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Mv act 1988 धारा ११६ : यातायात चिहन लगावाने की शक्ति :

मोटर यान अधिनियम १९८८
धारा ११६ :
यातायात चिहन लगावाने की शक्ति :
१) (a)क) राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई प्राधिकारी धारा ११२ की उपधारा (२) के अधीन नियत किन्हीं गति सीमाओं को या धारा ११५ के अधीन अधिरोपित किन्हीं प्रतिषेधों या निर्बन्धनों को या साधारणतया मोटर यान यातायात के विनियमन के प्रयोजन के लिए यातायात चिहन को सार्वजनिक जानकारी के प्रयोजन के लिए किसी सार्वजनिक स्थान में रखवा या लगवा सकेगा अथवा रखने या लगाने देगा।
(b)ख) राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई प्राधिकारी, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा या अनुसूची के भाग क में निर्दिष्ट समुचित यातायात चिहन को उपयुक्त स्थानों में लगवा कर, केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाए गए चालन विनियमों के प्रयोजनों के लिए कुछ सडकों के रूप मे अभिहित कर सकेगा ।
(1A)१.(१क) उपधारा (१) में अतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम १९८८ के अधीन गठित भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण या केंद्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य अभिकरण, पहली अनुसूची में उपबंधित किए गए अनुसार मोटर यान यातायात विनियमन के प्रयोजन के लिए राष्ट्रीय राजमार्गो पर यातायात चिन्हों को लगवा या स्थापित या हटवा सकेगा या ऐसा करने की अनुमति दे सकेगा और ऐसे किसी चिन्ह या विज्ञापन को हटाए जाने का आदेश दे सकेगी, जो उसकी राय में इस प्रकार लगाया गया है, जो किसी यातायात चिन्ह को दिखाई देने से रोकता है या किसी यातायात चिन्ह के समान दिखाई देता है, जिससे कि चालक के भ्रमित होने या उसकी सावधानी हटने या ध्यान भंग होने की संभावना है :
परंतु इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण या केंद्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत कोई अन्य अभिकरण राज्य सरकार के प्राधिकरणों से सहायता मांग सकेगा और उक्त राज्य सरकार ऐसी सहायत उपलब्ध कराएगी ।)
२)ऐसे किसी प्रयोजन के लिए, जिसके लिए अनुसूची में उपबन्ध किया गया है, उपधारा (१) के अधीन रखे या लगाए गए यातायात चिहनों का आकार, रंग और प्रकार वही होगा और उनके वही अर्थ होंगे, जो अनुसूची में दिए गए हैं, किन्तु राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त कोई प्राधिकारी उक्त अुसूची में दिए गए किसी चिहन में उस पर शब्दों, अक्षरों या अंकों का ऐसी लिपि में प्रतिलेखन जोडना प्राधिकृत कर सकेगा जो वह राज्य सरकार ठीक समझे, परन्तु ऐसे प्रतिलेखनों का आकार और रंग वैसा ही होगा जैसा अनुसूची में दिए गए शब्दों, अक्षरों या अंकों का है ।
३) उपधारा (१) २.(या उपधारा १क) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् कोई भी यातायात चिहन किसी सडक पर या उसके निकट न तो रखा जाएगा और न लागाय जाएगा; किन्तु उन सभी यातायात चिहनों की बाबत जो इस अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व किसी सक्षम प्राधिकारी द्वारा रखवाए या लगवाए गए थे इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए यह समझा जाएगा कि वे उपधारा (१) के उपबंधों के अधीन रखे या लगाए गए यातयात चिहन हैं ।
४) राज्य सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, पुलिस अधीक्षक से अनिम्न पंक्ति के किसी पुलिस अधिकारी को इस बात के लिए प्राधिकृत कर सकेगी कि वह किसी ऐसे चिहन या विज्ञापन को, जो उसकी राय में इस प्रकार रखा गया है कि उसके कारण कोई यातायात चिहन दिखाई नहीं पडता है अथवा किसी ऐसे चिहन या विज्ञापन को, जो उसकी राय में किसी यातायात चिहन के इतना समरूप है कि भ्रम पैदा हो सकता है, या जो उसकी राय में ड्राइवर की एकाग्रता या ध्यान को बटा सकता है, हटा दे या हटवा दे ।
५)कोई भी व्यक्ति इस धारा के अधीन रखे गए या लगाए गए किन्हीं यातायात चिहनों को न तो जानबूझकर हटाएगा, न परिवर्तित करेगा, न विरूपित करेगा और न किसी भी प्रकार से बिगाडेगा।
६)यदि कोई व्यक्ति किसी यातायात चिहन को घटनावश ऐसा नुकसान पहुंचाता है कि वह उस प्रयोजन के लिए बेकार हो जाता है जिसके लिए उसे इस धारा के अधीन रखा या लगाया गया है तो वह उन परिस्थितियों की, जिनमें यह घटना हुई है, रिपोर्ट यथाशीघ्र और किसी भी दशा में घटना के चौबीस घंटे के भीतर पुलिस अधिकारी को देगा या पुलिस थाने में करेगा ।
७)३.(पहली अनुसूची) में दिए गए चिहनों को मोटर यातायात से संबंधित ऐसे अन्तरराष्ट्रीय कन्र्वेशन के अनुरूप कर देने के प्रयोजन के लिए, जिसकी केन्द्रीय सरकार तत्समय एक पक्षकार है, केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी ऐसे चिहन में कोई परिवर्धन या परिवर्तन कर सकेगी और ऐसी अधिसूचना के निकाले जाने पर ३.(पहली अनुसूची) को तद्नुसार संशोधित समझा जाएगा ।
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१. २०१९ का अधिनियम सं. ३२ की धारा ४२ द्वारा उपधारा (१) पश्चात अंत:स्थापित ।
२. २०१९ का अधिनियम सं. ३२ की धारा ४२ द्वारा उपधारा (१) शब्द के पश्चात अंत:स्थापित ।
३. १९९४ के अधिनियम सं. ५४ की धारा ३६ द्वारा प्रतिस्थापित ।

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