भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
धारा १४१ :
प्रतिभूति देने में व्यतिक्रम (असफल) होने पर कारावास :
१) (a) क) यदि कोई व्यक्ति, जिसे धारा १२५ या धारा १३६ के अधीन प्रतिभूति देने के लिए आदेश दिया गया है, ऐसी प्रतिभूति उस तारिख को या उस तारिख के पूर्व, जिसको वह अवधि, जिसके लिए ऐसी प्रतिभूति दी जानी है, प्रारंभ होती है, नहीं देता है, तो वह इसमें इसके प्रश्चात् ठीक आगे वर्णित दशा के सिवाय कारागार में भेज दिया जाएगा अथवा यदि वह पहले से ही कारागार में है तो वह कामगार में तब तक निरुद्ध रखा जाएगा जब तक ऐसी अवधि समाप्त न हा जाए या जब तक ऐसी अवधि के भीतर वह उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को प्रतिभूति दे दे जिसने उसकी अपेक्षा करने वाला आदेश दिया था ।
(b) ख) यदि किसी व्यक्ति द्वारा धारा १३६ के अधीन मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसरण में परिशांति बनाए रखने के लिए बंधपत्र या जमानतपत्र निष्पादित कर दिए जाने के पश्चात् उसके बारे में ऐसे मजिस्ट्रेट या उसके पद-उत्तरवर्ती को समाधानप्रद रुप में यह साबित कर दिया जाता है कि उसने बंधपत्र या जमानतपत्र का भंग किया है तो ऐसे मजिस्ट्रेट या पद-उत्तरवर्ती, ऐसे सबूत के आधारों को लेखबद्ध करने के पश्चात् आदेश कर सकता है कि उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए और बंधपत्र या जमानतपत्र की अवधि की समाप्ति तक कारागार में निरुद्ध रखा जाए तथा ऐसा आदेश ऐसे किसी अन्य दण्ड या समपहरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा, जिससे कि उक्त विधि के अनुसार दायित्वाधीन हो ।
२) जब ऐसे व्यक्ती को एक वर्ष से अधिक की के लिए प्रतिभूति देने का आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया है, तब यदि ऐसा व्यक्ति यथापूर्वोक्त प्रतिभूति नहीं देता है तो वह मजिस्ट्रेट यह निदेश देते हुए वारण्ट जारी करेगा कि सेशन न्यायालय का आदेश होने तक, वह व्यक्ति कारागार में निरुद्ध रखा जाए और वह कार्यवाही सुविधानुसार शीघ्र ऐसे न्यायालय के समक्ष रखी जाएगी ।
३) ऐसा न्यायालय ऐसी कार्यवाही की परीक्षा करने के और उस मजिस्ट्रेट से किसी और इत्तिला या साक्ष्य की, जिसे वह आवश्यक समझे, अपेक्षा करने के पश्चात् और संबद्ध व्यक्ति को सुने जाने का उचित अवसर देने के पश्चात् मामले में ऐसे आदेश पारित कर सकता है जो वह ठिक समझे :
परन्तु वह अवधि (यदि कोई हो) जिसके लिए कोई व्यक्ती प्रतिभूति देने में असफल रहने के कारण कारावासित किया जाताहै, तीन वर्ष से अधिक की न होगी ।
४) यदि एक ही कार्यवाही में ऐसे दो या अधिक व्यक्तियों से प्रतिभूति की अपेक्षा की गई है, जिनमें से किसी एक के बारे में कार्यवाही सेशन न्यायालय को उपधारा (२) के अधीन निर्देशित की गई है, तो ऐसे निर्देश में ऐसे व्यक्तियों में से किसी अन्य व्यक्ती का भी, जिसे प्रतिभूति देने के लिए आदेश दिया गया है, मामला शामिल किया जाएगा और उपधारा (२) और (३) के उपबंध उस दशा में ऐसे अन्य व्यक्ति के मामले को भी इस बात के सिवाय लागू होंगे कि वह अवधि (यदि कोई हो ) जिसके लिए वह कारावासित किया जा सकता है, उस अवधि से अधिक न होगी, जिसके लिए प्रतिभूति देने के लिए आदेश दिया गया था ।
५) सेशन न्यायाधीश उपधारा (२) या उपधारा (४) के अधीन उसके समक्ष रखी गई किसी कार्यवाही को स्वविवेकानुसार अपर सेशन न्यायाधीश को अन्तरित (टड्ढान्स्फर) कर सकता है और ऐसे अन्तरण पर ऐसा अपर सेशन न्यायाधीश ऐसी कार्यवाही के बारे में इस धारा के अधीन सेशन न्यायाधीश की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है ।
६) यदि प्रतिभूति जेल के भारसाधक अधिकारी को निविदत्त की जाती है तो वह उस मामले को उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को, जिसने आदेश किया, तत्काल निर्देशित करेगा और ऐसे न्यायालय या मजिस्ट्रेट के आदेशों की प्रतीक्षा करेगा ।
७) परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति देने में असफलता के कारण कारावास सादा होगा ।
८) सदाचार के लिए प्रतिभूति देने में असफलता के कारण कारावास, जहाँ कार्यवाही धारा १२७ के अधीन की गई है, वहाँ सादा होगा और जहाँ कार्यवाही धारा १२८ या धारा १२९ के अधीन की गई है, वहाँ जैसा प्रत्येक मामले में न्यायालय या मजिस्ट्रेट निदेश दे, कठिन या सादा होगा ।