भारतीय न्याय संहिता २०२३
धारा २ :
परिभाषाएं :
इस संहिता में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
१) कार्य – कार्य शब्द कार्यावली का द्योतक (समझा करना) उसी प्रकार है, जिस प्रकार एक कार्य का;
२) जीवजन्तु (प्राणी) शब्द मानव से भीन्न कोई जीवधारी अभिप्रेत है;
३) बालक से अठारह वर्ष से कम आयु का कोई व्यक्ति अभिप्रेत है;
४) कूटकरण – जब किसी व्यक्तीने एक चीज(वस्तू) दुसरी चीज सदृश्य (जैसे लगते है) करता है, इसमे उद्देश्य उसे धोका देणे का हो; और इसमे धोका होणे का संभाव्य जानते हुए करता है, वह कूटकरण(नकली) करता है, यह कहा जाता है ।
स्पष्टीकरण १ :
कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठिक वैसी ही हो ।
स्पष्टीकरण २ :
जब कि कोई व्यक्ती एक चीज को दुसरी चीज के सद्दश (जैसे) कर दे और सद्दश ऐसा है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ती को प्रवंचना हो सकती हो, तो जब तक की तत्पतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि जो व्यक्ती एक चीज को दूसरी चीज के इस प्रकार सद्दश बनाता है उसका आशय उस सद्दश द्वारा प्रवंचना करने का था या वह यह संभाव्य जानता था कि एतद्द्वारा प्रवंचना की जाएगी;
५) न्यायालय शब्द उस न्यायाधीश का, जिसे अकेले ही को न्यायिकत: कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, या उस न्यायाधीश-निकाय (संस्था) का, जिसे एक निकाय (संस्था) के रुप में न्ययिकत: कार्य करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, जब कि ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीश-निकाय (संस्था) न्यायिकत: कार्य कर रहा हो, अभिप्रेत है;
६) मृत्यु – जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल (विरुद्ध, विपरीत) प्रतीत न हो, मृत्यू शब्द मानव की मृत्यु का द्योतक है (सूचित करता है);
७) बेइमानी से – जो कोई इस किसी एक व्यक्तीको सदोष अभिलाभ (गलत तरिके से लाभ) हो या किसी अन्य व्यक्तीको सदोष हानी (गलत तरिके से हानी) हो इस आशय से कोई कार्य करता है वह उस कार्य को बेईमानी से करता है, यह कहा जाता है;
८) दस्तावेज से कोई ऐसा विषय अभिप्रेत है, जिसको किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या चिन्हों के साधन द्वारा, या उनमें एक से अधिक साधनों द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित किया गया हो, और इसके अंतर्गत ऐसे इलैक्ट्रानिक और डिजिटल अभिलेख भी है, जो उस विषय के साक्ष्य के रुप में उपयोग किए जाने को आशयित (उद्दीष्ट, अभिप्रेत) हो या उपयोग किया जा सके;
स्पष्टीकरण १ :
यह तत्वहीन है कि किस साधन द्वारा या किस पदार्थ पर अक्षर, अंक या चिन्ह बनाए गए है या यह कि साक्ष्य किसी न्यायालय के लिए आशयित है या नहीं, या उसमें उपयोग किया जा सकता है या नहीं ।
दृष्टांत :
(a) क) किसी संविदा के निबन्धनों को अभिव्यक्त करने वाला लेख, जो उस संविदा के साक्ष्य के रुप में उपयोग किया जा सके, दस्तावेज है ।
(b) ख) बैंककार पर दिया गया चेक दस्तावेज है ।
(c) ग) मुख्तारनामा दस्तावेज है ।
(d) घ) मानचित्र या रेखांक, जिसको साक्ष्य के रुप में उपयोग में लाने का आशय हो या जो उपयोग में लाया जा सके, दस्तावेज है ।
(e) ङ) जिस लेख में निर्देश या अनुदेश अन्तर्विष्ट हों, वह दस्तावेज है ।
स्पष्टीकरण २ :
अक्षरों , अंकों या चिन्हों से जो कुछ भी वाणिज्यिक या अन्य प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर अभिव्यक्त होता है, वह इस धारा के अर्थ के अन्तर्गत ऐसे अक्षरों, अंको या चिन्हों से अभिव्यक्त हुआ समझा जाएगा, चाहे वह वस्तुत: अभिव्यक्त न भी किया गया हो ।
दृष्टांत :
एक विनिमय पत्र की पीठ पर, जो उसके आदेश के अनुसार देय है, अपना नाम लिख देता है । वाणिज्यिक प्रथा के अनुसार व्याख्या करने पर इस पृष्ठांकन का अर्थ है कि धारक को विनिमयपत्र का भुगतान कर दिया जाए । पृष्ठांकन दस्तावेज है और इसका अर्थ उसी प्रकार से लगाया जाना चाहिए मानो हस्ताक्षर के ऊपर धारक को भुगतान करो शब्द या तत्प्रभाव वाले शब्द लिए दिए गए हों ।
९) कपटपूर्वक (धोके से) :
कोई व्यक्ती किसी बात को कपटपूर्वक (धोके से) करता है, यह कहा जाता है, यदि वह उस बात को कपट (धोका) करने के आशय से करता है, किन्तु अन्यथा नहीं ।
१०) लिंग :
वह या पुल्लिंग वाचक शब्द का प्रयोग जहा किए गए है, वे हर व्यक्ती के बारें में लागू है, चाहे नर हो या नारी ।
स्पष्टीकरण :
ट्रान्सजेंडर का वह अर्थ होगा, जो ट्रान्सजैंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम २०१९ (२०१९ का ४०) की धारा (२) के खंड (ट) में है;
११) सद्भावपूर्वक :
जब कोई बात (कोई क्रिया) विश्वास के साथ और आवश्यक सावधानी लेकर कि जाती हे या समझी जाती है तब वह सद्भावपूर्व की गई है ऐसा कहा जाता है ।
१२) सरकार :
सरकार शब्द केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य की सरकार अभिप्रते है;
१३) संश्रय :
संश्रय शब्द के अन्तर्गत किसी व्यक्ती को आश्रय, भोजन, पेय, धन, वस्त्र, आयुध, गोलाबारुद या प्रवहन के साधन देना, या किसी व्यक्ती की पकडे जाने से बचने के लिए सहायता करना, या किन्हीं साधनो से चाहे वे उसी प्रकार के हों या ना हों जिस प्रकार के इस धारा में अंकित (परिगणित) है संश्रय (आश्रय देणा) शब्द के अन्तर्गत आता है;
१४) क्षति (हानी, नुकसान) :
क्षति शब्द किसी प्रकार की अपहानी सुचित करता है, जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन ख्याति या संपत्ति को अवैध रुप से कारित हुई हो;
१५) अवैध, करने के लिए वैध रुप से आबद्ध (बाध्य) :
अवैध शब्द उस हर बात को लागू है, जो अपराध हो, या जा विधि द्वारा निषिद्ध (वर्जित) हो, या जो सिविल कार्यवाही के लिए आधार उत्पन्न करती हो; और
करने के लिए वैध रुप से आबद्ध – कोई व्यक्ती उस बात को करने के लिए वैध रुप से आबद्ध कहा जाता है जिसका लोप करना (चूकना) उसके लिए अवैध है;
१६) न्यायाधीश :
न्यायाधीश शब्द का अर्थ न केवल हर ऐसे व्यक्ती का सुचित करना या द्योतक है, जो पद रुप से न्यायाधीश अभिहित हो, किन्तु उस हर व्यक्ती का भी सुचित करना या द्योतक है,
एक) जो किसी विधी कार्यवाही में, चाहे वह सिविल(दिवानी या नागरी) या दाण्डिक, अंतिम निर्णय या ऐसा निर्णय, जो उसके विरुद्ध अपील न होने पर अंतिम हो जाए या ऐसा निर्णय, जो किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा पुष्ट किए जाने पर अंतिम हो जाए, देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो, अथवा
दो) जो उस व्यक्ती -निकाय में से एक हो, जो व्यक्ती- निकाय(संस्था) ऐसा निर्णय देने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो।
दृष्टांत :
किसी आरोप के संबंध में, जिसके लिए उसे जुर्माना या कारावास का दण्ड देने की शक्ति प्राप्त है, चाहे उसकी अपील होती हो या न होती हो, अधिकारिता का प्रयोग करने वाला मजिस्ट्रेट न्यायाधीश है ।
१७) जीवन :
जब तक कि संदर्भ से तत्प्रतिकूल (विरुद्ध, विपरीत) प्रतीत न हो, जीवन शब्द मानव की जीवन का द्योतक है (सूचित करता है);
१८) स्थानीय विधि(कानून):
स्थानीय विधि वह विधि (कानून) है जो भारत के किसी विशिष्ट भाग को ही लागू हो;
१९) पुरुष :
पुरुष शब्द किसी भी आयु के मानव नर का अभिप्रेत है;
२०) मास और वर्ष :
वर्ष या मास शब्द का जहां कही प्रयोग किया गया है वहां वर्ष या मास की गणना ग्रेगोरियन कलैण्डर के अनुकूल की जानी है यह समझा जाना है;
२१) जंगम संपत्ति :
जंगम संपत्ति इन शब्दों से यह आशयित है कि इनके अन्तर्गत हर विवरण की मूर्त संपत्ती आती है, किन्तु भूमि और वे चीजें, जो पृथ्वी से जुडी(भूबद्ध) हों या पृथ्वी (भूबद्ध) के किसी चीज से स्थायी रुप से जकडी हुई हों, इनके अन्तर्गत नहीं आती;
२२) वचन :
जब तक संदर्भ से तत्प्रतिकूल प्रतीत न हो, एकवचन अभिप्रेत शब्दों के अन्तर्गत बहुवचन आता है, और बहुवचन अभिप्रेत शब्दों के अन्तर्गत एकवचन आता है।
२३) शपथ :
विधि द्वारा सत्यनिष्ठ (गांर्भीर्य पूर्वक,प्रवित्र) प्रतिज्ञान और एैसी कोई घोषणा, जो किसी लोक-सेवक के समक्ष (सामने) किया जाना या न्यायालय में या अन्य सबूत के प्रयोजन के लिए उपयोग किया जाना विधि द्वारा अपेक्षित या प्राधिकृत हो, शपथ शब्द के अंतर्गत आती है;
२४) अपराध :
इस के उपखण्ड (क) और (ख) में वर्णित (उल्लेखित) अध्यायों और धाराओं के सिवाय अपराध शब्द इस सहिंता द्वारा की गई किसी बात (कृती) को दंण्डणीय सुचित करता है, परंतु –
(a) क) अध्याय ३ और निम्नलिखित धाराएं, अर्थात धारा ८ की उपधारा (२), (३), (४), (५), धारा ९, धारा ४९, धारा ५०, धारा ५२, धारा ५४, धारा ५५, धारा ५६, धारा ५७, धारा ५८, धारा ५९, धारा ६०, धारा ६१, धारा ११९, धारा १२०, धारा १२३, धारा १२७ की उपधारा (७) और (८), धारा २२२, धारा २३०, धारा २३१, धारा २४०, धारा २४८, धारा २५०, धारा २५१, धारा २५९, धारा धारा २६०, धारा २६१, धारा २६२, धारा २६३, धारा ३०८ की उपधारा (६) और उपधारा (७) तथा धारा ३३० की उपधारा (२) में अपराध शब्द से इस संहिता के अधीन या विशेष या स्थानीय विधि के अधीन दंडनीय बात अभिप्रेत है; और
(b) ख) धारा १८९ की उपधारा (१), धारा २११, धारा २१२, धारा २३८, धारा २३९, धारा २४९, धारा २५३ और धारा ३२९ की उपधारा (१) में अपराध शब्द का अर्थ वही हे जिसमें कि विशेष या स्थानीय विधि के अधीन दण्डनीय कि गई बात (कृती) ऐसी विधि के अधीन छह मास या उससे अधिक अवधिके कारावास से, चाहे वह जुर्माने सहित हो या रहित हो, वह दण्डनीय हो;
२५) लोप :
लोप शब्द एक लोप का उसी प्रकार अनेक लोप की मालिका का द्योतक (समझा करना) है;
२६) व्यक्ती :
कोई भी कंपनी या निगम (संस्था), या व्यक्ती निकाय चाहे वह निगमित हो या नहीं,व्यक्ती शब्द के अन्तर्गत आता है;
२७) लोक (जनता) :
लोक (जनता) का कोई भी वर्ग या कोई भी समुदाय लोक (जनता) शब्द के अन्तर्गत आता है;
२८) लोक-सेवक :
लोक-सेवक शब्द उस व्यक्ती का समझा जाना या द्योतक है जो निम्नगत वर्णनों में से किसी में आता है, अर्थात् :
(a) क) भारत की सेना, नौसेना या वायुसेना का हर आयुक्त ऑफिसर;
(b) ख) हर न्यायाधीश जिसके अन्तर्गत ऐसा कोई भी व्यक्ती आता है जो स्वतंत्र रुपसे या व्यक्तीयोंके किसी निकाय(संस्था) के सदस्य के रुप में जो न्याय करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो;
(c) ग) न्यायालय का हर अफसर जिसके अन्तर्गत समापक (लिक्विडेटर),रिसीवर या कमिशनर (प्राप्तीकर्ता या आयुक्त) आता है, जिसका ऐसे आफिसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह विधि (कानून) या तथ्य के किसी मामलें अन्वेषण या रिपोर्ट (जांच-पडताल) करे, या कोई दस्ताऐवज बनाए, उसे जतन करे, या अधिप्रमाणिकृत करे, या किसी सम्पत्ती का भार संभाले या उस संपत्ति का व्ययन (निपटान) करे, या किसी न्यायिक प्रक्रिया (आदेशिका) का निष्पादन करे (पालन करे),या कोई शपथ ग्रहण कराए या निर्वचन (विवेचन) करे, या न्यायालय में व्यवस्था बनाए रखे और एसे हर व्यक्ती, जिसे इन कर्तव्यों में से किन्हीं का पालन करने का प्राधिकार (अधिकार दिया गया) न्यायालय द्वारा विशेष रुप से दिया गया हो;
(d) घ) किसी न्यायालय या लोकसेवक की सहायता करने वाला हर जूरी सदस्य (पंचो में एक), असेसर (आंकलन करनेवाला) या पंचायत का सदस्य;
(e) ङ) किसी न्यायालय द्वारा, या किसी अन्य सक्षम लोकप्राधिकारी द्वारा कोई मामला या विषय, विनिश्चय (मामला निर्णय के लिए भेज दिया गया है) या रिपोर्ट के लिए निर्देशित किया गया हो; ऐसा हर मध्यस्थ या अन्य व्यक्ती;
(f) च) हर व्यक्ती जो किसी ऐसे पद को धारण करता हो, जिसके आधार से वह किसी व्यक्ती को परिरोध (रोक) में करने या रखने के लिए सशक्त हो;
(g) छ) सरकार का हर अफसर जिसका ऐसे अफसर के नाते अपराधों का निवारण कर अपराधों की इत्तिला दे, अपराधियों को न्याय के लिए उपस्थित करे, या लोक स्वास्थ्य, सुरक्षा या सुविधा की संरक्षा करे, यह कर्तव्य होनेवाला सरकार का हर अफसर;
(h) ज) सरकार का हर अफसर जिसका ऐसे अफसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह सरकार की ओर से किसी संपत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे, व्यय करे, या सरकार की ओर से कोई सर्वेक्षण, निर्धारण, या मुल्यांकन करे, या किसी राजस्व आदेशिका का निष्पादन करे या सरकार के आर्थिक (धन-संबंधी) हितो पर प्रभाव डालने वाले किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे या सरकार के आर्थिक हित संबंधी (धन संबंधी) किसी दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणित करे या रखे, या सरकार के आर्थिक हित संबंधी (धन संबंधी) कि सुरक्षा के लिए किसी विधि के व्यतिक्रम को रोके;
(i) झ) हर अफसर ऐसे अफसर के नाते यह कर्तव्य हो कि वह किसी ग्राम, नगर या जिले के किसी धर्मनिरपेक्ष सामाजिक प्रयोजन के लिए किसी संपत्ती के ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे या व्यय करे, कोई सर्वेक्षण या निर्धारण करे, या कोई रेट या कर उदगृहीत करे, या किसी ग्राम, नगर या जिेले के लोगों के अधिकारों के अभिनिश्चयन के लिए कोई दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणित करे या रखे;
(j) ञ) हर व्यक्ती जो कोई पदाधिकारी हो, ओर उस पद के आधार से वह मतदाता सूची या नियमावली तैयार करणे, प्रकाशित करणे, रखणे, सुधारित करणे और चुनाव प्रक्रिया या उसका किसी भाग को संचालित करणे के लिए अधिकार रखता हो या सशक्त हो;
(k) ट) हर व्यकित, जो –
एक) सरकार के सेवा में हो, सरकार की और से वेतन प्राप्त करणे वाली हो, या किसी लोक कर्तव्य के पालन के लिए सरकार की और से फीस या कमिशन से रुप में वेतन या कोई रक्कम प्राप्त करणे वाली हर व्यक्ती;
दो) साधारण खंड अधिनियम १८९७ (१८९७ का १०) की धारा ३ के खंड (३१) में यथा परिभाषित किसी स्थानीय प्राधिकारी की, किसी केन्द्रीस अधिनियम या राज्य अधिनियम के द्वारा या उसके अधीन स्थापित किसी निगम की अथवा कम्पनी अधिनियम २०१३ (२०१३ का १८) की धारा २ के खंड (४५) में यथा परिभाषित किसी कम्पनी की, सेवा या वेतन में हो।
स्पष्टीकरण :
क) ऊपर के वर्णनों में से किसी में आने वाले व्यक्ति लोक सेवक है, चाहे वे सरकार द्वारा नियुक्त किए गए हों या नहीं ।
ख) वे उस हर व्यक्ति के संबंध में समझे जाएंगे जो लोक सेवक के ओहदे को वास्तव में धारण किए हुए हों, चाहे उस ओहदे को धारण करने के उसके अधिकार में कैसी ही विधिक त्रुटि हो ।
ग) निर्वाचन शब्द ऐसे किसी विधायी, नगरपालिका या अन्य लोक प्राधिकारी के नाते, चाहे वह कैसे ही स्वरुप का हो, सदस्यों के वरणार्थ निर्वाचन का सुचित करना या द्योतक है जिसके लिए वरण (चुनाव) करणे की पद्धति किसी विधि के द्वारा या अधीन निर्वाचन के रुप में विहित की गई हो।
दृष्टांत :
नगरपालिका आयुक्त लोक सेवक है ।
२९) विश्वास करने का कारण :
कोई व्यक्ती जब किसी बात के विश्वास करने का कारण रखता है , यह तब कहा जाता है जब वह उस बात के विश्वास करने का पर्याप्त हेतुक रखता है, अन्यथा नहीं ।
३०) विशेष विधि (कानून):
विशेष विधि वह विधि (कानून) जो किसी विशिष्ट विषय को लागू हो ।
३१) मूल्यवान प्रतिभूति (सुरक्षा) :
