भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा १२७ :
राजद्रोहात्मक बातों को फैलाने वाले व्यक्तियां से सदाचार के लिए प्रतिभूति (जमानत) :
१) जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट को इत्तिला मिलती है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर कोई ऐसा व्यक्ति है जो ऐसी अधिकारिता के अन्दर या बाहर :-
एक) या तो मौखिक रुप से या लिखित रुप से या किसी अन्य रुप से निम्नलिखित बातें साशय फैलाता है या फैलाने का दुष्प्रेरण करता है, अर्थात –
(a) क) कोई ऐसी बात, जिसका प्रकाशन भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा १५२ या धारा १९६ या धारा १९७ या धारा २९९ के अधीन दण्डनीय है; अथवा
(b) ख) किसी न्यायाधीश से जो अपने पदीय कर्तव्यों के निर्वहन में कार्य कर रहा है या कार्य करने का तात्पर्य रखता है, संबद्ध कोई बात जो भारतीय न्याय संहिता २०२३ के अधीन आपराधिक अभित्रास (धमकि) या मानहानि की कोटि में आती है; अथवा
दो) भारतीय न्या संहिता २०२३ की धारा २९४ में यथानिर्दिष्ट कोई अश्लील वस्तु विक्रय के लिए बनाता, उत्पादित करता, प्रकाशित करता या रखता है, आयात करता है, निर्यात करता है, प्रवहण करता है, विक्रय करता है, भाडे पर देता है, वितरित करता है, सार्वजनिक रुप से प्रदर्शित करता है या किसी अन्य प्रकार से परिचालित करता है,
और उस मजिस्ट्रेट की राय में कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है तब ऐसा मजिस्ट्रेट, ऐसे व्यक्ति से इसमें इसके पश्चात् उपबंधित रीति से अपेक्षा कर सकता है कि वह कारण दर्शित करे कि एक वर्ष से अनधिक की इतनी अवधि के लिए जितनी वह मजिस्ट्रेट ठीक समझे, उसे अपने सदाचार के लिए बंधपत्र या जमानतपत्र निष्पादित करने के लिए आदेश क्यों न दिया जाए ।
२) प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम १८६७ (१८६७ का २५) में दिए गए नियमों के अधीन रजिस्ट्रिकृत और उनके अनुरुप सम्पादित, मुद्रित और प्रकाशित किसी प्रकाशन में अन्तर्विष्ट किसी बात के बारे में कोई कार्यवाही ऐसे प्रकाशन के सम्पादक, स्वत्वधारी, मुद्रक या प्रकाशक के विरुद्ध राज्य सरकार के या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त किए गए किसी अधिकारी के आदेश से या उसके प्राधिकार के अधीन ही की जाएगी, अन्यथा नहीं ।