भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ७ :
एक बार समझाया अभिव्यक्ती या पद का भाव :
इस संहिता के किसी भी भाग में (धारा में) समझाया गया हर पद या अभिव्यक्ती का स्पष्टीकरण इस संहिता के अनुरुप ही प्रयोग किया गया है।
धारा ८:
लिंग :
(See section 2(10) of BNS 2023)
वह या पुल्लिंग वाचक शब्द का प्रयोग जहा किए गए है, वे हर व्यक्ती चाहे नर हो या नारी के बारें में लागू है।
धारा ९:
वचन :
(See section 2(22) of BNS 2023)
जब तक संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, एकवचन द्योतक शब्दों के अन्तर्गत बहुवचन आता है, और बहुवचन द्योतक शब्दों के अन्तर्गत एकवचन आता है।
धारा १० :
पुरुष,स्त्री :
(See section 2(19) and 2 (35) of BNS 2023)
पुरुष शब्द किसी भी आयु के मानव नर का सुचित करना है; स्त्री शब्द किसी भी आयु की मानव नारी का सुचित करना है।
धारा ११ :
व्यक्ती :
(See section 2(26) of BNS 2023)
कोई भी कंपनी या संस्था, या व्यक्ती निकाय चाहे वह निगमित हो या नहीं,व्यक्ती शब्द के अन्तर्गत आता है।
धारा १२:
लोक (जनता) :
(See section 2(27) of BNS 2023)
लोक (जनता) का कोई भी वर्ग या कोई भी समुदाय लोक (जनता) शब्द के अन्तर्गत आता है।
धारा १३ :
क्वीन (राणी) की परिभाषा :
(विधि अनुकूलन आदेश, १९५० द्वारा निरसित )।
धारा १४:
१.(सरकार का सेवक :
(See section 2(28) of BNS 2023)
सरकार का सेवक शब्द का अर्थ सरकार के प्राधिकार के द्वारा या अधीन भारत के भीतर बने रहने दिए गए , नियुक्त किए गए, या नियोजित किए गए किसी भी अफसर या सेवक को सुचित करना या द्योतक है।
——–
१. विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा धारा १४ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
धारा १५ :
ब्रिटिश इंडिया :
(१९३७ द्वारा निरसित, विधि अनुकूलन आदेश।)
धारा १६ :
भारत सरकार :
(१९३७ द्वारा निरसित, भारतीय विधि अनुकूलन आदेश।)
धारा १७ :
१.(सरकार :
(See section 2(12) of BNS 2023)
सरकार शब्द केन्द्रीय सरकार या किसी २.(***) राज्य की सरकार का सुचित करना या द्योतक है।
——–
१. विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा धारा १७ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
२. १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा भाग क शब्द और अक्षर का लोप किया गया।
धारा १८ :
१.(भारत :
भारत शब्द से जम्मू-काश्मीर राज्य के सिवाय भारत का राज्यक्षेत्र अभिप्रेत है।)
———
१. १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा धारा १८ के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
धारा १९ :
न्यायाधीश :
(See section 2(16) of BNS 2023)
न्यायाधीश शब्द का अर्थ न केवल हर ऐसे व्यक्ती का सुचित करना या द्योतक है, जो पद रुप से न्यायाधीश हो, किन्तु उस हर व्यक्ती का भी सुचित करना या द्योतक है,
जो किसी विधी कार्यवाही में, चाहे वह सिविल(दिवानी या नागरी) या दाण्डिक, अंतिम निर्णय या ऐसा निर्णय, जो उसके विरुद्ध अपील न होने पर अंतिम हो जाए या ऐसा निर्णय, जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किए जाने पर अंतिम हो जाए, देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, अथवा
