Bnss धारा १०७ : संपत्ति की कुर्की, अभिग्रहण, जब्ती या वापसी :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा १०७ :
संपत्ति की कुर्की, अभिग्रहण, जब्ती या वापसी :
१) जहां कोई पुलिस अधिकारी को अन्वेषण करते समय यह विश्वास करने का कारण है कि कोई संपत्ति प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: किसी अपराधी क्रियाकलाप के परिणामस्वरुप या किसी अपराध के कारित करने से व्युत्पन्न होती है या प्राप्त की जाती है तो वह यथास्थिति पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त के अनुमोदन से ऐसी संपत्ति के अधीग्रहण या कुर्की के लिए मामले का विचारण करने के लिए अपराध का संज्ञान लेते हुए अधिकारिता का प्रयोग करने वाले न्यायालय या मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकेगा ।
२) यदि न्यायालय या मजिस्ट्रेट को साथ्य लेने पूर्व या पश्चात् यह विश्वास करने का कारण है कि सभी या ऐसी संपत्तियों में से कोई, अपराध के लिए प्रयुक्त की जाती है तो न्यायालय या मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को कारण दर्शाते हुए चौदह दिनों के भीतर नोटिस जारी कर सकेगा कि क्यों न कुर्की या अभिग्रहण का आदेश की जाए ।
३) जहां उपधारा (२) के अधीन किसी व्यक्ति को जारी की गई सूचना यह विनिर्दिष्ट करती है कि संपत्ति किसी ऐसे व्यक्ति के नामित किसी अन्य व्यक्ति द्वारा धारित की जा रही है तो ऐसी सूचना की एक प्रति ऐसे अन्य व्यक्ति को भी तामील की जा सकेगी ।
४) न्यायालय या मजिस्ट्रेट, स्पष्टीकरण, यदि कोई हो, पर विचार करने के पश्चात् उपधारा (२) के अधीन कारण बताओ नोटिस जारी कर सकेगा और ऐसे न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष तात्विक तथ्य को उपलब्ध कराने के लिए तथा ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों को युक्तियुक्त सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् ऐसी संपत्तियों के संबंध में, जो अपराध के संबंध में पाई जाती है यथास्थिति कुर्की या अभिग्रहण का आदेश पारित कर सकेगा :
परंतु यदि ऐसा व्यक्ति कारण बताओ नोटिस में विनिर्दिष्ट चौदह दिनों की अवधि के भीतर न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित नहीं होता है या न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष अपना मामला प्रस्तुत नही करता है तो न्यायालय या मजिस्ट्रेट एकतरफा आदेश पारित कर सकेगा ।
५) उपधारा (२) अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, यदि न्यायालय या मजिस्ट्रेट की यह राय है कि उक्त उपधारा के अधीन सूचना के जारी होने से कुकी या अधिग्रहण का उद्देश्य विफल हो जाएगा तो न्यायालय या मजिस्ट्रेट ऐसी संपत्ति की सीधे कुर्की या अधिग्रहण का एकतरफा अंतरिम आदेश पारित कर सकेगा और ऐसा आदेश उपधारा (६) के अधीन ऐसे आदेश तक प्रवृत्त रहेगा ।
६) यदि न्यायालय या मजिस्ट्रेट अपराध को आगे बढाने के रुप में ऐसी कुर्की या अभिगृहीत संपत्ति को पाता है तो न्यायालय या मजिस्ट्रेट आदेश द्वारा जिला मजिस्ट्रेट को ऐसे व्यक्तियों जो ऐसे अपराध से प्रभावित हुए हों अपराध के ऐसे आगमों को आनुपातिक रुप में वितरित करने का आदेश देगा ।
७) उपधारा (६) के अधीन पारित किसी आदेश की प्राप्ति पर जिला मजिस्ट्रेट साठ दिन की अवधि के भीतर अपराध के आगमों या तो स्वयं या अपने अधीनस्थ किसी प्राधिकृत अधिकारी को ऐसे वितरण को करने का आदेश देगा ।
८) यदि ऐसे आगमों को प्राप्त करने के लिए कोई दावेदार नहीं है या किसी दावेदार की पहचान नहीं की जा सकती है या दावेदारों को पुष्ट करने के पश्चात् कोई अधिशेष है तो अपराध के ऐसे आगमों को सरकार जब्त कर लेगी ।

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