भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा १८७ :
जब चौबीस घण्टे के अन्दर अन्वेषण पूरा न किया जा सके तब प्रक्रिया :
१) जब कभी कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुद्ध है और यह प्रतीत हो कि अन्वेषण धारा ५७ द्वारा नियत चौबीस घण्टे की अवधि के अन्दर पूरा नहीं किया जा सकता और वह विश्वास करने के लिए आधार है कि अभियोग या इत्तिला दृढ आधार पर है तब पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या यदि अन्वेषण करने वाला पुलिस अधिकारी उपनिरिक्षक से निम्नतर पंक्ति का नहीं है तो वह, निकटतम मजिस्ट्रेट को इसमें इसके पश्चात् विहित डायरी की मामले से संबंधित प्रविष्टियों की एक प्रतिलिपी भेजेगा और साथ ही अभियुक्त व्यक्ति को भी उस मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा ।
२) वह मजिस्ट्रेट, जिसके पास अभियुक्त व्यक्ति इस धारा के अधीन भेजा जाता है, या विचार किए बिना चाहे उस मामलें के विचारण की उसे अधिकारीता हो या न हो, अभियुक्त व्यक्ति पर विचार करने के पश्चात कि क्या वह जमानत पर छोडा गया है या उसकी जमानत रद्द कर दी गई है, अभियुक्त का ऐसी अभिरक्षा में, जैसी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझे इतनी अवधि के लिए, जो कुल मिलाकर पुर्णत: या भागत: पंद्रह दिन से अधिक न होगी, उपधारा (३) में यथा उपबंधित यथास्थिति, नब्बे दिनों या साठ दिनों की उसकी निरुद्ध अवधि में से पहले चालीस दिन या साठ दिन के दौरान किसी भी समय निरुद्ध किया जाना समय-समय पर प्राधिकृत कर सकता है तथा यदि उसे मामले के विचारण की या विचारण के लिए सुपुर्द करने की अधिकारिता नहीं है और अधिक निरुद्ध रखना उसके विचार में अनावश्यक है तो वह अभियुक्त का ऐसे मजिस्ट्रेट के पास, जिसे ऐसी अधिकारिता है, भिजवाने के लिए आदेश दे सकता है।
३) मजिस्ट्रेट अभियुक्त (आरोपी) व्यक्ति का निरोध पंद्रह दिन की अवधि से आगे के लिए उस दशा में प्राधिकृत कर सकता है जिसमें उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा करने के लिए पर्याप्त आधार है, किन्तु कोई भी मजिस्ट्रेट अभियुक्त व्यक्ति का इस उपधारा के अधीन अभिरक्षा कें निरोध-
एक) कुल मिलाकर नब्बे दिन से अधिक की अवधि के लिए प्राधिकृत नहीं करेगा जहाँ अन्वेषण ऐसे अपराध के सम्बन्ध में है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दस वर्ष की अवधि या अधिक अवधि के लिए कारावास दण्डनीय है;
दो) कुल मिलाकर साठ दिन से अधिक की अवधि के लिए प्राधिकृत नहीं करेगा जहाँ अन्वेषण किसी अन्य अपराध के सम्बन्ध में है,
और, यथास्थिति, नब्बे दिन या साठ दिन की उक्त अवधि की समाप्ति पर यदि अभियुक्त व्यक्ति जमानत देने के लिए तैयार है और दे देता है तो उसे जमानत पर छोड दिया जाएगा और यह समझा जाएगा की इस उपधारा के अधीन जमानत पर छोडा गया प्रत्येक व्यक्ति अध्याय ३५ के प्रयोजनों के लिए उस अध्याय के उपबन्धों के अधीन छोडा गया है.
