स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम १९८५
धारा ३६-क :
१.(विशेष न्यायालयों द्वारा विचारणीय अपराध :
१) दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) में किसी बात के होते हुए भी, –
क) इस अधिनियम के अधीन ऐसे सभी अपराध, जो तीन वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय है, उस क्षेत्र के लिए, जिसमें अपराध किया गया है, गठित विशेष न्यायालय द्वारा ही या जहां ऐसे क्षेत्र के लिए एक से अधिक विशष न्यायालय है वहां, उनमें से ऐसे एक के द्वारा ही, जिसे सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किया जाए, विचारणीय होंगे ;
ख) जहां इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के अभियुक्त या उसके किए जाने के संदेहयुक्त किसी व्यक्ति को दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) की धारा १६७ की उपधारा (२) या उपधारा (२-क) के अधीन किसी मजिस्ट्रेट को भेजा जाता है, वहां ऐसे मजिस्ट्रेट ऐसे व्यक्ति को ऐसी अभिरक्षा में, जो वह उचित समझे, कुल मिलाकर पन्द्रह दिन से अनधिक की अवधि के लिए, जहां ऐसा मजिस्ट्रेट, न्यायिक मजिस्ट्रेट है और कुल मिलाकर सात दिन की अवधि के लिए, जहां ऐसा मजिस्ट्रेट, कार्यपालक मजिस्ट्रेट है, निरोध के लिए प्राधिकृत कर सकेगा :
परन्तु ऐसे मामलों में, जो विशेष न्यायालय द्वारा विचारणीय है, जहां ऐसे मजिस्ट्रेट का –
एक) जब ऐसा व्यक्ति पूर्वोक्त रुप में उसको भेजा जाता है, या
दो) उसके द्वारा प्राधिकृत निरोध की अवधि की समाप्ति पर या उसके पूर्व किसी भी समय,
यह विचार है कि ऐसे व्यक्ति का निरोध अनावश्यक है, वहां वह ऐसे व्यक्ति को अधिकारिता रखने वाले विशेष न्यायालय को भेजे जाने का आदेश करेगा ;
ग) विशेष न्यायालय, खंड (ख) के अधीन उसको भेजे गए व्यक्ति के संबंध में, उसी शक्ति का प्रयोग कर सकेगा जिसका प्रयोग किसी मामले का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाला मजिस्ट्रेट, दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) की धारा १६७ के अधीन, ऐसे मामले में किसी अभियुक्त व्यक्ति के संबंध में, जिसे उस धारा के अधीन उसको भेजा गया है, कर सकता है;
घ) विशेष न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन अपराध गठित करने वाले तथ्यों की पुलिस रिपोर्ट का परिशीलन करने पर या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के इस निमित्त प्राधिकृत किसी अधिकारी द्वारा किए गए परिवाद पर, अपराधी को विचारण के लिए उसको सुपुर्द न किए जाने की दशा में भी उस अपराध का संज्ञान कर सकेगा ।
२) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का विचारण करने समय, विशेष न्यायालय, इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध से भिन्न ऐसे अपराध का भी विचारण कर सकेगा जिसके लिए अभियुक्त को, दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ ( १९७४ का २) के अधीन उसी विचारण में आरोपित किया जाए ।
३) इस धारा की कोई बात दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) की धारा ४३९ के अधीन जमानत से संबंधित उच्च न्यायालय की विशेष शक्तियों को प्रभावित करने वाली नहीं समझी जाएगी और उच्च न्यायालय ऐसी शक्तियों का प्रयोग, जिनके अंतर्गत उस धारा की उपधारा (१) के खंड (ख) के अधीन शक्ति भी है, ऐसे कर सकेगा मानो उस धारा में मजिस्ट्रेट के प्रति निर्देश के अंतर्गत धारा ३६ के अधीन गठित विशेष न्यायालय के प्रति निर्देश भी है ।
४) धारा १९ या धारा २४ या धारा २७-क के अधीन दंडनीय किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्तियों के संबंध में या वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित अपराधों के लिए, दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) की धारा १६७ की उपधारा (२) में नब्बे दिन के प्रति निर्देशों का, जहां-जहां वे आते है, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे एक सौ अस्सी दिन के प्रति निर्देश है :
परन्तु यदि अन्वेषण को, उक्त एक सौ अस्सी दिन की अवधि के भीतर पूरा करना संभव नहीं है, तो विशेष न्यायालय उक्त अवधि को लोक अभियोजक की अन्वेषण की प्रगति और उक्त एक सौ अस्सी दिन की अवधि से परे अभियुक्त के निरोध के लिए विनिर्दिष्ट कारणों को उपदर्शित करने वाली रिपोर्ट पर एक वर्ष तक बढा सकेगा ।
५) दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के कारावास से दंडनीय अपराधों का संक्षिप्त विचारण किया जा सकेगा ।)
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१.२००१ के अधिनियम सं.९ की धारा १४ द्वारा अंत: स्थापित ।