जो उस व्यक्ती -निकाय में से एक हो, जो व्यक्ती- निकाय(संस्था) ऐसा निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो।
दृष्टांत :
क) सन १८५९ के अधिनियम १० के अधीन किसी वांद में अधिकारिता का प्रयोग करने वाला कलक्टर न्यायाधीश है ।
ख) किसी आरोप के संबंध में, जिसके लिए उसे जुर्माना या कारावास का दण्ड देने की शक्ति प्राप्त है, चाहे उसकी अपील होती हो या न होती हो, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट न्यायाधीश है ।
ग) १.( मद्रास संहिता के सन १८१६) के विनियम ७ के अधीन वादों का विचारण करने की और अवधारण करने की शक्ति रखने वाली पंचायत का सदस्य न्यायाधीश है ।
घ) किसी आरोप के संबंध में, जिनके लिए उसे केवल अन्य न्यायालय को विचारणार्थ सुपुर्द करने की शक्ति प्राप्त है, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट न्यायाधीश नहीं है ।
———
१. मद्रास सिविल न्यायालय अधिनियम १८७३ (१८७३ का ३) द्वारा निरसित ।
धारा २० :
न्यायालय :
(See section 2(5) of BNS 2023)
न्यायालय शब्द का अर्थ, न्यायाधीश जिसे अकेले ही को न्यायिकत: कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, या उस न्यायाधीश-निकाय(संस्था) का, जिसे एक निकाय(संस्था) के रुप में न्ययिकत: कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, जब कि ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीश-निकाय(संस्था) न्यायिकत: कार्य कर रहा हो,यह।
दृष्टांत :
१.(मद्रास संहिता के सन १८१६) के विनियम ७ के अधीन कार्य करने वाली पंचायत, जिसे वादों का विचारण करने और अवधारण करने की शक्ति प्राप्त है, न्यायालय है ।
———
१. मद्रास सिविल न्यायालय अधिनियम १८७३ (१८७३ का ३) द्वारा निरसित ।
धारा २१ :
लोक-सेवक :
(See section 2(28) of BNS 2023)
लोक-सेवक शब्द उस व्यक्ती का समझा जाना या द्योतक है जो निम्नगत वर्णनों में से किसी में आता है,
(एक)
१.(***)
(दूसरा)
२.(भारत की ३.(***) सेना), ४.(नौसेना या वायुसेना) का हर आयुक्त ऑफिसर;
५.(तिसरा)
हर न्यायाधीश जिसके अन्तर्गत ऐसा कोई भी व्यक्ती आता है जो स्वतंत्र रुपसे या व्यक्तीयोंके किसी निकाय(संस्था) के सदस्य के रुप में जो न्याय करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो;)
(चौथा)
न्यायालय का हर अफसर ५.(जिसके अन्तर्गत समापक(लिक्विडेटर),रिसीवर या कमिशनर(प्राप्तीकर्ता या आयुक्त) आता है)जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह विधि(कानून) या तथ्य के किसी मामलें अन्वेषण या रिपोर्ट(जांच-पडताल) करे, या कोई दस्ताऐवज बनाए, उसे जतन करे, या अधिप्रमाणिकृत करे, या किसी सम्पत्ती का भार संभाले या उस संपत्ति का व्ययन (निपटान) करे, या किसी न्यायिक प्रक्रिया (आदेशिका) का निष्पादन करे(पालन करे),या कोई शपथ ग्रहण कराए या निर्वचन (विवेचन) करे,या न्यायालय में व्यवस्था बनाए रखे और एसे हर व्यक्ती, जिसे इन कर्तव्यों में से किन्हीं का पालन करने का प्राधिकार (अधिकार दिया गया) न्यायालय द्वारा विशेष रुप से दिया गया हो;
(पाँचवाँ)
किसी न्यायालय या लोकसेवक की सहायता करने वाला हर जूरी सदस्य (पंचो में एक), असेसर(आंकलन करनेवाला) या पंचायत का सदस्य ।
(छठा)
