मोटर यान अधिनियम १९८८
धारा १५३ :
१.(बीमाकर्ता और बीमाकृत व्यक्तियों के बीच समझौता :
१) बीमाकर्ता द्वारा धारा १४७ की उपधारा (१) के खंड (ख) में निर्दिष्ट प्रकृति के किसी दायित्व के संबंध में पर-पक्षकार द्वारा किए जा सकने वाले दावे की बाबत किया दायित्व के संबंध में पर-पक्षकार द्वारा किए जा सकने वाले दावे की बाबत किया गया समझौता विधिमान्य नहीं होगा जब तक कि पर-पक्षकार समझौता का एक पक्षकार न हो ।
२) दावा अधिकरण यह सुनिश्चित करेगा कि समझौता सद्भाविक है और असम्यक प्रभाव के अधीन नहीं किया गया था तथा प्रतिकर धारा १६४ की उपधारा (१) में निर्दिष्ट संदाय अुसूची के अनुसार दिया गया है ।
३) जहां एक व्यक्ति, जो इस अध्याय के प्रयोजन के लिए जारी की गई पालिसी के अधीन बीमाकृत है दिवालिया हो जाता है या जहां ऐसा बीमाकृत व्यक्ति एक कंपनी है, कंपनी के संबंध में परिसमापन आदेश किया गया है या स्वैच्छया परिसमापन का संकल्प पारित किया गया है, बीमाकर्ता और बीमाकृत व्यक्ति के बीच कोई भी ठहराव पर-पक्षकार द्वारा दायित्व उपगत किए जाने के पश्चात् नहीं किया जाएगा और, यथास्थिति, दिवाला या परिसमापन, जैसा भी मामला हो, के प्रारंभ होने के पश्चात किया गया कोई अधित्यजन, समनुदेशन या अन्य व्ययन या उपरोक्त प्रारंभ के पश्चात् बीमाकृत व्यक्ति को किया गया संदाय इस अध्याय के अधीन पर-पक्षकार को अंतरित किए गए अधिकारों को विफल करने के लिए प्रभावी नहीं होगा, लेकिन वे अधिकार वैसे ही रहेंगे मानो ऐसा ठहराव, अधित्यजन, समनुदेशन या व्ययन नहींं किया गया है ।)
———-
१. २०१९ का अधिनियम सं. ३२ की धारा ५१ द्वारा अध्याय ११ प्रतिस्थापित ।