भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २३९ :
न्यायालय आरोप परिवर्तित कर सकता है :
१) कोई भी न्यायालय निर्णय सुनाए जाने के पूर्व किसी समय किसी भी आरोप में, परिवर्तन या परिवर्धन कर सकता है ।
२) ऐसा प्रत्येक परिवर्तन या परिवर्धन अभियुक्त को पढकर सुनाया और समझाया जाएगा ।
३) यदि आरोप में किया गया परिवर्तन या परिवर्धन ऐसा है कि न्यायालय की राय में विचारण को तुरन्त आगे चलाने से अभियुक्त पर अपनी प्रतिरक्षा करने में या अभियोजन पर मामले के संचालन में कोई प्रतिकूल प्रभाव पडने की संभावना नहीं है, तो न्यायालय ऐसे परिवर्तन या परिवर्धन के पश्चात् स्वविवेकानुसार विचारण को ऐसे आगे चला सकता है मानो परिवर्तित या परिवर्धित आरोप ही मूल आरोप है ।
४) यदि परिवर्तन या परिवर्धन ऐसा है कि न्यायालय की राय में विचारण को तुरन्त आगे चलाने से इस बात की संभावना है कि अभियुक्त पर पूर्वोक्त रुप से प्रतिकूल प्रभाव पडेगा तो न्यायालय या तो नए विचारण का निदेश दे सकता है या विचारण को इतनी अवधि के लिए, जितनी आवश्यक हो, स्थगित कर सकता है ।
५) यदि परिवर्तित या परिवर्धित आरोप में कथित अपराध ऐसा है, जिसके अभियोजन के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता है, तो उस मामलों में ऐसी मंजूरी अभिप्राप्त किए बिना कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी जब तक की उन्ही तथ्यों के आधार पर जिन पर परिवर्तित या परिवर्धित आरोप आधारित है, अभियोजन के लिए मंजूरी पहले ही अभिप्राप्त नहीं कर ली गई है ।