किसी न्यायालय द्वारा, या किसी अन्य सक्षम लोकप्राधिकारी द्वारा कोई मामला या विषय, विनिश्चय (मामला निर्णय के लिए भेज दिया गया है) या रिपोर्ट के लिए निर्देशित किया गया हो; ऐसा हर मध्यस्थ या अन्य व्यक्ती ।
(सातवाँ)
हर व्यक्ती जो किसी ऐसे पद को धारण करता हो, जिसके आधार से वह किसी व्यक्ती को परिरोध (रोक) में करने या रखने के लिए सशक्त हो;
(आठवाँ)
७.(सरकार) का हर अफसर जिसका ऐसे अफसर के नाते अपराधों का निवारण कर अपराधों की इत्तिला दे, अपराधियों को न्याय के लिए उपस्थित करे, या लोक स्वास्थ्य, सुरक्षा या सुविधा की संरक्षा करे, यह कर्तव्य होनेवाला सरकार का हर अफसर;
(नवाँ)
७.(सरकार) का हर अफसर जिसका ऐसे अफसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह ७.(सरकार) की ओर से किसी संपत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे, व्यय करे, या ७.(सरकार) की ओर से कोई सर्वेक्षण, निर्धारण, या मुल्यांकन करे, या किसी राजस्व आदेशिका का निष्पादन करे या ७.(सरकार) के आर्थिक (धन-संबंधी) हितो पर प्रभाव डालने वाले किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे या ७.(सरकार) के आर्थिक हित संबंधी (धन संबंधी) किसी दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणित करे या रखे, या २.(सरकार) ८.(***) के आर्थिक हित संबंधी (धन संबंधी) कि सुरक्षा के लिए किसी विधि के व्यतिक्रम को रोके;
(दसवाँ)
हर अफसर ऐसे अफसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह किसी ग्राम, नगर या जिले के किसी धर्मनिरपेक्ष सामाजिक प्रयोजन के लिए किसी संपत्ती के ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे या व्यय करे, कोई सर्वेक्षण या निर्धारण करे, या कोई रेट या कर उदगृहीत करे, या किसी ग्राम, नगर या जिेले के लोगों के अधिकारों के अभिनिश्चयन के लिए कोई दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणित करे या रखे;
९.(ग्यारहवाँ)
हर व्यक्ती जो कोई पदाधिकारी हो, ओर उस पद के आधार से वह मतदाता सूची या नियमावली तैयार करणे, प्रकाशित करणे, रखणे, सुधारित करणे और चुनाव प्रक्रिया या उसका किसी भाग को संचालित करणे के लिए अधिकार रखता हो या सशक्त हो;)
१०.(बारहवाँ)
हर व्यक्ती जो-
(क) सरकार के सेवा में हो,सरकार की और से वेतन प्राप्त करणे वाली हो, या किसी लोक कर्तव्य के पालन के लिए सरकार की और से फीस या कमिशन से रुप में वेतन या कोई रक्कम प्राप्त करणे वाली हर व्यक्ती;
(ख) स्थानिक प्राधिकारी की, अथवा केंन्द्र, प्रान्त या राज्य के अधिनियम के द्वारा या अधिन स्थापित निगम(कंपनी या संस्था) की अथवा कंपनी अधिनियम, १९५६(१) की धारा ६१७ द्वारा सरकारी (शासकीय) कंपनी या संस्था की सेवा में हो या उस कंपनी या संस्था की और से वेतन प्राप्त करणे वाली हर व्यक्ती ।
राज्य संशोधन : राजस्थान :
धारा २१ में, उसे राजस्थान को लागू करने में बारहवें खण्ड के पश्चात अग्रलिखित खण्ड जोड दिया जाएगा, अर्थात –
( तेरहवॉं )
किसी विधि के अधीन मान्य या अनुमोदित किसी परिक्षा के संचालन या पर्यवेक्षण में किसी लोक निकाय द्वारा नियोजित या लगाया गया प्रत्येक व्यक्ती ।
स्पष्टीकरण :
लोक निकाय पद में सम्मिलित है-
क) केन्द्र या राज्य अधिनियम के उपबंधो के अधीन या भारत के संविधान के उपबंधो के अधीन स्थापित या राज्य शासन द्वारा गठित कोई विश्वविद्यालय या शिक्षा मण्डल या अन्य निकाय ।
