भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा १२९ :
आभ्यासिक (स्वभावत:) अपराधियों से सदाचार के लिए प्रतिभूति (जमानत) :
जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को यह इत्तिला मिलती है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो –
(a) क) अभासत: लुटेरा, गृहभेदक, चोर या कूटरचयिता है; अथवा
(b) ख) चुराई हुई संपत्ति का, उसे चुराई हुई जानते हुए, अभासत: प्रापक (प्राप्त करने वाला) है; अथवा
(c) ग) अभ्यासत: चोरों की संरक्षा करता है या चोरों को संश्रय देता है या चुराई हुई संपत्ति को छिपाने या उसके व्ययन में सहायता देता है; अथवा
(d) घ) व्यपहरण, अपहरण, उद्यापन,छल या रिष्टि का अपराध भारतीय न्याय संहिता २०२३ के अध्याय १० के अधीन या उस संहिता की धारा १७८, धारा १७९, धारा १८० या धारा १८१ के अधीन दण्डनीय कोई अपराध अभ्यासत: करता है या करने का प्रयत्न करता है या करने का दुष्प्रेरण करता है; अथवा
(e) ङ) ऐसे अपराध अभ्यासत: करता है या करने का प्रयत्न करता है या करने का दुष्प्रेरण करता है जिनमें परिशांति भंग समाहित है; अथवा
(f) च) कोई ऐसा अपराध अभ्यासत: करता है या करने का प्रयत्न करता है या करने का दुष्प्रेरण करता है जो :-
एक) निम्नलिखित अधिनियमों में से एक या अधिक के अधीन कोई अपराध है, अर्थात-
(a) क) औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम,१९४० (१९४० का २३);
(b) ख) विदेशीयो विषयक अधिनियम १९४६ (१९४६ का ३१);
(c) ग) कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकिर्ण उपबंध अधिनियम, १९५२ (१९५२ का १९);
(d) घ) आवश्यक वस्तु अधिनियम, १९५५ (१९५५ का १०);
(e) ङ) सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, १९५५ (१९५५ का २२);
(f) च) सीमा-शुल्क अधिनियम, १९६२ (१९६२ का ५२);
(g) छ) खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम २००६ (२००६ का ३४); या
दो) जमाखोरी या मुनाफाखोरी अथवा खाद्य या औषधि के अपमिश्रण या भ्रष्टाचार के निवारण के लिए उपबंध करने वाली किसी अन्य विधि के अधीन दण्डनीय कोई अपराध है; या
(g) छ) ऐसा दु:साहसिक और भयंकर है कि उसका प्रतिभूति के बिना स्वच्छन्द रहना समाज के लिए परिसंकटमय है,
तब ऐसा मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से अपेक्षा कर सकता है कि वह कारण दर्शित करे कि तीन वर्ष से अनधिक की इतनी अवधि के लिए, जितनी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझता है, उसे अपने सदाचार के लिए जमानतपत्र निष्पादित करने का आदेश क्यों न दिया जाए ।