किशोर न्याय अधिनियम २०१५
धारा ३५ :
बालकों का अभ्यर्पण ।
१) कोई माता-पिता या संरक्षक, जो ऐसे शारीरिक, भावात्मक और सामाजिक कारणों से, जो उसके नियंत्रण के परे है, बालक का अभ्यर्पण करना चाहता है, बालक को समिति के समक्ष पेश करेगा ।
२) यदि, जांच और परामर्श की विहित प्रक्रिया के पश्चात् समिति का समाधान हो जाता है तो, यथास्थिति, माता-पिता या संरक्षक द्वारा समिति के समक्ष विलेख निष्पादित किया जाएगा ।
३) ऐसे माता-पिता या संरक्षक को, जिसने बालक का अभ्यर्पण किया है, बालक के अभ्यर्पण संबंधी अपने विनिश्चय पर पुन:विचार करने के लिए दो मास का समय दिया जाएगा और अंतरिम अवधि में समिति, सम्यक् जांच के पश्चात् या तो बालक को माता-पिता या संरक्षक के पर्यवेक्षण के अधीन अनुज्ञात करेगी या यदि वह छह वर्ष से कम आयु का या आयु की है तो वह बालक को किसी विशिष्ट दत्तक ग्रहण अभिकरण में रखेगी या यदि वह छह वर्ष से अधिक आयु का या आयु की है तो बाल गृह में रखेगी ।