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Phra 1993 धारा १३ : जांच से संबंधित शक्तियां :

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम १९९३
धारा १३ :
जांच से संबंधित शक्तियां :
(१) आयोग को, इस अधिनियम के अधीन शिकायतों के बारे में जांच करते समय और विशिष्ट तथा निम्नलिखित विषयों के संबंध में वे सभी शक्तियां होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८ ( १९०८ का ५) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय को हैं, अर्थात:-
(a)(क) साक्षियों को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उनकी परीक्षा करना;
(b)(ख) किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना;
(c)(ग) शपथ पत्र पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(d)(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से कोई लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपि अपेक्षित करना;
(e)(ङ) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;
(f)(च) कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए।
(२) आयोग को किसी व्यक्ति से, ऐसे किसी विशेषाधिकार के अधीन रहते हुए, जिसका उस व्यक्ति द्वारा तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन दावा किया जाए, ऐसी बातों या विषयों पर इत्तिला देने की अपेक्षा करने की शक्ति होगी, जो आयोग की राय में जांच की विषयवस्तु के लिए उपयोगी हों, या उससे सुसंगत हों और जिस व्यक्ति से, ऐसी अपेक्षा की जाए, वह भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५) की धारा १७६ और धारा १७७ के अर्थ में ऐसी इत्तिला देने के लिए वैध रूप से आबद्ध समझा जाएगा।
(३) आयोग की आयोग द्वारा इस निमित्त विशेषतया प्राधिकृत कोई ऐसा अन्य अधिकारी, जो राजपत्रित अधिकारी की पंक्ति से नीचे का न हो, दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) की धारा १०० के उपबंधों के, जहां तक वे लागू हों, अधीन रहते हुए, किसी ऐसे भवन या स्थान में, जिसकी बाबत आयोग के पास यह विश्वास करने का कारण है कि जांच की विषय वस्तु से संबंधित कोई दस्तावेज वहां पाया जा सकता है, प्रवेश कर सकेगा और किसी ऐसे दस्तावेज को अभिगृहीत कर सकेगा अथवा उससे उद्धरण या उसकी प्रतिलिपियां ले सकेगा।
(४) आयोग को सिविल न्यायालय समझा जाएगा और जब कोई ऐसा अपराध, जो भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५) की धारा १७५, धारा १७८, धारा १७९, धारा १८० या धारा २२८ में वर्णित है, आयोग की दृष्टिगोचरता में या उपस्थिति में किया जाता है, तब आयोग, अपराध गठित करने वाले तथ्यों तथा अभियुक्त के कथन को अभिलिखित करने के पश्चात, जैसा कि दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) में उपबंधित है, उस मामले को ऐसे मजिस्टड्ढेट को भेज सकेगा जिसे उसका विचारण करने की अधिकारिता है और वह मजिस्टड्ढेट जिसे कोई ऐसा मामला भेजा जाता है, अभियुक्त के विरुद्ध शिकायत सुनने के लिए इस प्रकार अग्रसर होगा मानो वह मामला दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ की धारा ३४६ के अधीन उसको भेजा गया हो।
(५) आयोग के समक्ष प्रत्येक कार्यवाही को भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५) की धारा १९३ और धारा २२८ के अर्थ में तथा धारा १९६ के प्रयोजनों के लिए न्यायिक कार्यवाही समझा जाएगा और आयोग को दंड प्रकिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) की धारा १९५ और अध्याय २६ के सभी प्रयोजनों के लिए सिविल न्यायालय समझा जाएगा।
१.(६) जहां आयोग ऐसा करना आवश्यक और समीचीन समझता है, वहां वह आदेश द्वारा, उसके समक्ष फाइल की गई या लम्बित किसी शिकायत को उस राज्य के राज्य आयोग को, जिससे इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार निपटारे के लिए शिकायत उद्भूत होती है, अन्तरित कर सकेगा:
परन्तु ऐसी कोई शिकायत तब तक अन्तरित नहीं की जाएगी जब तक कि वह शिकायत ऐसी न हो जिसके संबंध में राज्य आयोग को उसे ग्रहण करने की अधिकारिता न हो।
(७) उपधारा (६) के अधीन अन्तरित की गई प्रत्येक शिकायत पर राज्य आयोग द्वारा ऐसे कार्रवाई की जाएगी और उसका निपटारा किया जाएगा मानो वह शिकायत आरम्भ में उसके समक्ष फाइल की गई हो।)
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१. २००६ के अधिनियम सं० ४३ की धारा १० द्वारा अंत:स्थापित ।

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