Bnss धारा २१८ : न्यायाधीशों और लोक-सेवकों का अभियोजन :

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा २१८ :
न्यायाधीशों और लोक-सेवकों का अभियोजन :
१) जब किसी व्यक्ति पर, जो न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या ऐसा लोक-सेवक है या था जिसे सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी से ही उसके पद से हटाया जा सकता है, अन्यथा नहीं, किसी ऐसे अपराध का अभियोग है जिसके बारे में यह अभिकथित है कि वह उसके द्वारा तब किया गया था जब वह अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था, तब कोई भी न्यायालय ऐसे अपराध का संज्ञान, जैसा लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम २०१३ (२०१४ का १८) में यथाअन्यथा उपबंधित के सिवाय –
(a) क) ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो संघ के कार्यकलाप के संबंध में, यथास्थिति, नियोजित है या अभिकथित अपराध के किए जाने के समय नियोजित था, केन्द्रीय सरकार की ;
(b) ख) ऐसे व्यक्ति की दशा में, जो किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में, यथास्थिति, नियोजित है या अभिकथित अपराध के किए जाने के समय नियोजित था, उस राज्य सरकार की,
पर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं :
परन्तु जहाँ अभिकथित अपराध खण्ड (b) (ख) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ती द्वारा उस अवधि के दौरान किया गया था जब राज्य में संविधान के अनुच्छेद ३५६ के खण्ड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा प्रवृत्त थी, वहाँ खण्ड (b) (ख) इस प्रकार लागू होगा मानो उसमें आने वाले राज्य सरकार पर के स्थान पर केन्द्रीय सरकार पर रख दिया गया है :
परन्तु यह और कि ऐसी सरकार मंजूरी के लिए अनुरोध की प्राप्ति की तारीख से एक सौ बीस (१२०) दिनों की अवधि के भीतर निर्णय करेगी और उस अवस्था में यदि वह ऐसा करने में असफल हो जाती है, तो मंजूरी, ऐसी सरकार द्वारा दी गई समझी जाएगी :
परन्तु यह और कि ऐसे किसी लोक सेवक की दशा में, जिसके बारे में यह अभिकथन किया गया है कि उसने भारतीय न्याय संहिता २०२३ की धारा ६४, धारा ६५, धारा ६६, धारा ६८, धारा ६९, धारा ७०, धारा ७१, धारा ७४, धारा ७५, धारा ७६, धारा ७७, धारा ७८, धारा ७९, धारा १४३, धारा १९९ या धारा २०० के अधीन कोई अपराध किया है, कोई पूर्व मंजूरी अपेक्षित नहीं होगी ।
२) कोई भी न्यायालय संख के सशस्त्र बल के किसी सदस्य द्वारा किए गए अपराध का संज्ञान जिसके बारे में यह अभिकथित है कि वह उसके द्वारा तब किया गया था, जब वह अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था, केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नहीं ।
३) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा निदेश दे सकती है कि उसमें यथाविनिर्दिष्ट बल के ऐसे वर्ग या प्रवर्ग के सदस्यों को जिन्हें लोक व्यवस्था बनाए रखने का कार्य-भार सौंपा गया ह, जहाँ कहीं भी वे सेवा कर रहे हों, उपधारा (२) के उपबंध लागू होंगे और तब उस उपधारा के उपबंध इस प्रकार लागू होंगे मानो उसमें आने वाला केन्द्रीय सरकार पद के स्थान पर राज्य सरकार पर रख दिया गया है ।
४) उपधारा (३) में किसी बात के होते हुए भी, कोई भी न्यायालय ऐसे बलों के किसी सदस्य द्वारा, जिसे राज्य में लोक व्यवस्था बनाए रखने का कार्यभार सौपा गया है, किए गए किसी ऐसे अपराध का संज्ञान, जिसके बारे में यह अभिकथित है कि वह उसके द्वारा तब किया गया था जब वह, उस राज्य के संविधान के अनुच्छेद ३५६ के खण्ड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा के प्रवृत्त रहने के दौरान, अपने पदीय कर्तव्य के निर्वहन में कार्य कर रहा था या जब उसका ऐसे कार्य करना तात्पर्यित था, केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से ही करेगा, अन्यथा नही ।
५) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार उस व्यक्ति का जिसके द्वारा और उस रीति का जिससे वह अपराध या वे अपराध, जिसके या जिनके लिए ऐसे न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या लोक-सेवक का अभियोजन किया जाना है, अवधारण कर सकती है और वह न्यायालय विनिर्दिष्ट कर सकती है जिसके समक्ष विचारण किया जाना है ।

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