ख) स्थानीय प्राधिकरण ।
दृष्टांत :
नगरपालिका आयुक्त लोक सेवक है ।
स्पष्टीकरण १ :
ऊपर के वर्णनों में से किसी में आने वाले व्यक्ति लोक सेवक है, चाहे वे सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हों या नहीं ।
स्पष्टीकरण २ :
जहां कहीं लोक सेवक शब्द आएं है, वे उस हर व्यक्ति के संबंध में समझे जाएंगे जो लोक सेवक के ओहदे को वास्तव में धारण किए हुए हों, चाहे उस ओहददे को धारण करने के उसके अधिकार में कैसी ही विधिक त्रुटि हो ।
११.(स्पष्टीकरण ३ :
निर्वाचन शब्द ऐसे किसी विधायी, नगरपालिका या अन्य लोक प्राधिकारी के नाते, चाहे वह कैसे ही स्वरुप का हो, सदस्यों के वरणार्थ निर्वाचन का सुचित करना या द्योतक है जिसके लिए वरण (चुनाव) करणे की पद्धति किसी विधि के द्वारा या अधीन निर्वाचन के रुप में विहित की गई हो।)
१.(***)
———-
१. विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा पहले खण्ड का लोप किया गया ।
२. विधि अनुकूलन १९४८ द्वारा क्वीन का बिटिश भारत या क्राउन के प्रतिनिधि के किसी सरकार के अधीन कार्य करते हुए शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा डोमिनियन शब्द का लोप किया गया ।
४. १९२७ के अधिनियम सं० १० की धारा २ और अनुसूची १ द्वारा या नौसेना के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
५. १९६४ के अधिनियम सं० ४० की धारा २ द्वारा पूर्ववर्ती खण्ड के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
६. १९६४ के अधिनियम सं० ४० की धारा २ द्वारा अंत:स्थापित ।
७. विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा क्राउन के स्थान पर प्रतिस्थापित जिसे विधि अनुकूलन आदेश १९३७ के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया था ।
८. १९६४ के अधिनियम सं० ४० की धारा २ द्वारा कतिपय शब्दों का लोप किया गया ।
९. १९२० के अधिनियम सं० ३९ की धारा २ द्वारा अन्त:स्थापित ।
१०. १९६४ के अधिनियम सं० ४० की धारा २ द्वारा पूर्ववर्ती खण्ड के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
११. १९२० के अधिनियम सं० ३९ की धारा २ द्वारा अन्त:स्थापित ।
१२. १९२० के अधिनियम सं० ३९ की धारा २ द्वारा स्पष्टीकरण ४ का लोप किया गया ।
धारा २२ :
जंगम संपत्ति :
(See section 2(21) of BNS 2023)
जंगम संपत्ति इन शब्दों से यह आशयित है कि इनके अन्तर्गत हर विवरण की मूर्त संपत्ती आती है, किन्तु भूमि और वे चीजें, जो पृथ्वी से जुडी(भूबद्ध) हों या पृथ्वी (भूबद्ध) के किसी चीज से स्थायी रुप से जकडी हुई हों, इनके अन्तर्गत नहीं आती ।
धारा २३ :
सदोष अभिलाभ(गलत तरिके से लाभ) :
(See section 2(21) and 2(36) of BNS 2023)
सदोष अभिलाभ(गलत तरिके से लाभ) जिस व्यक्ती को कानूनी अधिकार ना हो ऐसी संपत्ती का अवैध रुप से प्राप्त किया अभिलाभ(लाभ) ।
सदोष हानी(गलत तरिके से हानी):
सदोष हानी जिस व्यक्ती को कानूनी अधिकार हो ऐसी संपत्ती का वैध रुप से हानी उठानेवाला ।
सदोष अभिलाभ प्राप्त करना, सदोष हानी उठाना:
कोई व्यक्ती सदोष अभिलाभ(गलत तरिके से लाभ) प्राप्त करता है, यह तब तक कहा जाता है जबकि वह व्यक्ती सदोष बनाए रखता है और तब भी जबकि वह व्यक्ती सदोष अर्जन करता(अधिग्रहण या प्राप्त करना) है । कोई व्यक्ती सदोष हानी(गलत तरिके से हानी) उठाता है, यह तब तक कहा जाता है जबकी उसे किसी संपत्ति से सदोष अलग रखा जाता है और तब भी जबकि उसे किसी संपत्ति से सदोष वंचित किया जाता है ।
