भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा १८१ :
पुलिस से किए गए कथनों का हस्ताक्षरित न किया जाना :
१) किसी व्यक्ति द्वारा किसी पुलिस अधिकारी से इस अध्याय के अधीन अन्वेषण के दौरान किया गया कोई कथन, यदि लेखबद्ध किया जाता है तो कथन करने वाले व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित नहीं किया जाएगा, और न ऐसा कोई कथन या उसका कोई अभिलेख चाहे वह पुलिस डायरी में हो या न हो, और न ऐसे कथन या अभिलेख का कोई भाग ऐसे किसी अपराध की, जो ऐसा कथन किए जाने के समय अन्वेषणाधीन था, किसी जाँच या विचारण में, इसमें इसके पश्चात् यथा उपबंधित के सिवाय, किसी भी प्रयोजन के लिए उपयोग में लाया जाएगा :
परन्तु जब कोई ऐसा साक्षी, जिसका कथन उपर्युक्त रुप में लेखबद्ध कर दिया गया है, ऐसी जाँच या विचारण में अभियोजन की और से बुलाया जाता है तब यदि उसके कथन का कोई भाग, सम्यक् रुप से साबित कर दिया गया है ता, अभियुक्त (आरोपी) द्वारा और न्यायालय की अनुज्ञा से अभियोजन द्वारा उसका उपयोग ऐसे साक्षा का खण्डन करने के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम २०२३ की धारा १४८ द्वारा उपबंधित रीति से किया जा सकता है और जब ऐसे कथन का कोई भाग इस प्रकार उपयोग में लाया जाता है तब उसका कोई भाग ऐसे साक्षी की पुन:परिक्षा में भी, किन्तु उसकी प्रतिपरीक्षा में निर्दिष्ट किसी बात का स्पष्टीकरण करने के प्रयोजन से ही, उपयोग में लाया जा सकता है ।
२) इस धारा की किसी बात के बारे में यह न समझा जाएगा कि वह भारतीय साक्ष्य अधिनियम २०२३ की धारा २६ के खण्ड (क) (a)के उपबंधों के अन्दर आने वाले किसी कथन को लागू होती है या उस अधिनियम की धारा २३ की उपधारा (२) के परंतुक के उपबंधों पर प्रभाव डालती है ।
स्पष्टीकरण :
उपधारा (१) में निर्दिष्ट कथन में किसी तथ्य या परिस्थिति के कथन का लोप या खण्डन हो सकता है यदि वह उस संदर्भ को ध्यान कें रखते हुए जिसमें ऐसा लोप किया गया है महत्वपूर्ण और अन्यथा संगत प्रतीत होता है और कोइ लोप किसी विशिष्ट संदर्भ में खण्डन है या नहीं यह तथ्य का प्रश्न होगा ।