स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम १९८५
धारा १० :
अनुज्ञा देने, नियंत्रण और विनियमन करने की राज्य सरकार की शक्ति :
१) धारा ८ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए राज्य सरकार, नियमों द्वारा –
क) निम्नलिखित के लिए अनुमा दे सकेगी और उनका विनियमन कर सकेगी –
एक) पोस्त तृण का १.(ऐसे पौधों से, जिनसे चीरा लगाकर रस नहीं निकाला गया है, उत्पादित पोस्त तृण के सिवाय,) कब्जा, परिवहन, अन्तरराज्यिक आयात, अन्तरराज्यिक निर्यात, भाण्डागारण, विक्रय, क्रय, उपभोग और उपयोग;
दोन) अफीम का कब्जा, परिवहन, अन्तरराज्यिक आयात, अन्तरराज्यिक निर्यात, विक्रय, क्रय, उपभोग और उपयोग;
तीन) किसी कैनेबिस पौधे की खेती, कैनेबिस (जिसके अन्तर्गत चरस नहीं है) का उत्पादन, विनिर्माण, कब्जा, परिवहन, अन्तरराज्यिक आयात, अन्तरराज्यिक निर्यात, विक्रय, क्रय, उपभोग या उपयोग ;
चार) ऐसी सामग्री से, जिसका कब्जा रखने के लिए बनाने वाला विधिसम्मत रुप से हकदार है ओषधीय अफीम का या किसी विनिर्मित ओषधि को अन्तर्विष्ट करने वाली किसी निर्मिति का विनिर्माण;
पांच) १.(विनिर्मित ओषधियों (विनिर्मित अफीम और आवश्यक स्वापक ओषधियों से भिन्न)) का तथा कोका की पत्ती का और किसी विनिर्मित ओषधि को अन्तर्विष्ठ करने वाली किसी निर्मिति का कब्जा, परिवहन, क्रय, विक्रय, अन्तरराज्यिक आयात, अन्तरराज्यिक निर्यात, उपयोग या उपभोग;
छह) चिकित्सीय सलाह के आधार पर राज्य सरकार के पास रजिस्ट्रीकृत किसी व्यसनी द्वारा अपने वैयक्तिक उपभोग के लिए विधिसम्मत रुप से कब्जे में रखी गई अफीम से निर्मित अफीम का विनिर्माण और कब्जा :
परन्तु उपखण्ड (चार) और (पांच) के अधीन बनाए गए नियमों में, जहां तक अभिव्यक्त रुप में उपबंधित किया जाए उसके सिवाय, धारा ८ की बात ऐसी विनिर्मित ओषधियों के, जो सरकार की संपत्ति है और उसके कब्जे में है, अन्तरराज्यिक आयात, अन्तरराज्यिक निर्यात, परिवहन, कब्जा, क्रय, विक्रय, उपयोग या उपभोग को लागू नहीं होगी :
परन्तु यह और कि ऐसी ओषधियों का, जो पूर्ववर्ती परन्तुक में निर्दिष्ट है, ऐसे किसी व्यक्ति को विक्रय या अन्यथा परिदान नहीं किया जाएगा जो पूर्वोक्त उपखंडों के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अधीन उनके कब्जे के लिए हकदार नहीं है;
ख) खण्ड (क) में विनिर्दिष्ट किन्हीं विषयों पर राज्य सरकार का प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए अपेक्षित किसी अन्य विषय का उपबन्ध कर सकेगी ।
२) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम –
क) किसी स्थान को भांडागार घोषित करने के लिए, जिसमें स्वामी का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे सभी पोस्त तृण को, जिसका विधिसम्मत रुप से अन्तरराज्यिक आयात किया गया है और जिसका अन्तरराज्य निर्यात या भारत से निर्यात किए जाने का आशय है, निक्षेप करे; भांडागारित ऐसे पोस्त तृण को सुरक्षित अभिरक्षा का और विक्रय या अन्तरराज्यिक निर्यात या भारत से निर्यात के लिए ऐसे पोस्त तृण के हटाने का विनियमन करने के लिए, ऐसे भांडागारण के लिए फीसें उद्गृहीत करने के लिए और वह रीति जिससे और वह अवधि, जिसके पश्चात् भांडागारित पोस्त तृण का फीसों के संदाय के व्यतिक्रम में व्ययन किया जाएगा, विहित करने के लिए राज्य सरकार को सशक्त कर सकेंगे;
ख) यह उपबन्ध कर सकेंगे कि वह सीमा जिसके भीतर किसी कैनेबिस के पौधे की खेती के लिए अनुज्ञप्तियां दी जा सकेंगी राज्य सरकार द्वारा या उसके आदेश के अधीन, समय-समय पर, नियत की जाएंगी ;
ग) यह उपबन्ध कर सकेंगे कि राज्य सरकार के विहित प्रधिकरण द्वारा अनुज्ञप्त खेतिहर ही किसी कैनेबिस के पौधे की खेती में लगने के लिए प्राधिकृत होंगे;
घ) यह अपेक्षा कर सकेंगे कि सभी कैनेबिस, और ऐसी भूमि की उपज जिस पर कैनेबिस के पौधे की खेती की गई है, खेतिहरों द्वारा राज्य सरकार के ऐसे अधिकारियों को, परिदत्त की जाएंगी जो इस निमित्त प्राधिकृत किए गए है;
ङ) परिदत्त कैनेबिस से लिए खेतिहारों को संदत्त की जाने वाली कीमत समय-समय पर नियत करने के लिए राज्य सरकार को सशक्त कर सकेंगे;
च) उपधारा (१) के खण्ड (क) के उपखण्ड (एक) से उपखण्ड (छह) में विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए अनुज्ञप्तियों या अनुज्ञापत्रों के प्ररुप और शर्तें तथा ऐसे प्राधिकरण जिसके द्वारा ऐसी अनुज्ञपप्तियां या अनुज्ञापत्र दिए जा सकेंगे और ऐसी फीसें जो उनके लिए प्रभारित की जा सकेगी, विहित कर सकेंगे ।
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१. २०१४ के अधिनियम सं.१६ की धारा ५ द्वारा अंत:स्थापित ।
