भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २४४ :
जहाँ इस बारे में संदेह है कि कौन-सा अपराध किया गया है :
१) यदि कोई एक कार्य या कार्यों का क्रम इस प्रकार का है कि यह संदेह है कि उन तथ्यों से, जो सिद्ध किए जा सकते है, कई अपराधों में से कौन-सा अपराध बनेगा तो अभियुक्त पर ऐसे सब अपराध या उनमें से कोई करने का आरोप लगाया जा सकेगा और ऐसे आरोंपों में से कितनों ही का एक साथ विचारण किया जा सकेगा, या उस पर उक्त अपरोधों में से किसी एक को करने का अनुकल्पत: आरोप लगाया जा सकेगा ।
२) यदि ऐसे मामले में अभियुक्त पर एक अपराद का आरोप लगाया गया है और साक्ष्य से यह प्रतीत होता है कि उसने भिन्न अपराध किया है, जिसके लिए उस पर उपधार (१) के उपबंधों के अधीन आरोप लगाय जा सकता था, तो वह उस अपराध के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा जिसका उसके द्वारा किया जाना दर्शित है, यद्यपि उसके लिए उस पर आरोप नहीं लगाया गया था ।
दृष्टांत :
(a) क) (क) पर ऐसे कार्य का अभियोग है जो चारी की, या चुराई गई संपत्ति प्राप्त करने की, या आपराधिक न्यासभंग की, या छल की कोटी में आ सकता है । उस पर चोरी करने, चुराई हुई संपत्ति प्राप्त करने, आपराधिक न्यासभंग करने और छल करने का आरोप लगाया जा सकेगा अथवा उस पर चारी करने का या चोरी की संपत्ति प्राप्त करने का या आपराधिक न्यासभंग करने का या छल करने का आरोप लगाया जा सकेगा ।
(b) ख) ऊपर वर्णित मामले में (क) पर केवल चोरी का आरोप है । यह प्रतीत होता है कि उसने आपराधिक न्यासभंग का या चुराई हुई संपत्ति प्राप्त करने का अपराध किया है । वह (यथास्थिति) आपराधिक न्यासभंग या चुराई हुई संपत्ति प्राप्त करने के लिए दोषसिद्ध किया जा सकेगा, यद्यपि उस पर उस अपराधध का आरोप नहीं लगाया गया था ।
(c) ग) (क) मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथ पर कहता है कि उसने देखा कि (ख) ने (ग) को लाठी मारी । सेशन न्यायालय के समक्ष (क) शपथ पर कहता है कि (ख) ने (ग) को कभी नहीं मारा । यद्यपि यह साबित नहीं किया जा सकता की इन दो परस्पर विरुद्ध कथनों में से कौन सा मिथ्या है तथापि (क) पर साशय मिथ्या साक्ष्य देने के लिए अनुकल्पत: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा ।