SCST Act 1989 धारा २ : परिभाषाएं :

अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम १९८९
धारा २ :
परिभाषाएं :
१) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(a) क) अत्याचार से धारा ३ के अधीन दंडनीय अपराध अभिप्रेत है;
(b) ख) संहिता से दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) अभिप्रेत है;
(bb) १.(खख)) आश्रित से पीडित का ऐसा पति या पत्नी, बालक, माता-पिता, भाई और बहिन अभिप्रेत है जो ऐसे पीडित पर अपनी सहायता और भरण-पोषण के लिए पूर्णत: या मुख्यत: आश्रित है;
(bc) खग) आर्थिक बहिष्कार से निम्नलिखित अभिप्रेत है, –
एक) अन्य व्यक्ति से भाडे पर कार्य से संबंधित संव्यवहार करने या कारबार करने से इंकार करना; या
दो) अवसरों का प्रत्याख्यान करना जिनमें सेवाओं तक पहुंच या प्रतिफल के लिए सेवा प्रदान करने हेतु संविदाजन्य अवसर सम्मिलिति है; या
तीन) ऐसे निबंधनों पर कोई बात करने से इंकार करना जिन पर कोई बात, कारबार के सामान्य अनुक्रम में सामान्यतया की जाएगी; या
चार) ऐसे वृत्तिक या कारबार संबंधो से प्रतिविरत रहना, जो किसी अन्य व्यक्ति से रखें जाएं;
(bd) खघ) अनन्य विशेष न्यायालय से इस अधिनियम के अधीन अपराधों का अनन्य रुप से विचारण करने के लिए धारा १४ की उपधारा (१) के अधीन स्थापित अनन्य विशेष न्यायालय अभिप्रेत है;
(be) खड) वन अधिकार का वह अर्थ होगा, जो अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, २००६ की धारा ३ की उपधारा (१) में है;
(bf) खच) हाथ से मैला उठाने वाले कर्मी का वह अर्थ होगा, जो हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, २०१३ की धारा २ की उपधारा (१) के खंड (छ) में उसका है;
(bg) खछ) लोक सेवक से भारतीय दंड संहिता, १८६० की धारा २१ के अधीन यथापरिभाषित लोक सेवक और साथ ही तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन लोक सेवक समझा गया कोई अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है और जिनमें, यथास्थिति, केंन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के अधीन उसकी पदीय हैसियत में कार्यरत कोई व्यक्ति सम्मिलित है;)
(c) ग) अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के वही अर्थ है जो संविधान के अनुच्छेद ३६६ के खंड (२४) और खंड (२५) में है;
(d) घ) विशेष न्यायालय से धारा १४ में विशेष न्यायालय के रुप में विनिर्दिष्ट कोई सेशन न्यायालय अभ्रिपेत है;
(e) ड) विशेष लोक अभियोजक से विशेष लोक अभियोजक के रुप में विनिर्दिष्ट लोक अभियोजक या धारा १५ में निर्दिष्ट अधिवक्ता अभिप्रेत है;
(ea)१.(डक)अनुसूची से इस अधिनियम से उपाबद्ध अनुसूची अभिप्रेत है;
(eb) डख) सामाजिक बहिष्कार से कोई रुढिगत सेवा अन्य व्यक्ति को देने के लिए या उससे प्राप्त करने के लिए या ऐसे सामाजिक संबंधो से प्रतिविरत रहने के लिए, जो अन्य व्यक्ति से बनाए रखे जाएं या अन्य व्यक्तियों से उसको अलग करने के लिए व्यक्ति को अनुज्ञात करने से इंकार करना अभिप्रेत है;
(ec) डग) पीडित से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो धारा २ की उपधारा (१) के खंड (ग) के अधीन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की परिभाषा के भीतर आता है तथा जो इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के होने के परिणामस्वरुप शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक या घनीय हानि या उसकी संपत्ति को हानि वहन या अनुभव करता है ओैर जिसके अंतर्गत उसके नातेदार विधिक संरक्षक और विधिक वारिस भी है;
(ed) डघ) साक्षी से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के अधीन अपराध से अंतर्विलित किसी अपराध के अन्वेषण, जांचर या विचारण के प्रयोजन के लिए तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित है या कोई जानकारी रखता है या आवश्यक ज्ञान रखता है और जो ऐसे मामले के अन्वेषण, जांच या विचारण के दौरान जानकारी देने या कथन करने या कोई दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए अपेक्षित है या अपेक्षित हो सकेगा और जिसमें ऐसे अपराध का पीडित सम्मिलित है;)
(f) २.(च) उन शब्दों और पदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त है किंतु परिभाषित नहीं है और, यथास्थिति, भारतीय दंड संहिता, १८६० भारतीय साक्ष्य अधिनियम, १८७२ या दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ में परिभाषित है, वही अर्थ होना समझा जाएगा जो क्रमश: उन अधिनियमितियों में है ।)
२) इस अधिनियम में किसी अधिनियमिति या उसके किसी उपबंध के प्रति किसी निर्देश का अर्थ किसी ऐसे क्षेत्र के संबंध में जिसमें ऐसी अधिनियमिति या ऐसा उपबंध प्रवृत्त नहीं है, यह लगाया जाएगा कि वह उस क्षेत्र में प्रवृत्त तत्स्थानी विधि, यदि कोई हो, के प्रति निर्देश है ।
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१.२०१६ के अधिनियम संख्या १ की धारा ३ द्वारा अन्त:स्थापित । (२६-१-२०१६ से प्रभावी)
२.२०१६ के अधिनियम संख्या १ की धारा ३ द्वारा खंड (च) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।(२६-१-२०१६ से प्रभावी) ।

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