विदेशियों विषयक अधिनियम १९४६
धारा ४ :
नजरबन्द :
१.(१) कोई भी विदेशी (जिसे इसमें इसके पश्चात् नजरबंद कहा गया है) जिसके संबंध में धारा ३ की उपधारा (२) के खण्ड (छ) के अधीन दिया गया कोई आदेश प्रवृत्त है जिसमें यह निदेश है कि उसे निरुद्ध या परिरुद्ध रखा जाए तो वह ऐसे स्थान में और ऐसी रीति से तथा भरण-पोषण, अनुशासन और अपराधों के दंड और अनुशासन के भंग के बारे में ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर आदेश द्वारा अवधारित करे, निरुद्ध या परिरुद्ध रखा जाएगा ।)
२) कोई भी विदेशी (जिसे इसमें इसके पश्चात परोल पर छोड़ा गया व्यक्ति कहा गया है) जिसके संबंध में धारा ३ की उपधारा (२) के खंड (ङ) के अधीन कोई आदेश प्रवृत्त है जिसमें उससे पर्यवेक्षणाधीन विदेशियों के समूह के निवास के लिए पृथक किए गए स्थान पर निवास करने के लिए अपेक्षा की गई है, उसमें निवास करने के दौरान भरण-पोषण, अनुशासन और अपराधों के दंड और अनुशासन के भंग के बारे में ऐसी शर्तों के अधीन होगा जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर आदेश द्वारा अधारित करे।
२.(३) कोई भी व्यक्ति-
(a)क) नजरबन्द या परोल पर छोड़े गए व्यक्ति की अभिरक्षा से या उसके निवास के लिए पृथक किए गए स्थान से निकल भागने में जानबूझकर सहायता नहीं करेगा या निकल भागे नजरबन्द या परोल पर छाड़े गए किसी व्यक्ति को जानबूझकर संश्रय नहीं देगा, या
(b)ख) निकल भागे नजरबन्द या परोल पर छोड़े गए व्यक्ति की इस आशय से सहायता नहीं करेगी कि तद्वारा नजरबन्द या परोल पर छोड़े गए व्यक्ति के पकड़े जाने में रोक, प्रतिबाधा या हस्तक्षेप हो।
४) केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा, भारत में उन स्थानों तक जहां नजरबन्द या परोल पर छोड़े गए व्यक्ति, यथास्थिति, निरुद्ध या निर्बन्धित है पहुंच, और उनमें व्यक्तियों के आचरण को विनियमित करने के लिए और ऐसे स्थानों के बाहर से नजरबन्दों या परोल पर छोड़े गए व्यक्तियों को या के लिए ऐसी वस्तुओं का जो विहित की जाएं, भेजना या प्रवहन के प्रतिषेध या विनियमन के लिए उपबन्ध कर सकती है।)
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१. १९६२ के अधिनियम सं० ४२ की धारा ३ द्वारा अन्त:स्थापित। पूर्ववर्ती उपधारा (१) का १९५७ के अधिनियम सं० ११ की धारा ५ द्वारा (१९-१-१९५७से) लोप किया गया था।
२. १९६२ के अधिनियम सं० ४२ की धारा ३ द्वारा उपधारा (३) और उपधारा (४) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
