भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २०७ :
स्थानीय अधिकारीता के परे किए गए अपराध के लिए समन या वारण्ट जारी करने की शक्ति :
१) जब किसी प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण दिखाई देता है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर के किसी व्यक्ति ने ऐसी अधिकारिता के बाहर, (चाहे भारत के अन्दर या बाहर) ऐसा अपराध किया है जिसकी जाँच या विचारण धारा १९७ से २०५ तक की धाराओं के (जिनके अन्तर्गत ये दोनों धाराएँ भी है), उपबंधों के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन ऐसी अधिकारिता के अन्दर नहीं किया जा सकता है, किन्तु जो तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन भारत में विचारणीय है तब ऐसा मजिस्ट्रेट उस अपराध का जाँच ऐसे कर सकता है मानो वह ऐसी स्थानीय अधिकारिता के अन्दर किया गया है और ऐसे व्यक्ति को ऐसे अपराध की जाँच या विचारण करने की अधिकारीता वाले मजिस्ट्रेट के पास भेज सकता है या यदि ऐसा अपराध मृत्यु से या आजीवन कारावास से दण्डनीय नहीं है और ऐसा व्यक्ति इस धारा के अधीन कार्यवाही करने वाले मजिस्ट्रेट को समाधानप्रद रुप में जमानत देने के लिए तैयार और इच्छुक है तो ऐसी अधिकारीता वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष उसकी हाजिरी के लिए बंधपत्र या जमानतपत्र ले सकता है ।
२) जब ऐसी अधिकारीता वाले मजिस्ट्रेट एक से अधिक है और इस धारा के अधीन कार्य करने वाला मजिस्ट्रेट अपना समाधान नहीं कर पाता है कि किस मजिस्ट्रेट के पास या समक्ष ऐसा व्यक्ति भेजा जाए या हाजिर होने के लिए आबद्ध किया जाए, तो मामले की रिपोर्ट उच्च न्यायालय के आदेश के लिए कि जाएगी ।