Bnss धारा २३६ : कब अपराध किए जाने की रीति कथित की जानी चाहिए :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २३६ :
कब अपराध किए जाने की रीति कथित की जानी चाहिए :
जब मामला इस प्रकार का है कि धारा २३४ और २३५ में वर्णित विशिष्टियाँ अभियुक्त को उस बात की, जिसका उस पर आरोप है, पर्याप्त सूचना नहीं देती तब उस रिति की, जिसमें अभिकथित अपराध किया गया, ऐसी विशिष्टियाँ भी, जैसी उस प्रयोजन के लिए पर्याप्त है, आरोप में अन्तर्विष्ट होंगी ।
दृष्टांत :
(a) क) (क) पर वस्तु-विशेष की विशेष समय और स्थान में चोरी करने का अभियोग है । यह आवश्यक नहीं है कि आरोप में वह रीति उपवर्णित हो जिससे चोरी की गई ।
(b) ख) (क) पर (ख) के साथ कथित समय पर और कथित स्थान में छल करने का अभियोग है । आरोप में वह रीति, जिससे (क) ने (ख) के साथ छल किया, उपवर्णित करनी होगी ।
(c) ग) (क) पर कथित समय पर और कथित स्थान में मिथ्या साक्ष्य देने का अभियोग है । आरोप में (क) द्वारा दिए गए साक्ष्य का वह भाग उपवर्णित करना होगा जिसका मिथ्या होना अभिकथित है ।
(d) घ) (क) पर लोकसेवक (ख) को उसके लोक कृत्यों के निर्वहन में कथित समय पर और कथित स्थान में बाधित करने का अभियोग है । आरोप में वह रीति उपवर्णित करनी होगी जिससे (क) ने (ख) को उसके कृत्यों के निर्वहन में बाधित किया ।
(e) ङ) (क) पर कथित समय पर और कथित स्थान में (ख) की हत्या करने का अभियोग है । यह आवश्यक नहीं है कि आरोप में वह रीति कथित हो जिससे (क) ने (ख) की हत्या की ।
(f) च) (क) पर (ख) को दंड से बचाने के आशय से विधि के निदेश की अवज्ञा करने का अभियोग है । आरोपित अवज्ञा और अतिलंघित विधि का उपवर्णन आरोप में करना होगा ।

Leave a Reply