अपराध परिभाषित या दण्डनीय हो, दो या अधिक पृथक् परिभाषाओं में आने वाले अपराध बनते है तो जिस व्यक्ति पर उन्हें करने का अभियोग है उस पर ऐस अपराधों में से प्रत्येक के लिए एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है ।
४) यदि कई कार्य, जिनमें से एक से या एक से अधिक से स्वयं अपराध बनते है, मिलकर भिन्न अपराध बनते है तो ऐसे कार्यों से मिलकर बने अपराध के लिए और ऐसे कार्यों में से किसी एक या अधिक द्वारा बने किसी अपराध के लिए अभियुक्त व्यक्ति पर एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है ।
५) इस धारा की कोई बात भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ९ पर प्रभाव न डालेगी ।
उपधारा (१) के दृष्टांत :
(a) क) (क) एक व्यक्ति (ख) को, जो विधिपूर्ण अभिरक्षा में है, छुडाता है और ऐसा करने में कांस्टेबल (ग) का, जिसकी अभिरक्षा में (ख) है, घोर उपहति कारित करता है । (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा १२१ की उपधारा (२) और २६३ के अधीन अपराधों के लिए आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।
(b) ख) (क) दिन में गृहभेदन इस आशय से करता है कि बलात्संग करे और ऐसे प्रवेश किए गए गृह में (ख) की पत्नी से बलात्संग करता है । (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ६४ और धारा ३३१ की उपधारा (२) के अधीन अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।
(c) ग) (क) के कब्जे में कई मुद्राएं है जिन्हें वह जानता है कि वे कूटकृत है और जिनके संबंध में वह यह आशय रखता है कि भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३३७ के अधीन दंडनीय कई कूट रचनाएं करने के प्रयोजन से उन्हें उपयोग में लाए । (क) पर प्रत्येक मुद्रा पर कब्जे के लिए भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३४१ की उपधारा (२) के अधीन पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।
(d) घ) (ख) को क्षति कारित करने के आशय से (क) उसके विरुद्ध दांडिक कार्यवाही यह जानते हुए संस्थित करता है कि ऐसी कार्यवाही के लिए कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है और (ख) पर अपराध करने का मिथ्या अभियोग, यह जानते हुए लगाता है कि ऐसे आरोप के लिए कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है । (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा २४८ के अधीन दंडनीय दो अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।
(e) ङ) (ख) को क्षति कारित करने के आशय से (क) उस पर एक अपराध करने का अभियोग यह जानते हुए लगाता है कि ऐसे आरोप के लिए कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है । विचारण में (ख) के विरुद्ध (क) इस आशय से मिथ्या साक्ष्य देता है कि उसके द्वारा (ख) को मृत्यु से दंडनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध करवाए । (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा २३० और २४८ के अधीन अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।
(f) च) (क) छह अन्य व्यक्तियों के सहित बल्वा करने, घोर उपहति करने और ऐसे लोक सेवक पर, जो ऐसे बल्वे को दबाने का प्रयास ऐसे लोक सेवक के नाते अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में कर रहा है, हमला करने के अपराध करता है । (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ११७ की उपधारा (२), १९१ की उपधारा (२) और १९५ के अधीन अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।
(g) छ) (ख), (ग) और (घ) के शरीर को क्षति की धमकी (क) इस आशय से एक ही समय देता है कि उन्हें संत्रास कारित किया जाए । (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३५१ की उपधारा (२) और उपधारा (३) के अधीन तीनों अपराधों में से प्रत्येक के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।
दृष्टांत (क) से लेकर (छ) तक में क्रमश: निर्दिष्ट पृथक् आरोपों का विचारण एक ही समय किया जा सकेगा ।
उपधारा (३) के दृष्टांत :
(h) ज) (क) बेंत से (ख) पर सदोष आघात करता है । (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ११५ की उपधारा (२) और १३१ के अधीन अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।
(i) झ) चुराए हुए धान्य के कई बोरे (क) और (ख) को, जो यह जानते हैं कि वे चुराई हुई संपत्ति हैं, इस प्रयोजन से दे दिए जाते हैं कि वे उन्हें छिपा दें । तब (क) और (ख) उन बोरों को अनाज की खेती के तले में छिपाने में स्वेच्छया एक दूसरे की मदद करते हैं । (क) और (ख) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ३१७ की उपधारा (२) और उपधारा (५) के अधीन अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वे दोषसिद्ध किए जा सकेंगे ।
(j) ञ) (क) अपने बालक को यह जानते हुए आरक्षित डाल देती है कि यह संभाव्य है कि उससे वह उसकी मृत्यु कारित कर दे । बालक ऐसे अरक्षित डाले जाने के परिणामस्वरुप मर जाता है । (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ९३ और १०५ के अधीन अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध की जा सकेगी ।
(k) ट) (क) कूटरचित दस्तावेज को बेईमानी से असली साक्ष्य के रुप में इसलिए उपयोग में लाता है कि एक लोक सेवक (ख) को भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा २०१ के अधीन अपराध के लिए दोषसिद्ध करे । (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की (धारा ३३७ के साथ पठित) धारा २३३ और ३४० की उपधारा (२) के अधीन अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।
उपधारा (४) का दृष्टांत :
(l) ठ) (ख) को (क) लूटता है और ऐसा करने में उसे स्वेच्छया उपहति कारित करता है । (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ११५ की उपधारा (२) और धारा ३०९ की उपधारा (२) और उपधारा (४) के अधीन अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।