भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २२५ :
आदेशिका के जारी किए जाने को मुल्तवी (आगे बढाना) करना :
१) यदि कोई मजिस्ट्रेट ऐसे अपराध का परिवाद प्राप्त करने पर, जिसका संज्ञान करने के लिए वह प्राधिकृत है या जो धारा २१२ के अधीन उसके हवाले किया गया है, ठिक समझता है तो और ऐसे मामले में जहाँ अभियुक्त (आरोपी) किसी ऐसे स्थान में निवास कर रहा है जो उस क्षेत्र से परे है, जिसमें वह अपनी अधिकारिता का प्रयोग करता है अभियुक के विरुद्ध आदेशिका का जारी किया जाना मुल्तवी कर सकता है और वह विनिश्चित करने के प्रयोजन से कि कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार है अथवा नहीं, या तो स्वयं ही मामले की जाँच कर सकता है या किसी पुलिस अधिकारी द्वारा या अन्य ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसको वह ठीक समझे अन्वेषण किए जाने के लिए निदेश दे सकता है :
परन्तु अन्वेषण के लिए ऐसा कोर्स निदेश वहाँ नही दिया जाएगा –
क) जहाँ मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि वह अपराध जिसका परिवाद किया गया है अनन्यत: सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है; अथवा
ख) जहाँ परिवाद किसी न्यायालय द्वारा नहीं किया गया है जब तक कि परिवादी की या उपस्थित साक्षियों की (यदी कोई हो) धारा २२३ के अधीन शपथ पर परिक्षा नहीं कर ली जाती है ।
२) उपधारा (१) के अधीन किसी जाँच में यदि मजिस्ट्रेट ठीक समझता है तो साक्षियों का शपथ पर साक्ष्य ले सकता है :
परन्तु यदि मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि वह अपराध जिसका परिवाद किया गया है अनन्यत: सेशन न्यायालय द्वार विचारणीय है तो यह परिवादी से अपने सब साक्षियों को पेश करने की अपेक्षा करेगा और उनकी शपथ पर परीक्षा करेगा ।
३) यदि उपधारा (१) के अधीन अन्वेषण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाता है जो पुलिस अधिकारी नहीं है तो उस अन्वेषण के लिए उसे वारण्ट के बिना गिरफ्तार करने की शक्ति से सिवाय पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को इस संहिता द्वारा प्रदत्त सभी शक्तियाँ होंगी ।