भारतीय साक्ष्य अधिनियम २०२३
धारा १५१ :
न्यायालय विनिश्चित करेगा कि कब प्रश्न पूछा जाएगा और साक्षी को उत्तर देने के लिए कब विवश किया जाएगा :
१) यदि ऐसा कोई प्रश्न ऐसी बात से संबंधित है, जो उस बात या कार्यवाही से वहां तक के सिवाय जहाँ तक कि वह साक्षी के शील को दोष लगाकर उसकी विश्वसनीयता पर प्रभाव डालती है, सुसंगत नहीं है, तो न्यायालय विनिश्चित करेगा कि साक्षी को उत्तर देने के लिए विवश किया जाए या नहीं और यदि वह ठीक समझे, तो साक्षी को सचेत कर सकेगा कि वह उसका उत्तर देने के लिए आबद्ध नहीं है ।
२) अपने विवेक का प्रयोग करने में न्यायालय निम्नलिखित विचारों को ध्यान में रखेगा, अर्थात् :
(a) क) ऐसे प्रश्न उचित है, यदि वे ऐसी प्रकृति के है कि उनके द्वारा प्रवहण (पहुंचना) किए गए लांछन की सत्यता उस विषय में, जिसका वह साक्षी परिसाक्ष्य देता है, साक्षी की विश्वसनीयता के बारे में न्यायालय की राय पर गंभीर प्रभाव डालेगी;
(b) ख) ऐसे प्रश्न अनुचित है, यदि उनके द्वारा प्रवहण किया गया लांछन ऐसी बातों के संबंध में है, जो समय में उतनी अतीत है या जो इस प्रकार की है कि लांछन की सत्यता उस विषय में, जिसका वह साक्षी परिसाक्ष्य देता है, साक्षी की विश्वसनीयता के बार में न्यायालय की राय पर प्रभाव नहीं डालेगी या बहुत थोडी मात्रा में प्रभाव डालेगी;
(c) ग) ऐसे प्रश्न अनुचित है, यदि साक्षी के शील के विरुद्ध किए गए लांछन के महत्व और उसके साक्ष्य के महत्व के बीच भारी अननुपात है;
(d) घ) न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, साक्षी के उत्तर देने से इंकार करने पर यह अनुमान लगा सकेगा कि उत्तर यदि दिया जाता तो, प्रतिकूल होता ।