धारा २४ :
बेइमानी से :
(See section 2(7) of BNS 2023)
जो कोई इस किसी एक व्यक्तीको सदोष अभिलाभ (गलत तरिके से लाभ) हो या किसी अन्य व्यक्तीको सदोष हानी(गलत तरिके से हानी) हो इस आशय से कोई कार्य करता है वह उस कार्य को बेईमानी से करता है, यह कहा जाता है ।
धारा २५ :
कपटपूर्वक (धोके से) :
(See section 2(9) of BNS 2023)
कोई व्यक्ती किसी बात को कपटपूर्वक(धोके से) करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस बात को कपट(धोका) करने के आशय से करता है, किन्तु अन्यथा नहीं ।
धारा २६ :
विश्वास करने का कारण :
(See section 2(29) of BNS 2023)
कोई व्यक्ती जब किसी बात के विश्वास करने का कारण रखता है , तब उस बात के विश्वास करने का कारण हेतुक रखता है, अन्यथा नहीं ।
धारा २७ :
पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में संपत्ति :
जबकि कोई संपत्ती किसी व्यक्ती के निमित्त उस व्यक्ती की पत्नी, लिपिक या सेवक के कब्जे में है, तब वह इस संहिता के तहत(अन्तर्गत) उस व्यक्ती के कब्जे में है ।
स्पष्टीकरण :
लिपिक या सेवक के नाते अस्थाई रुप से या किसी विशिष्ट अवसर पर नियोजित व्यक्ति, इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत लिपिक या सेवक हे ।
धारा २८ :
कूटकरण (नकली) :
(See section 2(4) of BNS 2023)
जब किसी व्यक्तीने एक चीज(वस्तू) दुसरी चीज सदृश्य(जैसे लगते है) करता है, इसमे उद्देश्य उसे धोका देणे को हो; और इसमे धोका होणे का संभाव्य जानते हुए करता है, वह कूटकरण(नकली) करता है, यह कहा जाता है ।
१.(स्पष्टीकरण १ :
कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठिक वैसीही हो ।
स्पष्टीकरण २ :
जबकि कोई व्यक्ती एक चीज को दुसरी चीज के सद्दश (जैसे) कर दे और सद्दश ऐसा है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ती को प्रवंचना हो सकती हो, तो जब तक की तत्पतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि जो व्यक्ती एक चीज को दूसरी चीज के इस प्रकार सद्दश बनाता है उसका आशय उस सद्दश द्वारा प्रवंचना करने का था या वह यह संभाव्य जानता था कि एतद्द्वारा प्रवंचना की जाएगी ।)
——–
१. १८८९ के अधिनियम सं० १ की धारा ९ द्वारा मूल स्पष्टीकरण के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
धारा २९ :
दस्तावेज :
(See section 2(8) of BNS 2023)
दस्तावेज शब्द किसी भी विषय का द्योतक (व्यक्त,अभिव्यक्त) हे जिसक किसी पदार्थ पर अक्षरों, तअंकों या चिन्हों के साधन द्वारा, या उनमें एक से अधिक साधनों द्वारा वर्णित किया गया हो जो उस विषय के साक्ष्य के रुप में उपयोग किए जाने को आशयित(उद्दीष्ट, अभिप्रेत) हो ।
स्पष्टीकरण १ :
यह तत्वहीन है कि किस साधन द्वारा या किस पदार्थ पर अक्षर, अंक या चिन्ह बनाए गए है या यह कि साक्ष्य किसी न्यायालय के लिए आशयित है या नहीं, या उसमें उपयोग किया जा सकता है या नहीं ।
दृष्टांत :
किसी संविदा के निबन्धनों को अभिव्यक्त करने वाला लेख, जो उस संविदा के साक्ष्य के रुप में उपयोग किया जा सके, दस्तावेज है ।
