पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण अधिनियम १९६०
धारा २९ :
सिद्धदोष व्यक्ति को, पशु के स्वामित्व से वंचित करने की न्यायालय की शक्ति :
(१) यदि यह पाया जाता है कि किसी पशु का स्वामी इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का दोषी है तो न्यायालय, उस अपराध के लिए उसे सिद्धदोष ठहराए जाने पर, यदि न्यायालय ठीक समझे तो, किसी अन्य दंड के साथ-साथ यह आदेश भी कर सकेगा कि जिस पशु की बाबत अपराध किया गया था वह सरकार के प्रति समपहृत कर लिया जाए और इसके अतिरिक्त, पशु के व्ययन के सम्बन्ध में ऐसा आदेश भी कर सकेगा जिसे वह परिस्थितियों में ठीक समझे।
(२) उपधारा (१) के अधीन कोई भी आदेश तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि इस अधिनियम के अधीन किसी पूर्वतन दोषसिद्धि के बारे में साक्ष्य द्वारा अथवा स्वामी के चरित्र के बारे में या अन्यथा पशु के प्रति बर्ताव के बारे में यह दर्शित नहीं कर दिया जाता कि यदि उस पशु को स्वामी के पास छोड दिया जाएगा तो उसके प्रति और भी अधिक क्रूरता होना संभाव्य है।
(३) उपधारा (१) के उपबंध पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, न्यायालय यह आदेश भी दे सकेगा कि इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया गया व्यक्ति किसी भी किस्म के पशु को, या आदेश में विनिर्दिष्ट किसी प्रकार या नस्ल के पशु को, जैसा भी न्यायालय ठीक समझे, अभिरक्षा में रखने से स्थायी रूप से अथवा ऐसी अवधि के दौरान, जो आदेश द्वारा नियत की जाए, प्रतिषिद्ध होगा।
(४) उपधारा (३) के अधीन कोई भी आदेश तब तक नहीं किया जाएगा जब तक –
(a)(क) किसी पूर्वतन दोषसिद्धि के बारे में साक्ष्य द्वारा अथवा उक्त व्यक्ति के चरित्र के बारे में, या अन्यथा उस पशु के प्रति बर्ताव के बारे में, जिसके सम्बन्ध में उसे दोषसिद्ध किया गया है, यह दर्शित न किया गया हो कि उक्त व्यक्ति की अभिरक्षा में के पशु के प्रति क्रूरता की जानी सम्भाव्य है;
(b)(ख) उस परिवार में, जिस पर दोषसिद्धि हुई थी, यह उल्लेख न किया गया हो कि परिवादी का आशय यह अनुरोध करना है कि अपराधी के दोषसिद्ध किए जाने पर उसे यथापूर्वोक्त आदेश दिए जाएं; और
(c)(ग) वह अपराध, जिसके लिए दोषसिद्धि हुई थी, ऐसे क्षेत्र में न किया गया हो जिसमें किसी ऐसे पशु को रखने के लिए, जिसकी बात दोषसिद्धि हुई थी, तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन अनुज्ञप्ति लेना आवश्यक है।
(५) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, किसी भी व्यक्ति को, जिसकी बाबत उपधारा (३) के अधीन कोई आदेश किया गया है, उस आदेश के उपबंधों के प्रतिकूल किसी पशु को अपनी अभिरक्षा में रखने का अधिकार नहीं होगा और यदि वह आदेश के उपबंधों का उल्लंघन करेगा तो वह जुर्माने से, जो एक सौ रुपए तक का हो सकेगा, या कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या दोनों से, दंडनीय होगा।
(६) कोई भी न्यायालय, जिसने उपधारा (३) के अधीन कोई आदेश दिया है, स्वप्रेरणा से या इस निमित्त उसे किए गए आवेदन पर, किसी भी समय उस आदेश का विखंडन या उपान्तरण कर सकेगा।