भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
अध्याय १८ :
आरोप :
(A) क – आरोपों का प्ररुप :
धारा २३४ :
आरोप की अन्तर्वस्तु :
१) इस संहिता के अधीन प्रत्येक आरोप में उस अपराध का कथन होगा जिसका अभियुक्त पर आरोप है ।
२) यदि उस अपराध का सृजन करने वाली विधि द्वारा उसे कोई विनिर्दिष्ट नाम दिया गया है तो आरोप में उसी नाम से उस अपराध का वर्णन किया जाएगा ।
३) यदि उस अपराध का सृजन करने वाली विधि द्वारा उसे कोई विनिर्दिष्ट नाम नहीं दिया गया है तो अपराध की इतनी परिभाषा देनी होगी जितनी से अभियुक्त को उस बात की सूचना हो जाए जिसका उस पर आरोप है ।
४) वह विधि और विधि की वह धारा, जिसके विरुद्ध अपराध किया जाना कथित है, आरोप में उल्लिखित होगी ।
५) यह तथ्य कि आरोप लगा दिया गया है इस कथन के समतुल्य है कि विधि द्वारा अपेक्षित प्रत्येक शर्त जिससे आरोपित अपराध बनता है उस विशिष्ट मामले में पूरी गई है ।
६) आरोप न्यायालय की भाषा में लिखा जाएगा ।
७) यदि अभियुक्त किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किये जाने पर किसी पश्चात्वर्ती अपराध के लिए ऐसी पूर्व दोषसिद्धि के कारण वर्धित दण्ड का या भिन्न प्रकार के दण्ड का भागी है और यह आशयित है कि ऐसी पूर्व दोषसिद्धि उस दण्ड को प्रभावित करने के प्रयोजन के लिए साबित की जाए जिसे न्यायालय पश्चात्वर्ती अपराध के लिए देना ठिक समझे तो पूर्व दोषसिद्धी का तथ्य, तारीख और स्थान आरोप में कथित होंगे और यदि ऐसा कथन रह गया है तो न्यायालय दण्डादेश देने के पूर्व किसी समय भी उसे जोड सकेगा ।
दृष्टांत :
(a) क) (क) पर (ख) की हत्या का आरोप है । यह बात इस कथन के समतुल्य है कि (क) का कार्य भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा १०० और ९९ में दी गई हत्या की परिभाषा के अंदर आता है और वह उसी संहिता के साधारण अपवादों में से किसी के अंदर नहीं आता और वह धारा १०१ के पांच अपवादों में से किसी के अंदर भी नहीं आता, या यदि वह अपवाद १ के अंदर आता है तो उस अपवाद के तीन परंतुकों में से कोई न कोई परंतुक उसे लागू होता है ।
(b) ख) (क) पर असन के उपकरण द्वारा (ख) को स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के लिए भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ११८ की उपधारा (२) के अधीन आरोप है । यह इस कथन के समतुल्य है कि उस मामले के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा १२२ की उपधारा (२) द्वारा उपबंध नहीं किया गया है और साधारण अपवाद उसको लागू नहीं होते है ।
(c) ग) (क) पर हत्या, छल, चोरी, उद्दापन या आपराधिक अभित्रास या मिथ्या संपत्ति चिन्ह को उपयोग में लाने का अभियोग है । आरोप में उन अपराधों की भारतीय न्याय संहिता २०२३ में दी गई परिभाषाओं के निर्देश के बिना यह कथन हो सकता है कि (क) ने हत्या या छल या चोरी या उद्दापन या आपराधिक अभित्रास किया है या यह कि उसने मिथ्या संपत्ति चिन्ह का उपयोग किया है; किन्तु प्रत्येक दशा में वे धाराएं, जिनके अधीन अपराध दंडनीय है, आरोप में निर्दिष्ट करनी पडेंगी ।
(d) घ) (क) पर भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा २१९ के अधीन यह आरोप है कि उसने लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित संपत्ति के विक्रय में साशय बाधा डाली है । आरोप उन शब्दों में ही होना चाहिए ।