भारतीय न्याय संहिता २०२३
धारा २२ :
विकृत चित्त व्यक्ति का कार्य :
जब कोई बात जो ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाती है, जो उसे करते समय, चित्त-विकृति के कारण उस कार्य की प्रकृति, या यह कि जो कुछ वह कर रहा है वह दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकृल है, यह जानने में असमर्थ है; तब वह अपराध नही हैं ।