मोटर यान अधिनियम १९८८
धारा १३८ :
राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति :
१)राज्य सरकार धारा १३७ में विनिर्दिष्ट विषयों से भिन्न इस अध्याय के उपबंधों को कार्यान्वित करने के प्रयोजन के लिए नियम बना सकेगी ।
(1A)१.(१क) राज्य सरकार, सडक सुरक्षा के हित में, गैर-यांत्रिक रुप से नोदित होने वाले यानों के क्रियाकलापों और उनकी तथा पैदल चलने वालों की, सार्वजनिक स्थानों और राष्ट्रीय राजमार्गो तक पहुंच को विनियमित करने के प्रयोजनों के लिए नियम बना सकेगी :
परंतु राष्ट्रीय राजमार्गो की दशा में, ऐसे नियमों की विरचना भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के परामर्श से की जाएगी ।)
२)पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित बातों के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात् :-
(a)क) जो यान सडकों पर बिगड गए हैं या खडे छोड दिए गए हैं या परित्यक्त कर दिए गए हैं, उनको भार सहित हटाना और उनकी निरापद अभिरक्षा ;
(b)ख) तोलने के यंत्रों का लगाया जाना और उनका उपयोग ;
(c)ग) मार्गस्थ सुख- सुविधा प्रक्षेत्रों का रख-रखाव और प्रबंध;
(d)घ) दमकल- दल यानों, रोगी वाहनों और अन्य विशेष वर्गों या वर्णन के यानों को इस अध्याय के सभी या किन्हीं उपबंधों से ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए छुट जो विहित की जाए ;
(e)ङ) पार्किंग स्थल और अड्डों का रख- रखाव और प्रबंध तथा उनके उपयोग के लिए प्रभारित की जाने वाली फीसे, यदि कोई हों ;
(f)च) मोटर यान को पहाडी की ढलान पर गियर लगाए बिना या तो साधारणतया या किसी विनिर्दिष्ट स्थान में चलाने का प्रतिषेद;
(g)छ) चलते मोटर यान को पकडने या उस पर चढने का प्रतिषेध;
(h)ज) मोटर यानों द्वारा पैदल मार्ग या पटरी मार्ग के उपयोग का प्रतिषेध;
(i)झ) साधारणतया जनता या किसी व्यक्ति को खतरे, क्षति या क्षोभ का अथवा सम्पत्ति को खतरे या क्षति का अथवा यातायात में बाधा का निवारण; और
(j)ञ) कोई अन्य बात जो विहित की जानी है या की जाए ।
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१. २०१९ का अधिनियम सं. ३२ की धारा ४९ द्वारा उपधारा (१) के पश्चात अंत:स्थापित ।