भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ४८० :
अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी :
१) जब कोई व्यक्ति, जिस पर अजमानतीय अपराध का अभियोग है या जिस पर यह संदेह है कि उसने अजमानतीय अपराध किया है, पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार या निरुद्ध किया जाता है या उच्च न्यायालय अथवा सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब वह जमानत पर छोडा जा सकता है किन्तु –
एक) यदि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार प्रतीत होते है कि ऐसा व्यक्ति मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दोषी है तो वह इस प्रकार नहीं छोडा जाएगा ;
दो) यदि ऐसा अपराध कोई संज्ञेय अपराध है और ऐसा व्यक्ति मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किया गया है, या वह तीन वर्ष या उससे अधिक के, किन्तु सात वर्ष से अनधिक के कारावास से दण्डनीय किसी संज्ञेय अपराध के लिए दो या अधिक अवसरों पर पहले दोषसिद्ध किया गया है तो वह इस प्रकार नहीं छोडा जाएगा :
परन्तु न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि खण्ड (एक) या खण्ड (दो) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड दिया जाए यदि ऐसा व्यक्ति बालक है या कोई महिला या कोई रोगी या शिथिलांग व्यक्ति है :
परन्तु यह और कि न्यायलय यह भी निदेश दे सकेगा कि खण्ड (दो) में निर्दिष्ट व्यक्ति जमानत पर छोड दिया जाए, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि किसी अन्य विशेष कारण से ऐसा करना न्यायोचित तथा ठिक है :
परन्तु यह और भी कि केवल यह बात कि अभियुक्त आवश्यकता, अन्वेषण में साक्षियों द्वारा पहचाने जाने के लिए या प्रथम पन्द्रह दिन से अधिक की पुलिस अभिरक्षा के लिए हो सकती है, जमानत मंजूर करने से इंकार करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं होगी, यदि वह अन्यथा जमानत पर छोड दिए जाने के लिए हकदार है और वह वचन देता है कि वह ऐसे निदेशों को, जो न्यायालय द्वारा दिए जाएँ, अनुपालन करेगा :
परन्तु यह भी कि किसी व्यक्ति को, यदि उस द्वारा किया गया अभिकथित अपराध मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष अथवा उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय है तो लोक अभियोजक को सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना इस उपधारा के अधीन न्यायालय द्वारा जमानत पर नहीं छोडा जाएगा ।
२) यदि ऐसे अधिकारी या न्यायालय को, यथास्थिति, अन्वेषण, जाँच या विचारण के किसी प्रक्रम में यह प्रतीत होता है कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार नहीं है कि अभियुक्त ने अजमानतीय अपराध किया है किन्तु उसके दोषी होने के बारे में और जाँच करने के लिए पर्याप्त आधार है तो अभियुक्त धारा ४९४ के उपबंधो के अधीन रहते हुए और ऐसी जाँच लंबित रहने तक जमानत पर, या ऐसे अधिकारी या न्यायालय के स्वविवेकानुसार, इसमें इसके पश्चात् उपबंधित प्रकार से अपने हाजिर होने के लिए बंधपत्र निष्पादित करने पर, छोड दिया जाएगा ।
३) जब कोई व्यक्ति, जिस पर ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की या उससे अधिक की है, दण्डनीय कोई अपराध या भारतीय न्याय संहिता २०२३ के अध्याय ६, अध्याय ७ या अध्याय १७ के अधीन कोई अपराध करने या ऐसे किसी अपराध का दुष्प्रेरण या षडयंत्र या प्रयत्न करने का अभियोग या संदेह है, उपधारा (१) के अधीन जमानत पर छोडा जाता है तो न्यायालय यह शर्त अधिरोपित करेगा :-
(a) क) कि ऐसा व्यक्ति इस अध्या के अधीन निष्पादित बंधपत्र की शर्तों के अनुसार हाचिर होगा ;
(b) ख) कि ऐसा व्यक्ति उस अपराध जैसा, जिसको करने का उस पर अभियोग या संदेह है, कोई अपराध नहीं करेगा; ओैर
(c) ग) कि ऐसा व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा या साक्ष्य को नहीं बिगाडेगा ,
और न्याय के हित में ऐसी अन्य शर्तें, जिसे वह ठीक समझे, भी अधिरोपित कर सकेगा ।
४) उपधारा (१) या उपधारा (२) के अधीन जमानत पर किसी व्यक्ति को छोडने वाला अधिकारी या न्यायालय ऐसा करने के अपने कारणों या विशेष कारणों को लेखबद्ध करेगा ।
५) यदि कोई न्यायालय, जिसने किसी व्यक्ति को उपधारा (१) या (२) के अधीन जमानत पर छोडा है, ऐसा करना आवश्यक समझता है तो, ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है ।
६) यदि मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में ऐसे व्यक्ति का विचारण, जो किसी अजमानतीय अपराध का अभियुक्त है, उस मामलें में साक्ष्य देने के लिए नियत प्रथम तारीख से साठ दिन की अवधि के अन्दर पूरा नहीं हो जाता है, तो यदि ऐसा व्यक्ति उक्त संपूर्ण अवधि के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो, जब तक ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किए जाएँगे मजिस्ट्रेट अन्यथा निदेश न दे वह मजिस्ट्रेट को समाधान प्रद, जमानत पर छोड दिया जाएगा ।
७) यदि अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के समाप्त हो जाने के पश्चात् और निर्णय दिए जाने के पूर्व किसी समय न्यायालय की यह राय है कि यह विश्वास करने के उचित आधार है कि अभियुक्त किसी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और अभियुक्त अभिरक्षा में है, तो वह अभियुक्त को, निर्णय सुनने के लिए अपने हाजिर होने के लिए बंधपत्र उसके द्वारा निष्पादित किए जाने पर छोड देगा ।
