मोटर यान अधिनियम १९८८
धारा १५० :
१.(पर-पक्षकार जोखिमों की बाबत बीमाकृत व्यक्तियों के विरुद्ध निर्णयों और पचाटों को तुष्ट करने के बीमाकर्ता के कर्तव्य :
१) धारा १४७ की उपधारा (३) के अधीन ऐसे व्यक्ति जिसके द्वारा पालिसी प्रभावी की गई है के पक्ष में बीमा प्रमाणपत्र जारी करने के पश्चात ऐसे दायित्व (जो पालिसी के निबंधनों द्वारा समाविष्ट दायित्व के हाते हुए) जो धारा १४७ की उपधारा (१) के खंड (ख) के अधीन या धारा १६४ के उपबंधों के अधीन पालिसी द्वारा समाविष्ट किया जाना अपेक्षित है, कि बाबत निर्णय या पंचाट, पालिसी द्वारा बीमाकृत व्यक्ति के विरुद्ध अभिप्राप्त किया जाता है, तब इस बात के होते हुए भी बीमाकर्ता पालिसी को परिवर्जित या रद्द करने अथवा परिवर्तित या रद्द किए जा सकने का हकदार हो सकेगा, बीमाकर्ता इस धारा के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए पंचाट के अधीन फायदे के हकदार व्यक्ति को इसके अधीन देय बीमाकृत राशि से अनधिक राशि का तो दायित्व की बाबत, लागतों के संबंध में देय रकम के साथ और ऐसी राशि पर निर्णयों पर ब्याज से संबंधित किसी अधिनियमितियों के आधार पर देय ब्याज के साथ किसी राशि का इस प्रकार मानों वह व्यक्ति निर्णीतऋृणी था, संदाय करेगा ।
२) ऐसे निर्णय या पंचाट की बाबत उपधारा (१) के अधीन बीमाकर्ता द्वारा कोई राशि तब तक देय नहीं होगी, जब तक उन कार्यवाहियों, जिनमें निर्णय या पंचाट दिया गया है, में कार्यवाहियां प्रारंभ होने से पहले बीमाकर्ता न्यायालय या, यथास्थिति, दावा अभिकरण द्वारा ऐसे निर्णय या पंचाट के संबंध में कार्यवाहियां लाने और जब तक किसी अपील के लंबित रहने के दौरान उसके निष्पादन को आस्थगित किया जाता है, सूचित किया गया था; और बीमाकर्ता जिसको ऐसी कार्यवाहियां लाने की सूचना इस प्रकार दी गई है, उसका पक्षकार बनाए जाने
और निम्नलिखित आधारां पर कार्रवाई में प्रतिरक्षा का हकदार होगा अर्थात् :-
(a)क) यदि पालिसी की किसी विनिर्दिष्ट शर्त का उल्लंघन हुआ हो, जो निम्नलिखित शर्तो में से एक हो, अर्थात् :-
एक) कोई शर्त जो यान के उपयोग को निम्नलिखित के लिए, अपवर्जित करती है :-
(A)अ) भाडे पर लेने या पारिश्रमिक के लिए, जहां बीमा की संविदा की तारीख को यान भाडे पर या पारिश्रमिक के लिए इस्तेमाल करने की अनुज्ञा समाविष्ट नहीं थी; या
(B)आ) दौड प्रतियोगिता या गति परीक्षण आयोजित करने के लिए ; या
(C)इ) जहां यान एक परिवहन यान है वहां यान उस प्रयोजन के लिए उपयोग में लिया जाता है जो उस अनुज्ञा द्वारा, जिसके अधीन उसका उपयोग किया जाता है, अनुज्ञात नहीं किया गया है; या
(D)ई) साइड कार संलग्न नहीं की गई है जहां यान एक दो पहिया यान है; या
दो) नामित व्यक्ति या किसी व्यक्ति जो सम्यक रुप से अनुज्ञप्त नहीं है द्वारा या कोई व्यक्ति जो निर्हरता की अवधि के दौरान चालन अनुज्ञप्ति धारण करने या अभिप्राप्त करने के लिए निरर्हित कर दिया गया है या जो धारा १८५ में अधिकथित किए गए अनुसार अल्कोहर या मादक द्रव्यों के प्रभाव के अधीन चालन कर रहा है, द्वारा चालन को अपवर्जित करने वाली कोई शर्त;
तीन) युद्ध, गृह युद्ध, बल्वे या सिविल अशांति की परिस्थितियों द्वारा क्षति कारित होने या उनके कारण क्षति कारित होने के लिए दायित्व अपवर्जित करने वाली कोई शर्त;
(b)ख) पालिसी इस आधार पर शुन्य है कि वह तात्विक तथ्यों को प्रकट न करके प्राप्त की गई थी या ऐसे तथ्यों जो कुछ तात्विक विशिष्टियों में मिथ्या थे, के व्यपदेशन द्वारा प्राप्त की गई थी;
(c)ग) बीमा अधिनियम १९३८ की धारा ६४फख के अधीन यथा अपेक्षित प्रीमियम की अप्राप्ति ।
