भारतीय न्याय संहिता २०२३
धारा ११६ :
घोर उपहति :
उपहति की केवल नीचे लिखी किस्मे घोर उपहति कहलाती है :
क) पुंसत्वहरण (नपुंसकता) ।
ख) दोनों में से किसी भी नेत्र की दृष्टी का स्थायी विच्छेद ।
ग) दोनों में से किसी भी कान की श्रवणशक्ती का स्थायी विच्छेद ।
घ) किसी भी अंग या जोड का विच्छेद ।
ङ) किसी भी अंग या जोड की शक्तीयों का नाश या स्थायी ऱ्हास ।
च) सिर या चेहरें का स्थायी विद्रूपीकरण ।
छ) अस्थि या दाँत का भंग या विसंधान
ज) कोई उपहति जो जीवन को संकटमय करती है या जिसक कारण उपहत व्यक्ती पंधरा दिन तक तीव्र शारीरिक पीडा में रहता है या अपने मामुली कामकाज को करने के लिए असमर्थ रहता है ।