भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता २०२३
अध्याय ९ :
परिशांति कायम रखने के लिए और सदाचार के लिए प्रतिभूति (जमानत) :
धारा १२५ :
दोषसिद्धि पर परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति (जमानत) :
१) जब सेशन न्यायालय या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय किसी व्यक्ति को उपधारा (२) में विनिर्दिष्ट अपराधों में से किसी अपराध के लिए या किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण के लिए सिद्धदोष ठहराता है और उसकी यह राय है कि यह आवश्यक है कि परिशांति कायम रखने के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति (जमानत) ली जाए तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दण्डादेश देते समय उसे आदेश दे सकता है कि वह तीन वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी वह ठिक समझे परिशांति कायम रखने के लिए, बंधपत्र किंवा जमानतपत्र निष्पादित करे ।
२) उपधारा (१) में निर्दिष्ट अपराध निम्नलिखित है –
(a) क) भारतीय न्याय संहिता २०२३ के अध्याय ११ के अधीन दण्डनीय कोई अपराध जो धारा १९३ की उपधारा (१) या धारा १९६ या धारा १९७ के अधीन दण्डनीय अपराध से भिन्न है;
(b) ख) कोई ऐसा अपराध जो, या जिसके अन्तर्गत, हमला या आपराधिक बल का प्रयोग या रिष्टि (नुकसान) करना है;
(c) ग) अपराधिक अभित्रास(धमकी) का कोई अपराध;
(d) घ) कोई अन्य अपराध, जिससे परिशांति भंग हुई है या जिससे परिशांति भंग आशयित है, या जिसके बारे में ज्ञात था कि उससे परिशांति भंग संभाव्य है ।
३) यदि दोषसिद्ध अपील पर या अन्यथा अपास्त कर दी जाती है तो बंधपत्र या जमानतपत्र, जो ऐसे निष्पादित किया गया था, शून्य हो जाएगा ।
४) इस धारा के अधीन आदेश अपील न्यायालय द्वारा या किसी न्यायालय द्वारा भी जब वह पुनरीक्षण (संशोधित संस्करण) की अपनी शक्तियों का प्रयोग कर रहा हो, किया जा सकेगा ।