भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा ३५१ :
अभियुक्त की परीक्षा करने की शक्ति :
१) प्रत्येक जाँच या विचारण में, इस प्रयोजन से कि अभियुक्त अपने विरुद्ध साक्ष्य में प्रकट होने वाली किन्हीं परिस्थितियों का स्वयं स्पष्टिकरण कर सके, न्यायालय –
(a) क) किसी प्रक्रम में, अभियुक्त को पहले से चेतावनी दिए बिना, उससे ऐसे प्रश्न कर सकता है जो न्यायालय आवश्यक समझे;
(b) ख) अभियोजन के साक्षियों की परिक्षा किए जाने के पश्चात् और अभियुक्त से अपनी प्रतिरक्षा करने की अपेक्षा किए जाने के पूर्व उस मामले के बारे में उससे साधारणतया प्रश्न करेगा :
परन्तु किसी समन मामले में जहाँ न्यायालय ने अभियुक्त को वैयक्तिक हाजिरी से अभिमुक्ति दे दी है, वहाँ वह खण्ड (ख) के अधीन उसकी परिक्षा से भी अभिमुक्ति दे सकता है ।
२) जब अभियुक्त की उपधारा (१) के अधीन परीक्षा की जाती है तब उसे कोई शपथ न दिलाई जाएगी ।
३) अभियुक्त ऐसे प्रश्नों के उत्तर देने से इंकार करने से या उसके मिथ्या उत्तर देने से दण्डनीय न हो जाएगा ।
४) अभियुक्त द्वारा दिए गए उत्तरों पर उस जाँच या विचारण में विचार किया जा सकता है और किसी अन्य ऐसे अपराध की, जिसका उसके द्वारा किया जाना दर्शाने की उन उत्तरों की प्रवृत्ति हो, किसी अन्य जाँच या विचारण में ऐसे उत्तरों को उसके पक्ष में या उसके पक्ष में या उसके विरुद्ध साक्ष्य के तौर पर रखा जा सकता है ।
५) उन सुसंगत प्रश्नोंको जिन्हें अभियुक्त से किया जाना है, तैयार करने में न्यायालय अभियोजन तथा प्रतिरक्षा पक्ष के अधिवक्ता की मदद ले सकता है तथा न्यायालय इस धारा के पर्याप्त अनुपालन के रुप में अभियुक्त द्वारा लिखित कथन के दाखिल करने की अनुमति दे सकता है ।