भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
अध्याय १७ :
मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही का प्रारंभ किया जाना :
धारा २२७ :
आदेशिका का जारी किया जाना :
१) यदि किसी अपराध का संज्ञान करने वाले मजिस्ट्रेट की राय में कार्यवाही करेन के लिए पर्याप्त आधार है और –
(a) क) मामला समन-मामला प्रतीत होता है तो वह अभियुक्त की हाजिरी के लिए समन जारी करेगा; अथवा
(b) ख) मामला वारण्ट -मामला प्रतीत होता है तो वह अपने या (यदि उसकी अपनी अधिकारिता नहीं है तो) अधिकारीता वाले किसी अन्य मजिस्ट्रेट के समक्ष अभियुक्त के निश्चित समय पर लाए जाने या हाजिर होने के लिए वारण्ट, या यदि ठीक समझता है समन, जारी कर सकता है :
परन्तु समन या वारंट, इलैक्ट्रानिक साधनों के माध्यम से भी जारी किए जा सकेंगे ।
२) अभियुक्त के विरुद्ध उपधारा (१) के अधीन तब तक कोई समन या वारण्ट किया जाएगा जब तक अभियोजन के साक्षियों की सूची फाइल नहीं कर दी जाती है ।
३) लिखित परिवाद पर संस्थित कार्यवाही में उपधारा (१) के अधीन जारी किए गए प्रत्येक समन या वारण्ट के साथ उस परिवाद की एक प्रतिलिपि होगी :
४) जब तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन कोई आदेशिका फीस या अन्य फीस संदेय है तब कोई आदेशिक तब तक जारी नहीं की जाएगी जब तक फीस नहीं दे दी जाती है और यदि ऐसी फीस उचित समय के अन्दर नहीं दी जाती है तो मजिस्ट्रेट परिवाद को खारिज कर सकता है।
५) इस धारा की कोई बात धारा ९० के उपबंधों पर प्रभाव डालने वाली नहीं समझी जाएगी ।