४) कोई मजिस्ट्रेट इस धारा के अधीन पुलिस की अभिरक्षा में अभियुक्त के निरोध को तब तक प्राधिकृत नहीं करेगा जब तक अभियुक्त को उसके समक्ष प्रथम बार सशरीर तथा पश्चात्वर्ती प्रत्येक समय पर जब तक अभियुक्त पुलिस की अभिरक्षा में रहता है, व्यक्तिगत रुप से पेश नहीं किया जाता है किन्तु मजिस्ट्रेट अभियुक्त के या तो व्यक्तिगत रुप से या श्रव्य-दृश्य इलैक्ट्रानिक साधनों द्वारा पेश किए जाने पर न्यायिक अभिरक्षा में निरोध को और बढा सकेगा ।
५) कोई द्वितिय वर्ग मजिस्ट्रेट, जो उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त नहीं किया गया है, पुलिस की अभिरक्षा में निरोध प्राधिकृत न करेगा ।
स्पष्टीकरण १ :
शंकाएँ दूर करने के लिए इसके द्वारा यह घोषित किया जाता है कि उपधारा (३) में विनिर्दिष्ट अवधि समाप्त हो जाने पर भी अभियुक्त व्यक्ति तब तक अभिरक्षा में निरुद्ध रखा जाएगा जब तक कि वह जमानत नहीं दे देता है ।
स्पष्टीकरण २ :
यदि यह प्रश्न उठता है कि क्या कोई अभियुक्त व्यक्ति मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था जैसा कि उपधारा (४) के अधीन अपेक्षित है, तो अभियुक्त व्यक्ति की पेशी को यथास्थिति, निरोध प्राधिकृत करने वाले आदेश पर उसके हस्ताक्षर से साबित किया जा सकता है या श्रव्य-दृश्य इलैक्ट्रानिक साधनों द्वारा अभियुक्त व्यक्ति की पेशी के सम्बन्ध में मजिस्ट्रेट द्वारा प्रमाणित आदेश से साबित किया जा सकता है :
परन्तु १८ वर्ष से कम आयु की स्त्री के मामले में प्रतिप्रेषण गृह या मान्यता प्राप्त सामाजिक संस्था की अभिरक्षा में निरोध को प्राधिकृत किया जाएगा ।
परन्तु यह और कि किसी व्यक्ति को केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा न्यायिक अभिरक्षा या जेल के रुप में घोषित स्थान के अधीन पुलिस अभिरक्षा या जेल में पुलिस थाने से भिन्न स्थान पर अभिरक्षा में नहीं रखा जाएगा ।
६) उपधारा (१) से उपधारा (५) में किसी बात के होते हुए भी, पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी या अन्वेषन करने वाला पुलिस अधिकारी, यदि उपनिरिक्षक से निम्नतर पंक्ति का नहीं है तो, जहाँ मजिस्ट्रेट न मिल सकता हो, वहाँ कार्यपालक मजिस्ट्रेट को जिसको मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ प्रदान की गई है, इसमें इसके पश्चात् विहित डायरी की मामले से संबंधित प्रविष्टियों की एक प्रतिलिपि भेजेगा और साथ ही अभियुक्त व्यक्ति को भी उस कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा और तब ऐसा कार्यपालक मजिस्ट्रेट लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से किसी अभियुक्त व्यक्ति का ऐसी अभिरक्षा में निरोद, जैसा वह ठीक समझे, ऐसी अवधि के लिए प्राधिकृत कर सकता है जो कुल मिलकर सात दिन से अधिक नहीं हो और ऐसे प्राधिकृत निरोध की अवधि की समाप्ति पर उसे जमानत पर छोड दिया जाएगा, किन्तु उस दशा में नहीं जिसमें अभियुक्त व्यक्ति के आगे और निरोध के लिए आदेश ऐसे मजिस्ट्रेट द्वारा किया गया है जो ऐसा आदेश करने के लिए सक्षम है और जहाँ ऐसे आगे और निरोध के लिए आदेश किया जाता है वहाँ वह अवधि, जिसके दौरान अभियुक्त व्यक्ति इस उपधारा के अधीन किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के आदेशों के अधीन अभिरक्षा में निरुद्ध किया गया था, उपधारा (३) में विनिर्दिष्ट अवधि की संगणना करने में हिसाब में ली जाएगी :
परन्तु उक्त अवधि की समाप्ति के पूर्व कार्यपालक मजिस्ट्रेट, मामले के अभिलेख, मामले से संबंधित डायरी की प्रविष्टियों के सहित जो, यथास्थिति, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी या अन्वेषण करने वाले अधिकारी द्वारा उसे भेजी गई थी, निकटतम न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजेगा ।
७) इस धारा के अधीन पुलिस अभिरक्षा में निरोध प्राधिकृत करने वाला मजिस्ट्रेट ऐसा करने के अपने कारण अभिलिखित करेगा ।
८) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से भिन्न कोई मजिस्ट्रेट जो ऐसा आदेश दे अपने आदेश की एक प्रतिलिपि आदेश देने के अपने कारणों के सहित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को भेजेगा ।
९) यदि समन मामले के रुप में मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में अन्वेषण, अभियुक्त के गिरफ्तार किए जाने की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर समाप्त नहीं होता है तो मजिस्ट्रेट अपराध में आगे और अन्वेषण को रोकने के लिए आदेश करेगा जब तक अन्वेषण करने वाला अधिकारी मजिस्ट्रेट का समाधान नहीं कर देता है कि विशेष कारणों से और न्याय के हित में छह मास की अवधि के आगे अन्वेषण जारी रखना आवश्यक है ।
१०) जहाँ उपधारा (९) के अधीन किसी अपराध का आगे और अन्वेषण रोकने के लिए आदेश दिया गया है वहाँ यदि सेशन न्यायाधिश का उसे आवेदन दिए जाने पर या अन्यथा, समाधान हो जाता है कि उस अपराध का आगे और अन्वेषण किया जाना चाहिए तो वह उपधारा (९) के अधीन किए गए आदेश को रद्द कर सकता है और यह निदेश दे सकता है कि जमानत और अन्य मामले के बारे में ऐसे निदेशों के अधीन रहते हुए जो वह विनिर्दिष्ट करे, अपराध का आगे और अन्वेषण किया जाए ।