स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम १९८५
धारा ३७ :
१.(अपराधों का संज्ञेय और अजामनतीय होना :
१) दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) में किसी बात के होते हुए भी, –
क) इस अधिनियम के अधीन दंडनीय प्रत्येक अपराध संज्ञेय होगा ;
ख) २.(धारा १९ या धारा २४ या धारा २७-क के अधीन अपराधों के लिए और वाणिज्यिक मात्रा से संबंधित अपराधों के लिएभी दंडनीय किसी अपराध) के अभियुक्त किसी भी व्यक्ति को जमानत पर या मुचलके पर तभी निर्मुक्त किया जाएगा जब –
एक) लोक अभियोजक को ऐसी नियुक्ति के लिए किए गए आवेदन करने का विरोध करने का अवसर दे दिया गया है, और
दो) जहां लोक अभियोजक आवेदन का विरोध करता है वहां न्यायालय का यह समाधान हो गया है कि यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधारा है कि वह ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर होने के दौरान उसके द्वारा कोई अपराध किए जाने की संभावना नहीं है ।
२) उपधारा (१) के खंड (ख) में विनिर्दिष्ट जमानत मंजूर करने के संबंध में ये परिसीमाएं दण्ड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन जमानत मंजूर करने की बाबत परिसीमाओं के अतिरिक्त है ।)
———-
१. १९८९ के अधिनियम सं. २ की धारा १२ द्वारा प्रतिस्थापित ।
२. २००१ के अधिनियम सं. ९ की धारा १७ द्वारा प्रतिस्थापित ।