बैंककार पर दिया गया चेक दस्तावेज है ।
मुख्तारनामा दस्तावेज है ।
मानचित्र या रेखांक, जिसको साक्ष्य के रुप में उपयोग में लाने का आशय हो या जो उपयोग में लाया जा सके, दस्तावेज है ।
जिस लेख में निर्देश या अनुदेश अन्तर्विष्ट हों, वह दस्तावेज है ।
स्पष्टीकरण २ :
अक्षरों , अंकों या चिन्हों से जो कुछ भी वाणिज्यिक या अन्य प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर अभिव्यक्त होता है, वह इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत ऐसे अक्षरों, अंको या चिन्हों से अभिव्यक्त हुआ समझा जाएगा, चाहे वह वस्तुत: अभिव्यक्त न भी किया गया हो ।
दृष्टांत :
(क) एक विनिमय पत्र की पीठ पर, जो उसके आदेश के अनुसार देय है, अपना नाम लिख देता है । वाणिज्यिक प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर इस पृष्ठांकन का अर्थ है कि धारक को विनिमयपत्र का भुगतान कर दिया जाए । पृष्ठांकन दस्तावेज है और इसका अर्थ उसी प्रकार से लगाया जाना चाहिए मानो हस्ताक्षर के ऊपर धारक को भुगतान करो शब्द या तत्प्रभाव वाले शब्द लिए दिए गए हों ।
धारा २९क :
१.(इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख :
(See section 2(39) of BNS 2023)
इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख शब्द का वही अर्थ होगा, जो सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम, २००० की धारा २ की उपधारा (१) खण्ड (न) में समनुदेशित (दिया) किया गया है ।
———
१. २००० के अधिनियम सं० २१ की धारा ९१ और पहली अनुसूची द्वारा (१७-१०-२००० से) अंत:स्थापित ।
धारा ३० :
मूल्यवान प्रतिभूति(सुरक्षा) :
(See section 2(31) of BNS 2023)
मूल्यवान प्रतिभूति शब्द का अर्थ उस दस्तावेज के द्योतक या समझना है , जो एसा दस्तावेज हे जिसके द्वारा कोई विधिक (वैध) अधिकार सृजित(रचना), विस्तृत,अन्तरित(हस्तांतरित), निर्बन्धित, निर्वापित(समाप्त), किया जाए, छोडा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ती यह अभिस्वीकार करता है कि वह विधिक दायित्व के अधीन है, या निश्चित विधिक अधिकार नहीं रखता हैं ।
दृष्टांत :
(क) एक विनिमयपत्र की पीठ पर अपना नाम लिख देता है । इस पृष्ठांकन (समर्थन) का प्रभाव किसी व्ंयक्ति को, जो उसका विधिपूर्ण धारक हो जाए, उसपर विनिमयपत्र का अधिकार अन्तरित किया जाता है, इसलिए यह पृष्ठांकन मूल्यवान प्रतिभूति है ।
धारा ३१ :
बिल :
(See section 2(34) of BNS 2023)
यह शब्द किसी भी वसीयती दस्तावेज का द्योतक (समझा करना)है ।
धारा ३३ :
कार्य, लोप(अकृत) :
(See section 2(1) and 2(25) of BNS 2023)
कार्य शब्द एक कार्य का उसी प्रकार अनेक कार्यो(कार्यावली) का द्योतक(समझा करना) है; वैसेही लोप शब्द एक लोप का उसी प्रकार अनेक लोप की मालिका का द्योतक(समझा करना) है ।
धारा ३९ :
स्वेच्छया (इच्छापूर्वक) :
(See section 2(33) of BNS 2023)
कोई व्यक्ती किसी परिणाम को स्वेच्छया (इच्छापूर्वक) कारित करता है, यह तब कहा जाता है, जब वह व्यक्ती उसे (कार्य) उन साधनों द्वारा कारित करता है, जिनके द्वारा उसे (कार्य) कारित करना उसका आशय था या उन साधानों को काम में लाते समय यह जानता था, या यह विश्वास करने का कारण रखता था कि उनसे उसका कार्य कारित होना संभाव्य है ।
दृष्टांत :