मूल्यवान प्रतिभूति शब्द का अर्थ उस दस्तावेज के द्योतक या समझना है , जो एसा दस्तावेज हे, या होनी तात्पर्यित है, जिसके द्वारा कोई विधिक (वैध) अधिकार सृजित (रचना), विस्तृत,अन्तरित(हस्तांतरित), निर्बन्धित, निर्वापित(समाप्त), किया जाए, छोडा जाए या जिसके द्वारा कोई व्यक्ती यह अभिस्वीकार करता है कि वह विधिक दायित्व के अधीन है, या निश्चित विधिक अधिकार नहीं रखता हैं ।
दृष्टांत :
(क) एक विनिमयपत्र की पीठ पर अपना नाम लिख देता है । इस पृष्ठांकन (समर्थन) का प्रभाव किसी व्ंयक्ति को, जो उसका विधिपूर्ण धारक हो जाए, उसपर विनिमयपत्र का अधिकार अन्तरित किया जाता है, इसलिए यह पृष्ठांकन मूल्यवान प्रतिभूति है ।
३२) जलयान :
जलयान शब्द किसी चीज को सुचित करता है, जो मानवों के या संपत्ती के जल द्वारा प्रवहण के लिए बनाई गई हो;
३३) स्वेच्छया (इच्छापूर्वक) :
कोई व्यक्ती किसी परिणाम को स्वेच्छया (इच्छापूर्वक) कारित करता है, यह तब कहा जाता है, जब वह व्यक्ती उसे (कार्य) उन साधनों द्वारा कारित करता है, जिनके द्वारा उसे (कार्य) कारित करना उसका आशय था या उन साधानों को काम में लाते समय यह जानता था, या यह विश्वास करने का कारण रखता था कि उनसे उसका कार्य कारित होना संभाव्य है;
दृष्टांत :
(क) लूट को सुकर बनाने के प्रयोजन से एक बडे नगर के एक बसे हुए गृह में रात को आग लगाता है और इस प्रकार एक व्यक्ति की मृत्यु कारित कर देता है । यहा (क) का आशय भले ही मृत्यु कारित करने का न रहा हो और वह दुखित भी हो कि उसके कार्य से मृत्यु कारित हुई है तो भी यदि वह जानता था कि संभाव्य है कि वह मृत्यु कारित कर दे तो उसने स्वेच्छया मृत्यु कारित की है;
३४) बिल :
यह शब्द किसी भी वसीयती दस्तावेज का द्योतक (समझा करना)है;
३५) स्त्री :
स्त्री शब्द किसी भी आयु की मानव नारी का सुचित करना है;
३६) सदोष अभिलाभ (गलत तरिके से लाभ) :
सदोष अभिलाभ (गलत तरिके से लाभ) जिस व्यक्ती को कानूनी अधिकार ना हो ऐसी संपत्ती का अवैध रुप से प्राप्त किया अभिलाभ (लाभ) ।
३७) सदोष हानी (गलत तरिके से हानी):
सदोष हानी जिस व्यक्ती को कानूनी अधिकार हो ऐसी संपत्ती का वैध रुप से हानी उठानेवाला ।
३८) सदोष अभिलाभ प्राप्त करना, सदोष हानी उठाना:
कोई व्यक्ती सदोष अभिलाभ (गलत तरिके से लाभ) प्राप्त करता है, यह तब तक कहा जाता है जबकि वह व्यक्ती सदोष बनाए रखता है और तब भी जबकि वह व्यक्ती सदोष अर्जन करता (अधिग्रहण या प्राप्त करना) है । कोई व्यक्ती सदोष हानी (गलत तरिके से हानी) उठाता है, यह तब तक कहा जाता है जबकी उसे किसी संपत्ति से सदोष अलग रखा जाता है और तब भी जबकि उसे किसी संपत्ति से सदोष वंचित किया जाता है;
३९) उन शब्दों और पदों के, जो इसमे प्रयुक्त है और परिभाषित नहीं है, किन्तु भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक २०२३ और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम २००० (२००० का २१) में परिभाषित है वही अर्थ होंगे जो क्रमश: उस अधिनियम में है ।