३) जहां कोई ऐसा निर्णय, जो उपधारा (१) में निर्दिष्ट है, व्यतिकारी देश के न्यायालय से प्राप्त किया जाता है और विदेशी निर्णय की दशा में, सिविल प्रक्रिया संहिता १९०८ की धारा १३ के उपबंधों के कारण उसमें किए गए न्यायनिर्णयन के आधार पर किसी मामले में निश्चायक है, बीमाकर्ता (जो बीमा अधिनियम १९३८ के अधीन रजिस्ट्रीकृत बीमाकर्ता है और चाहे ऐसा व्यक्ति व्यतिकारी देश की तत्स्थानी विधि के अधीन रजिस्ट्रीकृत हो या नहीं) डिक्री के अधीन फायदा प्राप्त करने के लिए हकदार व्यक्ति के प्रति ऐसी रीति से और उस विस्तार तक जो उपधारा (१) में विनिर्दिष्ट है जैसे कि निर्णय या पंचाट भारत के न्यायालय द्वारा दिया गया था, दायी होगी :
परंतु किसी ऐसे निर्णय या पंचाट की बाबत बीमाकर्ता कोई राशि देने के लिए दायी नहीं होगा जब तक कार्यवाहियां जिनसे निर्णय या पंचाट दिया जाता है, प्रारंभ होने से पहले बीमाकर्ता को संबद्ध न्यायालय जिसमें कार्यवाहियां प्रारंभ की गई है व्यतिकारी राज्य की तत्स्थानी विधि के अधीन कार्यवाहियों में पक्षकार बनाए जाने और उपधारा (२) में विनिर्दिष्ट समान आधारों पर कार्रवाई में प्रतिरक्षा करने के लिए पक्षकार बनाए जाने का हकदार नहींं होगा ।
४) जहां धारा १४७ की उपधारा (३) के अधीन बीमा प्रमाणपत्र ऐसे व्यक्ति जिसके द्वारा पालिसी प्रभावी की गई है, को जारी किया जाता है, बीमाकृत व्यक्तियों के बीमा को निर्बंधित करने के लिए तात्पर्यित पालिसी के अधिकांश भाग का, जो उपधारा (२) में है, से भिन्न अन्य शर्तो द्वारा निर्दिष्ट ऐसे दायित्वों के संबंध में जो धारा १४७ की उपधारा (१) के खंड (ख) के अधीन पालिसी द्वारा समाविष्ट किए जाने अपेक्षित है, का कोई प्रभाव नहीं होगा ।
५) कोई बीमाकर्ता, जिसे उपधारा (२) या उपधारा (३) में निर्दिष्ट सूचना दी गई है, किसी व्यक्ति, जो उपधारा (१) में निर्दिष्ट किसी ऐसे निर्णय या पंचाट या, यथास्थिति, उपधारा (२) या व्यतिकारी देश की तत्स्थानी विधि में उपबंधित रीति से अन्यथा उपधारा (३) में निर्दिष्ट ऐसे निर्णय के अधीन फायदे का हकदार है के प्रति अपने दायित्व के परिवर्जन का हकदार नहीं होगा ।
६) यदि दावा दाखिल करने की तारीख पर, दावाकर्ता को ,बीमा कंपनी जिसके साथ यान बीमाकृत किया गया है, की जानकारी नहीं है, तो यान के स्वामी का यह कर्तव्य होगा कि अधिकरण या न्यायालय को यह सूचना दे कि क्या दुर्घटना की तारीख को यान बीमाकृत था या नहीं और यदि हां, तो उस बीमा कंपनी का नाम जिसके साथ वह बीमाकृथ है ।
स्पष्टीकरण :
इस धारा के प्रयोजनार्थ-
(a)क) पंचाट से दावा अधिकरण द्वारा धारा १६८ के अधीन किया गया पंचाट अभिप्रेत है;
(b)ख) दावा अधिकरण से धारा १६५ के अधीन गठित दावा अधिकरण अभिप्रेत है;
(c)ग) पालिसी के निबंधनों द्वारा समाविष्ट दायित्व से ऐसा दायित्व अभिप्रेत है, जो पालिसी द्वारा समाविष्ट किया जाता है या जो इस प्रकार समाविष्ट किया जाता है, लेकिन इस तथ्य के कारण समाविष्ट नहीं है कि बीमाकर्ता पालिसी को परिवर्जित या रद्द करने या परिवर्जित या रद्द किए जाने के लिए हकदार है या उसने पालिसी को परिवर्जित या रद्द कर दिया है; और
(d)घ) तात्विक तथ्य और तात्विक विशिष्टि से क्रमश: एक तथ्य या विशिष्टि अभिप्रेत है, जो ऐसी प्रकृति की है कि एग प्रज्ञावान बीमाकर्ता के यह अवधारित करना कि क्या वह जोखिम लेगा, यदि हां तो किस प्रीमियम दर और किन शर्तों पर, के निर्णय को प्रभावित करते है ।)
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१. २०१९ का अधिनियम सं. ३२ की धारा ५१ द्वारा अध्याय ११ प्रतिस्थापित ।