किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, २०१५
(२०१६ का अधिनियम संख्यांक २) (३१ दिसम्बर, २०१५)
विधि के उल्लंघन के अभिकथित और उल्लंघन करते पाए जाने वाले बालकों और देखरेख तथा संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों से संबंधित विधि का समेकन और संशोधन करने के लिए, बालकों सर्वोत्तम हित में मामलों के न्यायनिर्णयन और निपटारे में बालकों के प्रति मित्रवत् दृष्टिकोण अपनाते हुए समुचित देखरेख, संरक्षा, विकास, उपचार, समाज में पुन: मिलाने के माध्यम से उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करते हुए और उपबंधित प्रक्रियाओं तथा इसमें इसके अधीन स्थापित संस्थाओं और निकायों के माध्यम से उनके पुनर्वासन के लिए, तथा उससे संबंधित और माध्यम से उनके पुनर्वासन के लिए, तथा उससे संबंधित और उसके आनुषंगिक विषयों के लिए अधिनियम
संविधान के अनुच्छेद १५ के खंड (३), अनुच्छेद ३९ के खंड (ङ) और खंड (च), अनुच्छेद ४५ और अनुच्छेद ४७ के उपबंधों के अधीन यह सुनिश्चित करने के लिए कि बालकों की सभी आवश्यकताओं को पूरा किया जाए और उनके मूलभूत मानव अधिकारों की पूर्णतया संरक्षा की जाए, शक्तियां प्रदान की गई है और कर्तव्य अधिरोपित किए गए है;
और, भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा द्वारा अंगीकृत, बालकों के अधिकारों से संबंधित अभिसमय को, जिसमें ऐसे मानक विहित किए गए है जिनका बालक के सर्वोत्तम हित को सुनिश्चित करने में सभी राज्य पक्षकारों द्वारा पालन किया जाना है, ११ दिसम्बर, १९९२ को अंगीकार किया था;
और, विधि का उल्लंघन करने के अभिकथित और उल्लंघन करते पाए जाने वाले बालकों तथा देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों के लिए बालक के अधिकारों से संबंधित अभिसमय, किशोर न्याय के प्रशासन के लिए संयुक्त राष्ट मानक न्यूनतम नियम, १९८५ (बीqजग) नियम, अपनी स्वतंत्रता से वंचित संयुक्त राष्ट किशोर संरक्षण नियम १९९०, बालक संरक्षण और अंतरदेशीय दत्तकग्रहण की बाबत सहयोग संबंधी हेग कन्वेंशन १९९३ तथा अन्य संबंधित अंतरराष्ट्रीय लिखतों में विहित मानकों को ध्यान में रखते हुए व्यापक उपबंध करने के लिए किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, २००० (२००० का ५६) को पुन: अधिनियमित करना समीचीन है ।
भारत गणराज्य के छियासठवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रुप में यह अधिनियमित हो :-
अध्याय १ :
प्रारंभिक :
धारा १ :
संक्षिप्त नाम, विस्तार प्रारंभ और लागू होना ।
१) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण ) अधिनियम, २०१५ है ।
२) इसका विस्तार १.(***) सपूर्ण भारत पर है ।
३) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे ।
४) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के उपबंध देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों तथा विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों से संबंधित सभी मामलों में लागू होंगे, जिनके अंतर्गत,-
एक) विधि का उल्लंघन करने वाले बालकों की गिरफ्तारी, निरोध, अभियोजन, शास्ति या कारावास, पुनर्वास और समाज में पुन: मिलाना;
दो) देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बालकों के पुनर्वासन, दत्तकग्रहण, समाज में पुन: मिलाने और वापसी की प्रक्रियाएं और विनिश्चय अथवा आदेश,
भी हैं ।
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१. २०१९ का अधिनियम सं० ३४ की धारा ९५ और अनुसूची पांच द्वारा जम्मू और काश्मीर के सिवाय शब्द का लोप किया गया ।