भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २१७ :
राज्य के विरुद्ध अपराधों के लिए और ऐेसे अपराध करने के लिए आपराधिक षडयंत्र के लिए अभियोजन :
१) कोई न्यायालय –
(a) क) भारतीय न्याय संहिता २०२३ के अध्याय ७ के अधीन या धारा १९६, धारा २९९ या धारा ३५३ की उपधारा (१) के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का; अथवा
(b) ख) ऐसा अपराध करने के लिए आपराधिक षडयंत्र का; अथवा
(c) ग) भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ४७ में यथावर्णित किसी दुष्प्रेरण का,
संज्ञान केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं ।
२) कोई न्यायालय –
(a) क) भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा १९७ या धारा ३५३ की उपधारा (२) या (३) के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का, अथवा
(b) ख) ऐसा अपराध करने के लिए आपराधिक षडयंत्र का,
संज्ञान, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं ।
३) कोई न्यायालय भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ६१ की उपधारा (२) के अधीन दण्डनीय किसी आपराधिक षडयंत्र के किसी ऐसे अपराध का, जो मृत्यु, आजीवन कारावास, या दो वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कठिन कारावास से दण्डनीय अपराध करने के आपराधिक षडयंत्र से भिन्न है, संज्ञान तब तक नहीं करेगा जब तक राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट ने कार्यवाही शुरु करने के लिए सम्मति नहीं दे दी है :
परन्तु जहाँ आपराधिक षडयंत्र ऐसा है जिसे धारा २१५ के उपबंध लागू है वहाँ ऐसी कोई सम्मति आवशयक न होगी ।
४) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार उपधारा (१) या उपधारा (२) के अधीन मंजूरी देने के पूर्व और जिला मजिस्ट्रेट, उपधारा (२) के अधीन मंजूरी देने से पूर्व, और राज्य सरकार या जिला मजिस्ट्रेट, उपधारा (३) के अधीन सम्मति देने के पूर्व, ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा जो निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का नहीं है, प्रारंभिक अन्वेषण किए जाने का आदेश दे सकता है और उस दशा में ऐसे पुलिस अधिकारी की वे शक्तियाँ होंगी जो धारा १७४ की उपधारा (३) में निर्दिष्ट है ।