भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम १९८८
धारा ९ :
१.(किसी वाणिज्यिक संगठन द्वारा किसी लोक सेवक को रिश्वत देने से संबंधित अपराध :
१) जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी वाणिज्यिक संगठन द्वारा किया गया है, वहां ऐसा संगठन जुर्माने से दंडनीय होगा, यदि ऐसे वाणिज्यिक संगठन से सहबद्ध कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को निम्नलिखित आशय से असम्यक लाभ देता है या देने का वचन देता है,
क) ऐसे वाणिज्यिक संगठन के लिए कारबार अभिप्राप्त करने या प्रतिधारित करने; या
ख) ऐसे वाणिज्यिक संगठन के लिए कारबार के संचालन में कोई लाभ अभिप्राप्त करने या प्रतिधारित करने :
परंतु वाणिज्यिक संगठन के लिए यह साबित करने का एक बजाव होगा कि उससे सहयोजित व्यक्तियों को ऐसा आचरण करने से निवारित करने के लिए उसने ऐसे मार्गदर्शक सिद्धान्तों के अनुसूरण में, जो विहित किए जाएं पर्याप्त प्रक्रियाएं अपना रखी थीं ।
२) इस धारा के प्रयोजनों के लिए, किसी व्यक्ति के बारे में यह तब कहा जाएगा कि उसने किसी लोक सेवक को असम्यक् लाभ दिया है या देने का वचन दिया है, यदि उसने अभिकथित रुप से धारा ८ के अधीन अपराध किया है, चाहे ऐसे व्यक्ति को ऐसे किसी अपराध के लिए अभियोजित किया गया हो अथवा नहीं ।
३) धारा ८ और इस धारा के प्रयोजनों के लिए –
क) वाणिज्यिक संगठन से निम्नलिखित अभिप्रेत है –
एक) ऐसा कोई निकाय, जो भारत में निगमित किया जाता है और भारत में या भारत के बाहर कोई कारबार करता है ;
दो) ऐसा कोई अन्य निकाय, जो भारत के बाहर निगमित किया जाता है और जो भारत के किसी भी भाग में कोई कारबार या कारबार का कोई भाग करता है ;
तीन) ऐसी भागीदारी फर्म या कोई व्यक्ति-संगम, जो भारत में बनाया गया है और जो भारत में या भारत के बाहर कोई कारबार करता है; या
चार) ऐसी कोई अन्य भागीदारी फर्म या व्यक्ति-संगम, जो भारत के बाहर बनाया जाता है और जो भारत के किसी भाग में कोई कारबार या कारबार का कोई भाग करता है ;
ख) कारबार के अंतर्गत कोई व्यापार या वृत्ति या सेवा, उपलब्ध कराना है;
ग) किसी व्यक्ति को वाणिज्यिक संगठन से उस दशा में सहयोजित कहा जाएगा, यदि ऐसा व्यक्ति, उसके द्वारा ऐसा कोई असम्यक् लाभ, जो उपधारा (१) के अधीन किसी अपराध का गठन करता है, देने का वचन दिए जाने या ऐसा कोई लाभ दिए जाने पर ध्यान न देते हुए वाणिज्यिक संगठन के लिए या उसकी ओर से कोई सेवाएं प्रदान करता है ।
स्पष्टीकरण १ :
वह हैसियत जिसमें व्यक्ति वाणिज्यिक संगठन के लिए या उसकी ओर से सेवाएं करता है, इस बात के होते हुए भी कि ऐसा व्यक्ति ऐसे संगठन का कर्मचारी या अभिकर्ता या समनुषंगी है, विचार का विषय नहीं होगी ।
स्पष्टीकरण २ :
इस बात का अवधारण कि वह व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है या नहीं जो वाणिज्यिक संगठन के लिए या उसकी ओर से सेवाएं करता है, सभी सुसंगत परिस्थितियों के प्रति निर्देश करके किया जाएगा न कि केवल उस व्यक्ति और वाणिज्यिक संगठन के बीच के संबंध की प्रकृति के प्रति निर्देश करके ।
स्पष्टीकरण ३ :
यदि वह व्यक्ति वाणिज्यिक संगठन का कोई कर्मचारी है तो जब तक प्रतिकूल साबित न किया जाए यह उपधारणा की जाएगी कि वह व्यक्ति ऐसा व्यक्ति है जिसने वाणिज्यिक संगठन के लिए या उसकी ओर से सेवाएं प्रदान की है ।
४) दंड प्रक्रिया संहिता १९७३ में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, धारा ७क, धारा ८ या इस धारा के अधीन का अपराध संज्ञेय होगा ।
५) केन्द्रीय सरकार, संबद्ध पणधारियों जिसके अंतर्गत विभाग भी है, के परामर्श से और वाणिज्यिक संगठनों से सहयोजित व्यक्तियों द्वारा किसी व्यक्ति को, जो लोक सेवक है, रिश्वत देने से निवारित करने के विचार से ऐसे मार्गदर्शक सिद्धांतों को विहित करेगी, जो आवश्यक समझी जाएं और जो ऐसे संगठनों द्वारा अनुपालन हेतु स्थापित किए जा सकते है ।)
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१. सन २०१८ का अधिनियम क्रमांक १६ की धारा ४ द्वारा धारा ७, ८, ९ और १० के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
इस से पूर्व धारा निम्नलिखित नुसार थी ।
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धारा ९ :
लोक सेवक पर वैयक्तिक असर डालने के लिए परितोषण का लेना :
जो कोई अपने लिए या किसी अन्य व्यक्ति के लिए किसी प्रकार का भी कोर्स परितोषण किसी लोक सेवक को, चाहे वह नामित हो या नहीं, अपने वैयक्तिक असर के प्रयोग द्वारा इस बात के लिए उत्प्रेरित करने के लिए हेतु या इनाम के रूप में किसी व्यक्ति से प्रतिगृहीत या अभिप्राप्त करेगा या प्रतिगृहीत करने को सहमत होगा या अभिप्राप्त करने का प्रयत्न करेगा कि वह लोक सेवक कोई पदीय कार्य करे या करने से प्रविरत रहे अथवा किसी व्यक्ति को ऐसे किसी सेवक के पदीय कृत्यों के प्रयोग में कोई अनुग्रह या अननुग्रह दिखाए अथवा केंद्रीय सरकार या किसी राज्य की सरकार या संसद् या किसी राज्य के विधान- मंडल में या धारा २ के खंड (ग) में निर्दिष्ट किसी स्थानीय प्राधिकारी, निगम या सरकारी कंपनी में या किसी लोक सेवक के यहां चाहे वह नामित हो या नहीं, किसी व्यक्ति का कोर्स उपकार या अपकार करे या करने का प्रयत्न करे, वह कारावास से, जिसकी अवधि १(तीन वर्ष ) से कम नहंीं होगी किंतु १(सात वर्ष) तक की हो सकेगी, और जुर्माने से भी, दंडित किया जाएगा ।