भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २३२ :
जब अपराध अनन्यत: सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तब मामला उसे सुपुर्द करना :
जब पुलिस रिपोर्ट पर या अन्यथा संस्थित किसी मामले में अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है और मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि अपराध अनन्यत: सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो वह-
(a) क) धारा २३० या धारा २३१ के उपबंधों का अनुपालन करने के पश्चात् मामला सेशन न्यायालय को सुपुर्द करेगा और जमानत से संबंधित इस संहिता के उपबंधो के अधीन रहते हुए अभियुक्त व्यक्ति को अभिरक्षा में तब तक के लिए प्रतिप्रेषित करेगा जब तक ऐसी सुपुर्दगी नहीं कर दी जाती है;
(b) ख) जमानत से संबंधित इस संहिता के उपबंधों के अधीन रहते हुए विचारण के दौरान और समाप्त होने तक अभियुक्त को अभिरक्षा में प्रतिप्रेषित करेगा;
(c) ग) मामले का अभिलेख तथा दस्तावेजें और वस्तुएँ, यदि कोई हों, जिन्हें साक्ष्य में पेश किया जाना है, उस न्यायालय को भेजेगा ।
(d) घ) मामले के सेशन न्यायालय सुपुर्द किए जाने की लोक अभियोजक को सूचना देगा :
परन्तु इस धारा के अधीन प्रक्रियाएं संज्ञान लेने की तारीख से नब्बे (९०) दिनो की अवधि के भीतर पूरी की जाएंगी और मजिस्ट्रेट द्वारा कारणों को अभिलिखित करते हुए ऐसी अवधि के लिए विस्तारित की जा सकेगी जो एक सौ अस्सी (१८०) दिनों की अवधि से अधिक न हो :
परन्तु यह और कि जहां कोई आवेदन सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय किसी मामले में अभियुक्त या पीडित या ऐसे व्यक्ति द्वारा प्राधिकृत किए गए किसी व्यक्ति द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष दाखिल किया गया है तो मामले को सुपुर्द करने के लिए सेशन न्यायालय को भेजा जाएगा ।