(क) लूट को सुकर बनाने के प्रयोजन से एक बडे नगर के एक बसे हुए गृह में रात को आग लगाता है और इस प्रकार एक व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देता है । यहा (क) का आशय भले ही मृत्यु कारित करने का न रहा हो और वह दुखित भी हो कि उसके कार्य से मृत्यु कारित हुई है तो भी यदि वह जानता था कि संभाव्य है कि वह मृत्यु कारित कर दे तो उसने स्वेच्छया मृत्यु कारित की है ।
धारा ४० :
१.(अपराध (जुर्म) :
(See section 2(24) of BNS 2023)
इस धारा के खण्ड २ और ३ में वर्णित (उल्लेखित) २.(अध्यायों) और धाराओं के सिवाय अपराध शब्द इस सहिंता द्वारा की गई किसी बात (कृती) को दंण्डणीय सुचित करता है।
अध्याय ४, ३.(अध्याय ५क) और निम्नलिखित धाराएं, अर्थात धारा ४.(६४, ६५, ६६, ५.(६७), ७१), १०९, ११०, ११२, ११४, ११५, ११६, ११७, ६.(११८,११९ और १२०), १८७, १९४, १९५, २०३, २११, २१३, २१४, २२१, २२२, २२३, २२४, २२५, ३२७, ३२८, ३२९, ३३०, ३३१, ३४७, ३४८, ३८८, ३८९ और ४४५ में अपराध शब्द इस संहिता के अधीन कि गई किसी बात को दंण्डणीय सुचित करता है या विशेष या स्थानीय विधि के अधीन दण्डणीय बात को सुचित करता है ।
और धारा १४१, १७६, १७७, २०१, २०२, २१२, २१६ और ४४१ में अपराध शब्द का अर्थ वही हे जिसमें कि विशेष या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय कि गई बात (कृती) ऐसी विधि के अधीन छह मास या उससे अधिक अवधिके कारावास से, चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित हो, वह दण्डनीय हो ।
———
१. १८७० के अधिनियम सं० २७ की धारा २ मूल धारा ४० के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९३० के अधिनियम सं० ८ की धारा २ और अनुसूची १ द्वारा अध्याय के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. १९१३ के अधिनियम सं० ८ की धारा २ द्वारा अन्त:स्थापित ।
४. १८८२ के अधिनियम सं० ८ की धारा १ द्वारा अन्त:स्थापित ।
५. १८८६ के अधिनियम सं० १० की धारा २१ (१) द्वारा अन्त:स्थापित ।
६. २००९ के अधिनियम सं० १० की धारा ५१ द्वारा अन्त:स्थापित।
धारा ४१ :
विशेष विधि (कानून):
(See section 2(30) of BNS 2023)
विशेष विधि वह विधि(कानून) जो किसी विशिष्ट विषय को लागू हो ।
धारा ४२ :
स्थानीय विधि(कानून):
(See section 2(18) of BNS 2023)
स्थानीय विधि वह विधि(कानून) जो १.(२.(***)३.(भारत)) के किसी विशिष्ट भाग को ही लागू हो ।
———
१. विधि अनुकूलन आदेश १९४८ द्वारा बिटिश भारत के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. १९५२ के अधिनियम सं० ४८ की धारा ३ और अनुसूची २ द्वारा समाविष्ट राज्यक्षेत्रों में शब्दों का लोप किया गया ।
३. १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा राज्यों के स्थान पर प्रतिस्थापित जिसे विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा प्रान्तों के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया था ।
धारा ४३ :
अवैध, करने के लिए वैध रुप से आबद्ध(बाध्य) :
(See section 2(15) of BNS 2023)
अवैध शब्द उस हर बात को लागू है, जो अपराध हो, या जा विधि द्वारा निषिद्ध (वर्जित) हो, या जो सिविल कार्यवाही के लिए आधार उत्पन्न करती हो; और
करने के लिए वैध रुप से आबद्ध – कोई व्यक्ती उस बात को करने के लिए वैध रुप से आबद्ध कहा जाता है जिसका लोप करना (चूकना) उसके लिए अवैध है ।
