भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
(C) ग – विचारण की समाप्ति :
धारा २७१ :
दोषमुक्ति या दोषसिद्धि :
१) यदि इस अध्याय के अधीन किसी मामले में, जिसमें आरोप विरचित किया गया है, मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो दोषमुक्ति का आदेश अभिलिखित होगा ।
२) जहाँ इस अध्याय के अधीन किसी मामले में मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि अभियुक्त दोषी है, किन्तु वह धारा ३६४ या धारा ४०१ के उपबंधो के अनुसार कार्यवाही नहीं करता है वहाँ वह दण्ड के प्रश्न पर अभियुक्त को सुनने के पश्चात् विधि के अनुसारा उसके बारे में दण्डादेश दे सकता है ।
३) जहाँ इस अध्याय के अधीन किसी मामले में धारा २३४ की उपधारा (७) के उपबंधों के अधीन पूर्व दोषसिद्धि का आरोप लगाया गया है और अभियुक्त वह स्वीकार नहीं करता है कि आरोप में किए गए अभिकथन के अनुसार उसे पहले दोषसिद्ध किया गया था वहाँ मजिस्ट्रेट उक्त अभियुक्त को दोषसिद्ध करने के पश्चात् अभिकथित पूर्व दोषसिद्धि के बारे में साक्ष्य ले सकेगा और उस पर निष्कर्ष अभिलिखित करेगा :
परन्तु जब तक अभियुक्त उपधारा (२) के अधीन दोषसिद्ध नहीं कर दिया जाता है तब तक न तो ऐसा आरोप मजिस्ट्रेट द्वारा पढकर सुनाया जाएगा, न अभियुक्त से उस पर अभिवचन करने को कहा जाएगा, और न पूर्व दोषसिद्धि का निर्देश अभियोजन द्वारा, या उसके द्वारा दिए गए किसी साक्ष्य में, किया जाएगा ।
