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Ipc धारा ४ : १.(अतिरिक्त प्रादेशिक अपराधों पर संहिता का विस्तार :

भारतीय दण्ड संहिता १८६०
धारा ४ :
१.(अतिरिक्त प्रादेशिक अपराधों पर संहिता का विस्तार :
(See section 1(5) of BNS 2023)
इस संहिता के उपबंध निम्नलिखित व्यक्तीयों के अपराधों को अधिन है-
२.(१)भारत से बाहर और परे किसी स्थान में भारत के किसी नागरिक द्वारा किए गए अपराध को लागू है;
(२) भारत में रजिस्टड्ढीकृत किसी जहाज या विमान पर, चाहे वह कहीं भी हों, किसी व्यक्ती द्वारा किए गए किसी अपराध को भी लागू है।)
३.(३)भारत से बाहर और परे किसी स्थान में कोई व्यक्ती भारत में स्थित किसी कम्प्यूटर साधन को लक्ष्य करते हुए किया अपराध । स्पष्टीकरण:
इस धारा में– (अ)अपराध शब्द के अन्तर्गत ४.(भारत) से बाहर किया गया ऐसा हर कार्य, जो यदि ५.(भारत) में किया जाता तो, इस संहिता के तहत दण्डनीय होता ;
(ब)कम्प्यूटर साधन का वही अर्थ होगा जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम,२००० की धारा २ की उपधारा (१) के खण्ड (के) में समनुदिष्ट है।
६.(दृष्टांत)
७.(***)५.(जो ८.(भारत का नागरिक है)) उगांडा में हत्या करता है । वह ५.(भारत) के किसी स्थान में, जहां वह पाया जाए, हत्या के लिए विचारित और दोषसिद्द किया जा सकता है ।
९.(***)
———
१. १८९८ का अधिनियम सं० ४ की धारा २ द्वारा मूल धारा के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
२. विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा मूल खण्ड (१) से खण्ड (४) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
३. सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, २००८(सन २००९ क्र.१०) की धारा ५१(क)(आय) द्वारा स्थापित(दि. २७-१०-२००९ से प्रभावशील.
४. विधि अनुकूलन आदेश १९४८, विधि अनुकूलन आदेश १९५० और १९५१ के अधिनियम सं० ३ की धारा ३ और अनुसूची द्वारा संशोधित होकर उपरोक्त रुप में आया ।
५. विधि अनुकूलन आदेश १९४८ द्वारा कोई कूली जो भारत का मूल नागरिक है के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
६. १९५७ के अधिनियम सं० ३६ की धारा ३ और अनुसूची २ द्वारा दृष्टांत के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
७. १९५७ के अधिनियम सं० ३६ की धारा ३ और अनुसूची २ द्वारा (क) कोष्ठकों और अक्षर का लोप किया गया ।
८. विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा भारतीय अधिवास का कोई ब्रिटिश नागरिक के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
९. विधि अनुकूलन आदेश १९५० द्वारा दृष्टांत (ख), (ग) तथा (घ) का लोप किया गया ।

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