धारा ४४ :
क्षति(हानी, नुकसान):
(See section 2(14) of BNS 2023)
क्षति शब्द किसी प्रकार की अपहानी सुचित करता है, जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन ख्याति या संपत्ति को अवैध रुप से कारित हुई हो ।
धारा ४५ :
जीवन :
(See section 2(17) of BNS 2023)
जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल (विरुद्ध, विपरीत) प्रतीत न हो, जीवन शब्द मानव की जीवन का द्योतक है (सूचित करता है) ।
धारा ४६ :
मृत्यू :
(See section 2(6) of BNS 2023)
जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल (विरुद्ध, विपरीत) प्रतीत न हो, मृत्यू शब्द मानव की जीवन का द्योतक है (सूचित करता है) ।
धारा ४७ :
प्राणी (पशु,जीवजन्तु) :
(See section 2(2) of BNS 2023)
प्राणी शब्द मानव से भीन्न किसी जीवधारी का द्योतक है (सुचित करता है) ।
धारा ४८ :
जलयान :
(See section 2(32) of BNS 2023)
जलयान शब्द किसी चीज को सुचित करता है, जो मानवों के या संपत्ती के जल द्वारा प्रवहण के लिए बनाई गई हो ।
धारा ४९ :
वर्ष. मास :
(See section 2(20) of BNS 2023)
वर्ष या मास शब्द का जहां कही प्रयोग किया गया है वहां वर्ष या मास की गणना ब्रिटिश कलैण्डर के अनुकूल की जानी है यह समझा जाना है ।
धारा ५० :
धारा :
धारा शब्द इस संहिता के किसी अध्याय के उन भागों में से किसी एक का द्योतक है (समझा जाना है), जो सिरे पर लगे संख्यांकों द्वारा सुभिन्न किए गए है ।
धारा ५१ :
शपथ :
(See section 2(23) of BNS 2023)
विधि द्वारा सत्यनिष्ठ (गांर्भीर्य पूर्वक,प्रवित्र) प्रतिज्ञान और एैसी कोई घोषणा, जो किसी लोक-सेवक के समक्ष(सामने)किया जाना या न्यायालय में या अन्य सबूत के प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित या प्राधिकृत हो, शपथ शब्द के अंतर्गत आती है ।
धारा ५२ :
सद्भावपूर्वक :
(See section 2(11) of BNS 2023)
जब कोई बात(कोई क्रिया) विश्वास के साथ और आवश्यक सावधानी लेकर कि जाती हे या समझी जाती है तब वह सद्भावपूर्व की गई है ऐसा कहा जाता है ।
धारा ५२क :
१.(आश्रय देणा (संश्रय) :
(See section 2(13) of BNS 2023)
धारा १५७ में और १३० में के सिवाय जहाँ आश्रय पत्नी या पति द्वारा एक दुसरे को दिया गया हो, किसी व्यक्ती को आश्रय, भोजन, पेय, धन, वस्त्र, आयुध, गोलाबारुद या प्रवहन के साधन देना, या किसी व्यक्ती की पकडे जाने से बचने के लिए सहायता करना, या किन्हीं साधनो से चाहे वे उसी प्रकार के हों या ना हों जिस प्रकार के इस धारा में अंकित (परिगणित) है आश्रय देणा शब्द के अन्तर्गत आता है ।)
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१. १९४२ के अधिनियम सं० ८ की धारा २ द्वारा अन्त:स्थापित जिसे विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा प्रान्तो के स्थान पर प्रतिस्थापित किया गया ।
धारा २१६ ख :
१.(धारा २१२, धारा २१६, और २१६ ख में संश्रय की परिभाषा :
(See section 2(13) of BNS 2023)
भारतीय दण्ड संहिता(संशोधन) अधिनियम, १९४२, (१९४२ का ८) की धारा ३ द्वारा निरसित ।)
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१. यह धारा १८९४ के अधिनियम सं० ३ की धारा ८ द्वारा जोडाी गयी थी ।