Mv act 1988 धारा २१३ : मोटर यान अधिकारियों की नियुक्ति :

मोटर यान अधिनियम १९८८
धारा २१३ :
मोटर यान अधिकारियों की नियुक्ति :
१) राज्य सरकार, इस अधिनियम, के उपबंधों को प्रभावी करने के प्रयोजन के लिए एक मोटर यान विभाग स्थापित कर सकेगी तथा ऐसे व्यक्तियों को उसके अधिकारी नियुक्त कर सकेगी जिन्हें वह ठीक समझे ।
२)ऐसा प्रत्येक अधिकारी भारतीय दंड संहिता (१८६० का ४५ ) के अर्थ में लोक सेवक समझा जाएगा ।
३)राज्य सरकार, मोटर यान विभाग के अधिकारियों द्वारा उनके कृत्यों का निर्वहन विनियमित करने के लिए तथा विशिष्टितया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उन वर्दियों को जो उन्हें पहननी हैं,उन प्राधिकारियों को, जिनके अधीनस्थ वे रहेंगे, उन कर्तव्यों को, जिनका उन्हें पालन करना है, उन शक्तियों को (जिनके अंतर्गत इस अधिनियम के अधीन पुलिस अधिकारियों द्वारा प्रयोगतव्य शक्तियां भी हैं ) जिनका उन्हें प्रयोग करना है तथा उन शर्तों को, जो ऐसी शक्तियों के प्रयोग पर लागू होनी हैं, विहित करने के लिए नियम बना सकेगी ।
४)केन्द्रीय सरकार, अधिनियम के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा वे न्यूनतम अर्हताएं विहित कर सकेगी जो इस रूप में नियुक्ति किए जाने के लिए उक्त अधिकारियों या उनमें से किसी वर्ग के अधिकारियों के पास होना चाहिए ।
५)उन शक्तियों के अतिरिक्त जो मोटर यान विभाग के किसी अधिकारी को उपधारा (३) के अधीन प्रदान की जाए, ऐसे अधिकारी, को जिसे राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त किया जाए, यह शक्ति होगी कि वह , –
(a)क) यह अभिनिश्चित करने की दृष्टि से कि इस अधिनियम तथा इसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबंधों का अनुपालन किया जा रहा है या नहीं, ऐसी परीक्षा और जांच करे जो वह ठीक समझता है ;
(b)ख) ऐसी सहायता सहित यदि कोई हो, जिसे वह ठीक समझता है, ऐसे किसी परिसर में प्रवेश करे, उसका निरीक्षण करे और उसकी सलाह ले जो ऐसे व्यक्ति के अधिभोगाधीन जिसकी बाबत उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसने इस अधिनियम के अधीन अपराध किया है अथवा जिसमें ऐसा कोई मोटर यान जिसकी बाबत ऐसा अपराध किया गया है, रखा हुआ है :
परंतु –
एक) वारंट के बिना ऐसी कोई तलाशी राजपत्रित अधिकारी की पंक्ति के अधिकारी द्वारा ही की जाएगी ;
दो) जहां कोई अपराध केवल जुर्माने से दंडनीय है वहां तलाशी सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्याेदय के पूर्व नहीं की जाएगी ;
तीन) जहां तलाशी बिना वारंट के की जाती है, वहां संबंधित राजपत्रित अधिकारी वारंट अभिप्राप्त न करने के आधार को लेखबध्द करेगा और अपने ठीक ऊपर के वरिष्ठ अधिकारी का रिपोर्ट करेगा कि ऐसी तालाशी ली गई है ;
(c)ग) किसी व्यक्ति की परीक्षा करे और ऐसा कोई रजिस्टर या अन्य दस्तावेज, जो इस अधिनियम के अनुसरण में रखा जाता या रखी जाती हैं, पेश करने की अपेक्षा करे और मौके पर या अन्यथा, किसी व्यक्ति के कथन ले जो वह इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक समझे ;
(d)घ) ऐसे किन्हीं रजिस्टरों या दस्तावेजों को अभिगृहीत करे या उनके भागों की प्रतिलिपियां ले जिन्हें वह इस अधिनियम के अधीन उस अपराध की बाबत सुसंगत समझे जिसके किए जाने का विश्वास करने का उसके पास कारण है ;
(e)ड) इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध की बाबत अभियोजन प्रारंभ करे और किसी न्यायालय के समक्ष अपराधी की हाजिरी सुनिश्चित करने के लिए बंधपत्र ले ;
(f)च) ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करे जो वहित की जाएं :
परंतु इस उपधारा के अधीन किसी भी व्यक्ति को ऐसे किसी प्रश्न का उत्तर देने या ऐसा कोई कथन करने के लिए विवश नहीं किया जाएगा जिसकी प्रवृत्ति उसको ही अपराध मे फंसाने की हो ।
६)दंड प्रक्रिया संहिता, १९७३ (१९७४ का २) के उपबंध इस धारा के अधीन किसी तलाशी या अभिग्रहण के संबंध में यावत्शक्य ऐसे लागू होंगे जैसे उस संहिता की धारा ९४ के अधीन निकाले गए किसी वारंट के प्राधिकार से की गई किसी तलाशी या अभिग्रहण को लागू होते हैं ।

Leave a Reply