भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
अध्याय १० :
पत्नी, सन्तान और माता-पिता के भरणपोषण के लिए आदेश :
धारा १४४ :
पत्नी, सन्तान और माता-पिता के भरणपोषण के लिए आदेश :
१) यदि पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति :-
(a) क) अपनी पत्नी का, जो अपने भरणपोषण करने में असमर्थ है, या
(b) ख) अपनी धर्मज या अधर्मज सन्तान का चाहे विवाहित हो या न हो, जो अपना भरणपोषन करने में असमर्थ है, या
(c) ग) अपनी धर्मज या अधर्मज सन्तान का (जो विवाहित पुत्री नहीं है), जिसने वयस्कता प्राप्त कर ली है, जहाँ ऐसी सन्तान किसी शारीरिक या मानसिक असामन्यता या क्षति के कारण अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है, या
(d) घ) अपने पिता या माता का जो अपना भरणपोषण करने में असमर्थ है, भरणपोषण करने में उपेक्षा (टालना) करता है, या भरणपोषण करने से इन्कार करता है, तो प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट, ऐसी उपेक्षा या इन्कार के साबित हो जाने पर, ऐसे व्यक्ति को यह निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी सन्तान, पिता या माता के भरणपोषण के लिए ऐसी मासिक दर पर, जिसे मजिस्ट्रेट ठीक समझे, मासिक भत्ता दे और उस भत्ते का संदाय ऐसे व्यक्ति को करे जिसको संदार करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निदेश दे :
परन्तु मजिस्ट्रेट खण्ड (ख) (b)में निर्दिष्ट पुत्री के पिता को निदेश दे सकता है कि वह उस समय तक ऐसा भत्ता दे जब तक वह वयस्क नहीं हो जाती है यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है कि ऐसी पुत्री के, यदि वह विवाहित हो, पति के पास पर्याप्त साधन नहीं है :
परन्तु यह और कि मजिस्ट्रेट, इस उपधारा के अधीन भरणपोषण के लिए मासिक भत्ते के सम्बन्ध में कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान, ऐसे व्यक्ती को यह निदेश दे सकता है कि वह अपनी पत्नी या ऐसी सन्तान, पिता या माता के अंतरिम भरणपोषण के लिए, जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे, मासिक भत्ता और ऐसी कार्यवाही का व्यय दे और ऐसे व्यक्ती को उसका संदाय करे जिसको संदाय करने का मजिस्ट्रेट समय-समय पर निर्देश दे :
परन्तु यह भी कि दूसरे परन्तुक के अधीन अंतरिम भरणपोषण के लिए मासिक भत्ते और कार्यवाही के व्ययों का कोई आवेदन, यथासंभव ऐसे व्यक्ति पर आवेदन की तामील की तारीख से साठ दिन के भीतर निपटाया जाएगा ।
स्पष्टीकरण :
इस अध्याय के प्रयोजनों के लिए, पत्नी के अन्तर्गत स्त्री भी है जिसके पति ने उससे विवाह-विच्छेद (तलाख) कर लिया है या जिसने अपने पति से विवाह-विच्छेद कर लिया है और जिसने पुनर्विवाह नहीं किया है ।
२) भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए ऐसा कोई भत्ता और कार्यवाही के लिए व्यय के आदेश की तारीख से या, यदि ऐसा आदेश दिया जाता है तो, यथास्थिति, भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण और कार्यवाही के व्ययों के लिए आवेदन की तारीख से संदेय होंगे ।
३) यदि कोइ व्यक्ति जिसे आदेश दिया गया हो, उस आदेश का अनुपालन करने में पर्याप्त कारण के बिना असफल रहता है तो उस आदेश के प्रत्येक भंग के लिए ऐसा कोई मजिस्ट्रेट देय रकम के ऐसी रिती से उद्गृहीत किए जाने के लिए वारण्ट जारी कर सकता है जैसी रीति जुर्माने उद्गृहीत करने के लिए उपबंधित है, और उस वारण्ट के निष्पादन के पश्चात् प्रत्येक मास के न चुकाए गए यथास्थिति भरणपोषण या अंतरिम भरणपोषण के लिए पूरे भत्ते और कार्यवाही के व्यय या उसके किसी भाग के लिए ऐसे व्यक्ति को एक मास तक की अवधि के लिए, अथवा यदि वह उससे पूर्व चुका दिया जातता है तो चुका देने के समय तक के लिए, कारावास का दण्डादेश दे सकता है :
परन्तु इस धारा के अधीन देय रकम की वसूली के लिए कोई वारण्ट तब तक जारी न किया जाएगा जब तक उस रकम को उद्गृहीत करने के लिए, उस तारीख से जिसको वह देय हुई एक वर्ष की अवधि के अंदर न्यायालय से आवेदन नहीं किया गया है :
परन्तु यह और कि यदि ऐसा व्यक्ति इस शर्त पर भरणपोषण करने की प्रस्थापना करता है कि उसकी पत्नी उसके साथ रहे और वह पति के साथ रहने से इन्कार करती है तो ऐसा मजिस्ट्रेट उसके द्वारा कथित इन्कार के किन्हीं आधारों पर विचार कर सकता है और ऐसी प्रस्थापना के किए जाने पर भी वह इस धारा के अधीन आदेश दे सकता है यदि उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा आदेश देने के लिए न्यायसंगत आधार है ।
स्पष्टीकरण :
यदि पति ने अन्य स्त्री से विवाह कर लिया है या वह रखैल रखता है तो यह उसकी पत्नी द्वारा उसके साथ रहने से इन्कार का न्यायसंगत आधार माना जाएगा ।
४) कोई पत्नी अपने पति से इस धारा के अधीन भरणपोषण या अन्तरिम भरणपोषण के लिए भत्ता और कार्यवाही के व्यय) प्राप्त करने की हकदार न होगी, यदि वह जारता (अॅडल्टरी) की दशा में रह रही है अथवा यदि वह पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इन्कार करती है अथवा यदि वे पारस्पारिक सम्मति से पृथक (अलग) यह रहे हैं ।
५) मजिस्ट्रेट यह साबित होने पर आदेश को रद्द कर सकता है कि कोई पत्नी, जिसके पक्ष में इस धारा के अधीन आदेश दिया गया है जारता की दशा में रह रही है अथवा पर्याप्त कारण के बिना अपने पति के साथ रहने से इन्कार करती है अथवा वे पारस्पारिक सम्मति से पृथक् रह रहे हैं ।