भारतीय न्याय संहिता २०२३
धारा ८ :
जुर्माने की रकम, जर्माना आदि के भुगतान में व्यतिक्रम करने पर, दायित्व :
१) जहां जितना जुर्माना हो सकता है, वह राशि अभिव्यक्त (व्यक्त) नहीं की गई हेै, वहां अपराधी जिस रकम के जुर्माने का दायी है, वह अमर्यादित है किन्तु अत्यधिक नहीं होगी ।
२) किसी अपराध के हर मामले में,-
(a) क) कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डनीय अपराध के जिसमें अपराधी कारावास सहित या रहित, जर्माने से दण्डादिष्ट हुआ है;
(b) ख) और कारावास या जुर्माना अथवा केवल जुर्माने से, जिसमें अपराधी जुर्माने से दण्डादिष्ट हुआ है, वह न्यायालय, जो ऐसे अपराधी को दण्डादिष्ट करेगा, सक्षम होगा कि दण्डादेश द्वारा निर्दिष्ट करे कि जुर्माना देने में व्यतिक्रम (न देना) होने की दशा में, अपराधी अमुक (कुछ) अवधि के लिए कारावास भोगेगा जो कारावास उस अन्य कारावास के अतिरिक्त होगा, जिसके लिए वह अपराधी दण्डादिष्ट हुआ है या जिसमे वह अपराधी दण्डादेश के लघुकरण पर दण्डनीय है ।
३) यदि अपराध कारावास और जुर्माना दोनों से दण्डादिष्ट हो, तो वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम (न देना) होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निर्देश दे, कारावास की उस अवधि की एक-चौथाई से अधिक न होगी, जो अपराध के लिए अधिकतम नियत है।
४) वही कारावास, जो न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम (न देना) होने की दशा के लिए या सामुदायिक सेवा के दंड के व्यतिक्रम होने की दशा के लिए, अधिरोपित (थोपना) करे, ऐसा किसी भांति का हो सकेगा, जिससे अपराधी को उस अपराध के लिए दण्डादिष्ट किया जा सकता था ।
५) यदि अपराध जुर्माने से दण्डनीय हो या सामुदायिक सेवा से हो, तो वह कारावास, जिसे न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम (न देना) होने की दशा के लिए या सामुदायिक सेवा के दंड में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए, अधिरोपित (थोपना) करे, सादा होगा और वह अवधि, जिसके लिए जुर्माना देने में व्यतिक्रम या सामुदायिक सेवा के दंड में व्यतिक्रम (न देना) होने की दशा के लिए न्यायालय अपराधी को कारावासित करने का निर्देश दे; निम्न मापमान (आगे उल्लेखित मापमान) से अधिक नहीं होगी, अर्थात:-
(a) क) जबकि जुर्माने का परिमाण पांच हजार रुपए से अधिक न हो तब कोई अवधि दो मास से अधिक न हो; और
(b) ख) जबकि जुर्माने का परिमाण दस हजार रुपए से अधिक न हो तब कोई अवधि चार मास से अधिक न हो;
६)(a) क) जुर्माना देने में व्यतिक्रम (न देना) होने की दशा के लिए अधिरोपित (थोपना) कारावास तब पर्यवसित(खत्म) हो जाएगा, जब वह जुर्माना या तो चुका दिया जाए या विधि की प्रकिया द्वारा उद्ग्रहीत(वसूल) कर लिया जाए ।
(b) ख) यदि जुर्माना देने में व्यतिक्रम (न देना) की दशा के लिए नियत की गई कारावास की अवधि का अवसान ( पुरा) होने से पूर्व जुर्माने का ऐसा अनुपात (कुछ और) चुका दिया या उद्गहीत (वसूल) किया जाए कि जुर्माना देनें में व्यतिक्रम होने पर कारावास की जो अवधि भोगी जा चुकी हो, वह जुर्माने के तब तक न चुकाए गए भाग के अनुपातिक (कुछ और) भाग से कम न हो तो कारावास पर्यवसित (खत्म) हो जाएगा ।
दृष्टांत :
(क) एक हजार रुपए के जुर्माने और उसके देने में व्यतिक्रम होने की दशा के लिए चार मास के कारावास से दण्डादिष्ट किया गया है । यहां यदि कारावास के एक मास के अवसान से पूर्व जुर्माने के सातसो पचार रुपए चुका दिए जाएं या उद्गृहीत कर लिए जाएं तो प्रथम मास का अवसान होते ही उन्मुक्त कर दिया जाएगा । यदि सातसो पचार रुपए प्रथम मास के अवसान पर या किसी भी पश्चात्वर्ती समय पर जब कि (क) कारावास में है, चुका दिए या उद्गृहीत कर लिए जाएं, तो (क) तुरन्त उन्मुक्त कर दिया जाएगा । यदि कारावास के दो मास के अवसान से पूर्व जुर्माने के पाचसो रुपए चुका दिए जाएं या उद्गृहीत कर लिए जाएं, तो (क) दो मास के पूरे होते ही उन्मुक्त कर दिया जाएगा । यदि पाचसो रुपए उन दो मास के अवसान पर या किसी भी पश्चात्वर्ती समय पर, जब कि (क) कारावास में है, चुका दिए जाएं या उद्गृहीत कर लिए जाएं, तो (क) तुरन्त उन्मुक्त कर दिया जाएगा ।
७) जुर्माना या उसका कोई भाग, जो चुकाया न गया हो, दण्डादेश दिए जाने के पश्चात् छह वर्ष के भीतर किसी भी समय, और यदि अपराधी दण्डादेश के अधीन छह वर्ष से अधिक के कारावास से दण्डनीय हो तो उस कालावधि के अवसान (पुरा) से पूर्व किसी समय, उदग्रृहीत (वसूल) किया जा सकेगा, और अपराधी की मृत्यू किसी भी संपत्ती को, जो उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके ऋणों के लिए वैध रुप से दायी हो, इस दायित्व को उन्मुक्त (भारमुक्त करना) नही करता ।